Asian Paints : – 15 देशों में 27 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट, व्यापार 60 देशों में फैला है
Asian Paints – 1942 में मुंबई में चार गुजराती दोस्त चंपकलाल चोकसी, चिमनलाल चोकसी, सूर्यकांत दानी और अरविंद वकील ने नई पेंट कंपनी शुरू की थी। ये चारों गुजरात के जैन परिवारों से थे। बॉम्बे (मुंबई) के एक बड़े से गैराज से कंपनी का कामकाज शुरू किया। अब समस्या थी कि कंपनी का नाम क्या रखा जाए।
काफी सोच विचार करने के बाद भी नाम पर कोई राय नहीं बनी तो टेलीफोन डायरेक्टरी से रैंडम वर्ड सिलेक्ट कर कंपनी का नाम रखा गया- एशियन ऑयल एंड पेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड। कंपनी ने शुरुआत में हरा, सफेद, लाल, काला और पीला कुल पांच कलर तैयार किए। चारों दोस्तों की प्लानिंग थी कि वे कलर बनाएंगे और होलसेल में बेच देंगे। लेकिन, उनका ये दांव उल्टा पड़ गया। किसी डिस्ट्रीब्यूटर ने इनका माल नहीं लिया। उन्हें डर था कि नई कंपनी का माल लेकर रिस्क क्यों लिया जाए। चारों को लगने लगा कि बिजनेस चलने से पहले ही डूब जाएगा।

डोर-टू-डोर मार्केटिंग स्ट्रैटजी पर काम
चंपकलाल चौकसी ने नया प्लान बनाया और डोर-टू-डोर मार्केटिंग स्ट्रैटजी पर काम करना शुरू किया। चारों दोस्तों ने पेंट को छोटे-छोटे प्लास्टिक के पैकेट में पैक किया और गांवों और शहरों में घर-घर जाकर बेचने लगे। कुछ दिन बाद मुंबई और पुणे के डिस्ट्रीब्यूटर्स की बजाय गांवों में जाकर डीलर्स को पेंट बेचना शुरू कर दिया। लोगों को उनका पेंट काफी पसंद आया। गांवों में डीलर भी सीधा कंपनी से पेंट खरीदकर खुश थे।
उन्हें ये पेंट डिस्ट्रीब्यूटर से सस्ता भी मिल रहा था। उसी समय तमिलनाडु में पोंगल त्योहार भी आने वाला था। जिसमें बैलों के सींगों पर रंग लगाकर उनकी पूजा की जाती है। चंपकलाल को ये अच्छा मौका लगा। उन्होंने सोचा कि लोगों को कम मात्रा में चमकीले पेंट की जरूरत है। उन्होंने वैसा पेंट बनाया और तमिलनाडु के गांवों में जाकर बेचना शुरू किया। जिससे कंपनी को बहुत फायदा हु
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महाराष्ट्र के सांगली शहर में डीलरशिप
धीरे-धीरे इनके पेंट की डिमांड मार्केट में बढ़ने लगी। इसके बाद महाराष्ट्र के सांगली शहर में एक डीलरशिप मिल गई। जो डिस्ट्रीब्यूटर एशियन पेंट्स का पेंट नहीं खरीदना चाहते थे, उनसे भी पेंट की डिमांड आने लगी। 1945 तक कंपनी का कारोबार 3 लाख रुपए पहुंच गया। साल 1952 तक कंपनी का रेवेन्यू 23 करोड़ रुपए हो गया। चंपकलाल चोकसी ने बिजनेस और फैलाने के लिए मार्केटिंग बढ़ाने फैसला किया।
उन्होंने उस समय के फेमस कार्टूनिस्ट आर.के. लक्ष्मण से एडवर्टाइजिंग के लिए एक मैस्कॉट बनाने कहा। आर.के. लक्ष्मण ने जो मैस्कॉट बनाया वो एक शरारती बच्चे का था, जिसके हाथ में पेंट ब्रश और एक पेंट की बाल्टी थी। इसका नाम रखने के लिए एक प्रतियोगिता रखी गई। सबसे अच्छा नाम देने वाले को 500 रुपए प्राइज दिया जाना था। प्रतियोगिता में 47 हजार लोगों ने हिस्सा लिया। जिससे यह कार्टून चर्चा में आ गया। मुंबई के रहने वाले दो लोगों ने मैस्कॉट को ‘गट्टू’ नाम दिया। यह नाम उत्तर भारत में काफी आम था

विज्ञापनों पर मैस्कॉट गट्टू का इस्तेमाल
1954 में कंपनी ने पेंट के डिब्बों और विज्ञापनों पर मैस्कॉट गट्टू का इस्तेमाल किया। यह कार्टून कंपनी की पहचान बन गया। उसी दौरान कंपनी ने अपना विज्ञापन कैंपेन ‘हर घर कुछ कहता है’ लॉन्च किया। इसका कंपनी को इतना फायदा हुआ कि अगले चार साल में कंपनी का व्यापार 10 गुना बढ़ गया। एशियन पेंट्स ने 2002 तक टेलीविजन विज्ञापनों में गट्टू का इस्तेमाल किया। एशियन पेंट्स की मजबूती का श्रेय उनकी रणनीति को जाता है जो उन्होंने कंज्यूमर ट्रेंड और पैटर्न की शुरुआत से ही पहचान करके बनाई।
सही रणनीति के साथ सही वर्ग के लोगों को टारगेट कर पाए। एडवर्टाइजिंग भी कंपनी की मार्केटिंग रणनीति का मूल मंत्र बना हुआ है। क्रिकेटर विराट कोहली, एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण, करण जौहर और दक्षिण के एक्टर और एक्ट्रेस कंपनी के विज्ञापन में नजर आते हैं। कंपनी ने अपने विज्ञापन में भारत की क्षेत्रीय संस्कृति पर फोकस किया है। अब वे राज्यों को संस्कृति के अनुसार वहां के सेलिब्रिटी को अपने विज्ञापन के लिए अनुबंध कर रही है।

प्रोफेशनल लोगों को दी नौकरी
1965 में एशियन ऑयल एंड पेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड का नाम एशियन पेंट्स प्राइवेट लिमिटेड कर दिया गया। साल 1967 तक कंपनी मार्केट में सबसे बड़ी पेंट कंपनी बन गई। चोकसी को लगा कि बिजनेस को और आगे बढ़ाने के लिए कंपनी को समझदार लोगों की जरूरत है।
चौकसी ने अपने पार्टनर्स को अपनी रणनीति बताई। उन्होंने कहा कि अब से हम कंपनी में सिर्फ प्रोफेशनल लोगों को ही नौकरी पर रखेंगे। इसके बाद कंपनी ने अलग-अलग बिजनेस स्कूल और आईआईएम पासआउट स्टूडेंट को नौकरी पर रखना शुरू कर दिया। इसके बाद कंपनी ने पुरानी तकनीकों की बजाय नई तकनीक पर काम करना शुरू किया। नए प्लांट लगाए जाने लगे और मशीनों के इस्तेमाल पर जोर दिया जाने लगा
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भारत का पहला सुपर-कंप्यूटर खरीदा
1970 में एशियन पेंट्स ने इसरो से पहले भारत का पहला सुपर-कंप्यूटर खरीदा। उस समय इसकी कीमत 8 करोड़ रुपए थी। इसकी मदद से कंपनी ने अपनी सेल, डिमांड और सप्लाई चेन की दिक्कत ठीक की। 30 साल में एशियन पेंट्स ने इस कंप्यूटर की मदद से इतना डेटा इकट्ठा कर लिया था कि किस डीलर के पास कौन से कलर और साइज का पेंट ज्यादा बिकेगा, इस बात का अंदाजा उन्हें पहले ही लग जाता था। कंपनी ने 1970 में ही अपने ट्रकों पर नजर रखने के लिए जीपीएस सिस्टम का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।
1979 में एशियन पेंट्स ने रंगों के नए शेड बनाने के लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। इससे 6 से 7 दिन में होने वाला काम कुछ घंटों में होने लगा। साल 1990 तक कंपनी का ज्यादातर हिस्सा चारों परिवारों के पास था। 1997 में चंपकलाल की मौत के बाद उनके बेटे अतुल चौकसी ने एक विवाद के बाद आधे शेयर यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया और बाकी शेयर तीनों पार्टनर को बेच दिए। सूर्यकांत दानी के बेटे अश्विन दानी पर भी नादकर्णी परिवार ने पेटेंट पर कब्जा करने के आरोप लगाए है। आज एशियन पेंट्स को पूरी तरह से प्रोफेशनल लोग संभाल रहे हैं।

अमित सिंगले संभाल रहे हैं कमान
इस वक्त एशियन पेंट्स के सीईओ और एमडी अमित सिंगले हैं। वे करीब 30 साल से कंपनी के साथ काम कर रहे हैं। चिमनलाल चोकसी, सूर्यकांत दानी और अरविंद वकील के परिवार के सदस्य नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के तौर पर एशियन पेंट्स का बिजनेस संभाल रहे हैं। साल 1982 में एशियन पेंट्स ने आईपीओ लॉन्च किया।
आज एशियन पेंट्स के पास गिने-चुने रंग नहीं, बल्कि हजारों तरह की शेड्स, कलर और टैक्शचर के डिजाइन हैं। 1970 के दशक में कंपनी ने फिजी में अपना पहला मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया। आज कंपनी के 15 देशों में 27 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं। 60 देशों में कारोबार है। यह दुनिया की सबसे बड़ी ऑटोमोटिव कोटिंग्स मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में से एक अमेरिका की PPG Inc के साथ 50:50 के जॉइंट वेंचर में ऑपरेशन करती है।

ग्रुप में कई कंपनियां हैं
एशियन पेंट्स के ग्रुप में कई कंपनियां हैं। इनमें एशियन पेंट्स बर्जर, एप्को कोटिंग्स, SCIB पेंट्स, तौबमैन्स, एशियन पेंट्स कॉजवे और कैडिस्को एशियन पेंट्स दुनियाभर में सर्विस प्रोवाइड करती है। एशियन पेंट्स भारत की सबसे बड़ी, एशिया की दूसरी सबसे बड़ी और दुनिया की दस सबसे बड़ी पेंट कंपनियों में शामिल है।
आज के समय में, एशियन पेंट्स ने अब बाथ फिटिंग्स, किचन और वॉटरप्रूफिंग सॉल्यूशंस, कलर कंसल्टेंसी, पेंटिंग सर्विसेज और इंटीरियर डिजाइनिंग जैसी सेवाओं में अपनी उपस्थिति का विस्तार किया है। भारत के 50 प्रतिशत पेंट बाजार पर एशियन पेंट्स का कब्जा है। 15 देशों में 27 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं। व्यापार 60 देशों में फैला है। कंपनी का मार्केट कैप करीब 3 लाख करोड़ है।