India-China LAC Agreement – देश को विश्वास में लेना चाहिए : कांग्रेस
India-China LAC Agreement: कांग्रेस ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर गश्त को लेकर चीन के साथ एक समझौता होने की घोषणा का हवाला देते हुए बुधवार को कहा कि इस विषय पर सरकार को देश को विश्वास में लेना चाहिए। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के दृष्टिकोण के कारण इस मामले के समाधान में अवरोध पैदा हुआ। भारत ने घोषणा की थी कि भारतीय और चीनी वार्ताकार पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर गश्त के लिए एक समझौते पर सहमत हुए हैं। रमेश ने कहा कि मोदी सरकार की इस घोषणा को लेकर कई सवाल बने हुए हैं कि एलएसी पर गश्ती की व्यवस्था को लेकर चीन के साथ समझौता हो गया है।
विदेश सचिव ने कहा है कि इस समझौते से सैनिकों की वापसी हो रही है और इन क्षेत्रों में 2020 में पैदा हुए गतिरोध का अंततः समाधान हो रहा है। उन्होंने कहा कि हम आशा करते हैं कि दशकों में भारत की विदेश नीति को लगे इस झटके का सम्मानजनक ढंग से हल निकाला जा रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि सैनिकों की वापसी से पहले वही स्थिति बहाल होगी, जैसी मार्च 2020 में थी। रमेश ने दावा किया कि यह दुखद गाथा पूरी तरह से चीन के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नासमझी और भोलेपन का नतीजा है। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की चीन ने तीन बार भव्य मेजबानी की थी।

जिनपिंग के साथ 18 बैठकें कीं
प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने चीन की पांच आधिकारिक यात्राएं कीं और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ 18 बैठकें कीं। इसमें उनके 64वें जन्मदिन पर साबरमती के तट पर बेहद दोस्ताने अंदाज में झूला झूलना भी शामिल है। भारत का पक्ष 19 जून, 2020 को तब सबसे अधिक कमजोर हुआ जब प्रधानमंत्री ने चीन को ‘क्लीन चिट’ देते हुए कहा था,‘ना कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है।’ यह बयान गलवान में हुई झड़प के चार दिन बाद ही दिया गया था, जिसमें हमारे 20 बहादुर सैनिकों ने सर्वोच्च बलिदान दिया था। उनका यह बयान न सिर्फ हमारे शहीद सैनिकों का घोर अपमान था बल्कि इसने चीन की आक्रामकता को भी वैध ठहरा दिया। इसके कारण ही एलएसी पर गतिरोध के समय समाधान में बाधा उत्पन्न हुई।
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DDLJ के रूप में वर्णित
रमेश ने आरोप लगाया कि पूरे संकट पर मोदी सरकार के दृष्टिकोण को ‘डीडीएलजे’ यानी ‘डिनाय’, ‘डिस्ट्रैक्ट’, ‘लाय’ और ‘जस्टीफाई’ के रूप में वर्णित किया जा सकता है। संसद को सीमा की चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक संकल्प को प्रतिबिंबित करने के लिए चर्चा करने का कोई अवसर नहीं दिया गया, जबकि पिछली सरकारों में इस तरह के गंभीर मुद्दों पर चर्चा और बहस की परंपरा रही है।
अब जब चीन के साथ यह समझौता हुआ है तब सरकार को भारत के लोगों को विश्वास में लेना चाहिए और महत्वपूर्ण सवालों के जवाब देने चाहिए। रमेश ने सवाल किया, ‘क्या भारतीय सैनिक डेपसांग में हमारी दावे वाली लाइन से लेकर ‘बॉटलनेक जंक्शन’ से आगे के पांच गश्ती बिंदुओं तक गश्त करने में सक्षम होंगे जैसा कि वे पहले करने में सक्षम थे? क्या हमारे सैनिक डेमचोक में उन तीन गश्ती बिंदु तक जा पाएंगे जो चार साल से अधिक समय से हमारे दायरे से बाहर हैं?’ क्या हमारे सैनिक पैंगोंग त्सो में फिंगर तीन तक ही सीमित रहेंगे जबकि पहले वे फिंगर आठ तक जा सकते थे?
क्या हमारे गश्ती दल को गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में उन तीन गश्ती बिंदु तक जाने की छूट है, जहां वे पहले जा सकते थे?’‘बफर जोन’ चीनियों को सौंप दिकांग्रेस नेता ने कहा, ‘क्या भारतीय चरवाहों को एक बार फिर चुशुल में हेलमेट टॉप, मुक्पा रे, रेजांग ला, रिनचेन ला, टेबल टॉप और गुरुंग हिल में पारंपरिक चरागाहों तक जाने का अधिकार दिया जाएगा? क्या वे ‘बफर जोन’ जिन्हें हमारी सरकार ने चीनियों को सौंप दिए थे, जिसमें रेजांग ला में युद्ध नायक और मरणोपरांत परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह का स्मारक स्थल भी शामिल था, अब अतीत की बात हो गए हैं?”
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