Effect of Inflation – सब्जियों,आटा-तेल सहित अनेक चीजों की कीमतों में तेज उछाल
Effect of Inflation: पिछले कुछ महीनों में खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी देखी गई है। पिछले वर्ष अक्टूबर में महंगाई 11% पर थी जो जनवरी में घटकर 6% रह गई। इस महीने के अंत में जब सर्दियों की फसल की कटाई शुरू होगी तो क्या खाद्य पदार्थों की कीमतों में और गिरावट आएगी? अक्टूबर में भारी बारिश के कारण सब्जियों की कीमतों में तेज उछाल आया था, जिससे खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ गई थी। हालांकि, इसके बाद इसमें कमी आई और दिसंबर में यह 8.4% और जनवरी में 6% रह गई। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के दैनिक मूल्य रुझान (2 मार्च तक) बताते हैं कि खाना पकाने के तेल की कीमतें अब भी ऊंची बनी हुई हैं, जबकि टमाटर, आलू और प्याज की कीमतों में गिरावट आई है। सरसों तेल और सूरजमुखी तेल की कीमतें सालाना आधार पर क्रमशः 26% और 29% अधिक हैं। पाम ऑयल (जिसका अधिकांश हिस्सा आयात किया जाता है और स्नैक्स व पैकेज्ड फूड बनाने में उपयोग किया जाता है) की कीमतें 40% अधिक हैं। अनाज के मामले में 4% कम हैं चावल की कीमतें पिछले वर्ष की तुलना में, गेहूं की कीमतों में वृद्धि का रुझान देखा जा रहा है, क्योंकि कटाई का समय नजदीक आ रहा है।

फसल के उत्पादन पर निर्भर
यदि सर्दियों की फसल का उत्पादन अच्छा रहता है तो खाद्य पदार्थों की कीमतों में और नरमी आ सकती है। हालांकि, कुछ आवश्यक वस्तुओं जैसे खाना पकाने के तेल और गेहूं की कीमतों पर दबाव बना रह सकता है। रबी (सर्दियों) की फसलें मार्च से मई के बीच काटी जाती हैं। कृषि मंत्रालय के अनुसार किसानों ने गेहूं और चने के रकबे में क्रमशः 2% और 3% की वृद्धि की है, लेकिन सरसों की खेती में लगभग 3% की कमी हुई है। फसल कटाई से पहले बढ़ते तापमान को लेकर चिंता बनी हुई है, क्योंकि अंतिम चरण में अत्यधिक गर्मी से गेहूं की उपज प्रभावित हो सकती है। मौसम विभाग ने मार्च में सामान्य से अधिक तापमान और अधिक हीटवेव (लू) वाले दिन होने का पूर्वानुमान दिया है। फिलहाल, गेहूं की थोक कीमतें पिछले वर्ष की तुलना में 10% अधिक हैं। यदि लगातार चौथे साल भी गेहूं की फसल कमजोर होती है तो भारत को आयात में छूट देनी पड़ सकती है।
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खाद्य तेल की कीमतें बढ़ रही हैं
वर्तमान में भारत अपनी जरूरत का 65% खाद्य तेल आयात करता है। जिसमें से लगभग आधा पाम ऑयल दक्षिण-पूर्व एशिया से आता है। इंडोनेशिया में बायोफ्यूल उत्पादन के लिए अधिक इस्तेमाल से पाम ऑयल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें बढ़ी हैं। सितंबर 2023 में भारत ने पाम ऑयल पर आयात शुल्क 22% बढ़ाया, ताकि घरेलू किसानों को अधिक तिलहन उगाने के लिए प्रेरित किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी शुरू हो गई। सरकार ने खाद्य कीमतों को काबू में रखने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें शामिल हैं:
निर्यात पर रोक (चावल, गेहूं, चीनी, प्याज),आयात शुल्क में कटौती, दालों के लिए उत्पादन अनुबंध और खाद्य उत्पादन बढ़ाना।

हीटवेव और सूखे का भी असर
असमय बारिश, हीटवेव और सूखे ने अनाज, दालों और सब्जियों के उत्पादन को प्रभावित किया है। 2022 में भीषण गर्मी से गेहूं की फसल को नुकसान हुआ था, जिसके बाद से कीमतें ऊंची बनी हुई हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से बार-बार आपूर्ति में दिक्कत आ रही है, जिससे खाद्य मुद्रास्फीति लंबे समय तक बनी रह सकती है। जून 2020 से 2024 के बीच खाद्य मुद्रास्फीति औसतन 6.4% रही है। मौसम से जुड़ी समस्याएं दोहरी मार साबित होती हैं। उपभोक्ता अधिक कीमत चुकाते हैं, लेकिन जिन किसानों की फसलें बच जाती हैं, वे अच्छा मुनाफा कमाते हैं। अगर फसल को बड़े पैमाने पर नुकसान होता है, तो किसान और उपभोक्ता दोनों को नुकसान उठाना पड़ता है। कपास और तिलहन जैसी फसलों की पैदावार वैश्विक औसत से काफी कम है।