Milton Snavely Hershey – 85 देशों में कारोबार, 93 हजार करोड़ का रेवेन्यू
Milton Snavely Hershey: मिल्टन हर्शे का जन्म 18 सितंबर 1937 को अमेरिका के पेन्सिल्वेनिया में हुआ। साल 1873 में उन्होंने लैंकेस्टर की एक कैंडी फैक्ट्री में काम करना शुरू किया। कैंडी बनाने का काम उन्हें अच्छा लगने लगा। पैसे उधार लेकर खोली कैंडी की दुकान चार साल बाद 1877 में उन्होंने कैंडी की दुकान खोलने का फैसला किया। इसके लिए अंकल-आंटी से पैसे उधार लिए। मिल्टन ने इस बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए दिन-रात मेहनत की। कई बार दुकान के काउंटर पर ही सो जाते थे। मिल्टन इस बिजनेस के लिए लिया गया लोन जल्द चुकाना चाहते थे। लोगों को अट्रैक्ट करने के लिए मिल्टन ने गली की तरफ कैंडी की खुशबू फैलाने का इंतजाम किया। जिसकी वजह से गली से निकलने वाले लोग दुकान पर जरूर आते। 1882 में दिवालिया हो गए मिल्टन हर्शे धीरे-धीरे रॉ मटेरियल के दाम बढ़ने की वजह से मेकिंग कॉस्ट बढ़ने लगी थी। लोग महंगी कैंडी नहीं खरीदना चाहते थे इसलिए सेल गिर गई।

कफ ड्रॉप कैंडी और बड़े डिस्प्ले का आइडिया
साल 1881 में मिल्टन हर्शे ने अपना बिजनेस बचाने के लिए पिता से हेल्प मांगी। पिता ने कफ ड्रॉप कैंडी और बड़े डिस्प्ले का आइडिया दिया, जिसकी वजह से कंपनी का फंड खत्म हो गया। मिल्टन दिवालिया घोषित हो गए। 6 साल की मेहनत बर्बाद हो गई। न्यूयॉर्क में कैरेमल कैंडी बनाना सीखा कैंडी बिजनेस फेल हुआ तो मिल्टन हर्शे न्यूयॉर्क चले गए। वहां एक कैंडी स्टोर में काम करने लगे। मिल्टन ने कैरेमल कैंडी बनाने का नया तरीका सीखा। वे कैरेमल बनाने के लिए ताजे दूध का इस्तेमाल करते थे। इससे कैंडी ज्यादा सॉफ्ट और लंबे समय तक फ्रेश रहती थी। उधार लेकर न्यूयॉर्क में कैरेमल कैंडी की दुकान खोली एक बार फिर मिल्टन ने पैसे उधार लिए और न्यूयॉर्क में दुकान खोली। यहां दूध से बनी कैरेमल कैंडी बेचने लगे।
Read more: Qimat Rai Gupta – Anil Gupta : 7 लाख में खरीदा कंपनी का नाम, आज 18 हजार करोड़ का रेवेन्यू

दूध से कैरेमल कैंडी बनाना शुरू किया
न्यूयॉर्क के लोगों को ये काफी पसंद आया। जल्द ही उनके ग्राहक बढ़ने लगे। साथ ही साथ कॉम्पिटिशन भी बढ़ने लगा। कुछ दिन बाद रॉ मटेरियल की कॉस्ट फिर बढ़ गई। इसके लिए न्यूयॉर्क से इम्पोर्टेड दूध का इस्तेमाल करना पड़ता था। जिसकी वजह से मेकिंग कॉस्ट बढ़ जाती थी। एक बार फिर मिल्टन कर्ज में आ गए। अब मिल्टन ने अपने ही शहर में कैरेमल कैंडी बेचने के बारे में सोचा। पेन्सिल्वेनिया में डेयरी फार्म काफी ज्यादा थे। इसलिए मिल्टन ने डेयरी के दूध से कैरेमल कैंडी बनाना शुरू किया। इसकी वजह से मेकिंग कॉस्ट काफी कम हो गई। मिल्टन की आंटी ने घर गिरवी रखकर बैंक से लोन लिया कैरेमल कैंडी की डिमांड लोकल लेवल पर तेजी से बढ़ी। हालांकि बढ़ती डिमांड को पूरा करने के लिए मिल्टन के पास रिसोर्स नहीं थे। उन्होंने फिर अपनी आंटी से मदद मांगी।

घर गिरवी रखकर 700 डॉलर का लोन लिया
आंटी ने घर गिरवी रखकर 700 डॉलर (आज के हिसाब से करीब 60 हजार रुपए) का लोन लिया। ये लोन 90 दिनों के अंदर चुकाना था। 90 दिन पूरे होने को थे, मिल्टन पैसों का इंतजाम नहीं कर पाए थे। तभी इंग्लैंड का एक बड़ा बिजनेसमैन उनकी दुकान पर आया। उसे कैरेमल कैंडी पसंद आई। उसने मिल्टन को एक बड़ा ऑर्डर दिया। इस डील ने न केवल मिल्टन का बिजनेस बचाया बल्कि कैरेमल कैंडी को विदेशों में भी पहचान दिलाई। साल 1886 में मिल्टन ने लैंकेस्टर कैरेमल कंपनी की शुरुआत की। धीरे-धीरे ये कैंडी अमेरिका ही नहीं, दुनिया भर में मशहूर होने लगी। दो बार फेल हो चुके मिल्टन अब कैरेमल कैंडी के किंग बन चुके थे। साल 1893 में मिल्टन एक एग्जिबिशन के लिए शिकागो गए। वहां उन्होंने पहली बार मशीन से चॉकलेट बनते देखा। ये चॉकलेट मिल्टन को काफी अच्छी लगी। उन्हें समझ आया कि कैरेमल का बिजनेस ज्यादा दिन नहीं चलेगा, चॉकलेट ही फ्यूचर है। वे लैंकेस्टर वापस लौटे और 1894 में द हर्शेज कंपनी की शुरुआत की।

मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट शुरू किया और चॉकलेट बनाई
हर्शेज कंपनी में उन्होंने मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट शुरू किया और चॉकलेट बनाई। मिल्टन ने फैसला कर लिया कि कैरेमल बिजनेस छोड़ कर पूरी तरह चॉकलेट पर फोकस करेंगे। इसलिए 1900 में, उन्होंने लैंकेस्टर कैरेमल कंपनी को 1 मिलियन डॉलर (आज के हिसाब से करीब 35 मिलियन डॉलर) में बेच दिया। कंडेंस्ड मिल्क से बनाई सस्ती मिल्क चॉकलेट मिल्टन हर्शे का पूरा फोकस मिल्क चॉकलेट बनाने पर था। इससे पहले तक मिल्क चॉकलेट केवल स्विटजरलैंड में बनती थी इसलिए काफी महंगी थी। इसके लिए मिल्टन ने कई लोगों को हायर किया। आखिरकार उनकी टीम के एक व्यक्ति ने कंडेंस्ड मिल्क से मिल्क चॉकलेट बनाने के बारे में सोचा। यह आइडिया सफल भी हुआ।
Read more: Amancio Ortega : साल में 12,000 डिजाइन लॉन्च करता है फैशन ब्रांड ‘जारा’

1907 में किसेस चॉकलेट लॉन्च किए
कंडेंस्ड मिल्क से बनी चॉकलेट का न केवल टेस्ट अलग था बल्कि इसे लंबे समय तक स्टोर भी किया जा सकता था। हर्शे की मिल्क चॉकलेट को लोगों ने खूब पसंद किया। इसका दाम काफी कम था। धीरे-धीरे ये चॉकलेट बार फेमस होने लगे। पहले साल में ही हर्शेज मिल्क चॉकलेट बार की बिक्री 1 मिलियन डॉलर से अधिक हो गई। इसके बाद हर्शेज ने 1907 में किसेस चॉकलेट लॉन्च किए। ये छोटे, कोन जैसे आकार की चॉकलेट थी, जिन्हें एल्युमिनियम फॉइल में हाथों से लपेटा जाता था। ये चॉकलेट कंपनी के लिए बड़ी सक्सेस साबित हुई। आज के समय में कंपनी हर दिन 8 करोड़ हर्शेज किसेस चॉकलेट बनाती है। ये चॉकलेट बनाने वाली मशीनें 24 घंटे चलती हैं।

पेन्सिल्वेनिया में हर्शेज ने चॉकलेट वर्ल्ड बनाया
धीरे-घीरे कंपनी दुनिया भर में फैल गई। 1973 में पेन्सिल्वेनिया में हर्शेज ने चॉकलेट वर्ल्ड बनाया। जहां हर्शेज का सबसे बड़ा चॉकलेट स्टोर है। साल 2012 में हर्शेज ने चीन, भारत और ब्राजील जैसे देशों में अपना बिजनेस फैलाया। चॉकलेट के लिए मशहूर कैडबरी की पेरेंट कंपनी मोंडेलेज इंटरनेशनल चॉकलेट कंपनी हर्शेज के साथ मर्जर के बारे में सोच रही है। ब्लूमबर्ग के अनुसार, मोंडेलेज ने हर्शेज को मर्जर का ऑफर भेजा है। अगर मर्जर होता है तो ये दुनिया की सबसे बड़ी चॉकलेट और मीठे प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी बन जाएगी। हाल ही में हर्शेज का शेयर प्राइस 19% बढ़ा जबकि मोंडेलेज इंटरनेशनल का 4% घटा है। 130 साल पुरानी चॉकलेट कंपनी हर्शेज की शुरुआत अमेरिका के मिल्टन हर्शे ने की थी, जिन्होंने 12 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ दी थी। ये कंपनी आज 85 देशों में कारोबार करती है और सालाना 93 हजार करोड़ से भी ज्यादा का रेवेन्यू जनरेट करती है।
- Rupinder Kaur, Organic Farming: फार्मिंग में लाखों कमा रही पंजाब की महिला - March 7, 2025
- Umang Shridhar Designs: ग्रामीण महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर, 2500 महिलाओं को दी ट्रेनिंग - March 7, 2025
- Medha Tadpatrikar and Shirish Phadtare : इको फ्रेंडली स्टार्टअप से सालाना 2 करोड़ का बिजनेस - March 6, 2025