The Debt-to-GDP Ratio : टैक्स राहत से पैसा बचेगा, लोग खर्च करेंगे
The Debt-to-GDP Ratio – अगले पांच साल में कर्ज-जीडीपी अनुपात को 50 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य हासिल होने की पूरी उम्मीद है। कर्ज-जीडीपी अनुपात चालू वित्त वर्ष में 57.1 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है, जबकि अगले वित्त वर्ष 2025-26 में इसे 56.1 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा गया है। मूडीज जैसी रेटिंग एजेंसियों के अनुसार, साख बढ़ाने के लिए ऋण के बोझ में पर्याप्त कमी और अधिक महत्वपूर्ण राजस्व उत्पन्न करने वाले उपाय आवश्यक हैं.
वित्त मंत्रालय श्रम विभाग के साथ परामर्श कर प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) के तहत करीब एक करोड़ ‘गिग’ (अस्थायी) श्रमिकों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की योजना की रूपरेखा तैयार कर रहा है। आठवें वेतन आयोग की बात की जाए तो निश्चित रूप से कुछ प्रभाव आएगा। इसका असर 2026-27 में आने की संभावना है। यदि लक्ष्य को लेकर कुछ चूक होता भी है तो हम तीन-चार साल में 50 प्रतिशत जीडीपी-कर्ज अनुपात को एक प्रतिशत घट-बढ़ के साथ हासिल करने का प्रयास करेंगे। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर क्या रहती है। वैसे तो आठ प्रतिशत जीडीपी वृद्धि चाहते हैं लेकिन यह सात प्रतिशत के आसपास भी रहती है, तो इस लक्ष्य को हासिल करना आसान होगा।

बैंकों में नकदी बढ़ेगी
वित्त मंत्री ने जीडीपी वृद्धि दर बढ़ाने के लिए बजट में मध्यम वर्ग को राहत दी है। कर राहत से जो पैसा बचेगा उसे लोग खर्च करेंगे। इससे आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी और अगर वे बचत भी करते हैं, तो इससे बैंकों में नकदी बढ़ेगी और उनकी कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी। इसके अलावा सुधारों को आगे बढ़ाया गया है। कृषि निर्यात, एमएसएमई को गति देने का प्रयास किया गया है। इसका मकसद जीडीपी वृद्धि दर को बढ़ाना है। कोविड में हमारा राजकोषीय घाटा 9.2 प्रतिशत पर पहुंच गया था, लेकिन हम इसे कम कर चालू वित्त वर्ष में 4.8 प्रतिशत पर लाएंगे।
अगले वित्त वर्ष में इसे 4.4 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य है। राज्यों को जो कर्ज दिया जाता है, उनकी अपनी प्राथमिकताओं और जरूरतों के अनुसार खर्च होता है। वह अपने हिसाब से निर्णय करते हैं। हमारा यह अनुरोध रहता है कि वे कुल पूंजीगत व्यय बढ़ायें। हम उन्हें विभिन्न मापदंडों के तहत पूंजीगत व्यय बढ़ाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।
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पूंजीगत व्यय 15.48 लाख करोड़ रहने का अनुमान
पूंजीगत व्यय अच्छा-खासा बढ़ा है। इसमें दो हिस्से हैं। पहले हिस्से के तहत केंद्र सरकार की एजेंसियां सीधे खर्च करती हैं। दूसरा, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी विभिन्न योजनाओं में राज्य सरकारों को राशि उपलब्ध करायी जाती है और राज्य सरकारें उसे खर्च करती हैं। इसको मिलाकर अगले वित्त वर्ष में प्रभावी पूंजीगत व्यय 15.48 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है जो चालू वित्त वर्ष के 13.18 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से 17 प्रतिशत अधिक है। सरकार ने अगले वित्त वर्ष के लिए 11.21 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय का प्रस्ताव रखा है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सरकार ने 11.11 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय का बजट अनुमान रखा था लेकिन संशोधित अनुमानों के मुताबिक, इसके 10.18 लाख करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है।
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बजट में 7 %की वृद्धि
बजट में राज्यों को विभिन्न योजनाओं के लिए दी जाने वाली राशि को राजस्व मद में रखा जाता है लेकिन जब राज्यों को मिलता है तो वे पूंजीगत व्यय में खर्च करते हैं। दोनों को मिलाकर इसे प्रभावी पूंजीगत व्यय कहा जाता है। प्रभावी पूंजीगत व्यय में 17 प्रतिशत की वृद्धि है जबकि बजट में सात प्रतिशत की वृद्धि है। वित्त मंत्रालय श्रम विभाग के साथ परामर्श कर प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) के तहत करीब एक करोड़ ‘गिग’ श्रमिकों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की योजना की रूपरेखा तैयार कर रहा है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में घोषणा की थी कि सरकार ई-श्रम मंच पर ‘गिग’ कर्मचारियों के लिए पहचान पत्र और पंजीकरण की व्यवस्था करेगी। साथ ही उन्हें पीएम जन आरोग्य योजना के तहत स्वास्थ्य सेवा प्रदान की जाएगी। ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए ‘डिलिवरी’ सेवाएं प्रदान करने वाले कर्मचारी आदि ‘गिग’ कर्मियों की श्रेणी में आते हैं।
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