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Reading: Cow Dung: पर्यावरण की सुरक्षा और इको फ्रेंडली प्रोडक्ट को बढ़ावा
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WeStory > अन्‍य > Cow Dung: पर्यावरण की सुरक्षा और इको फ्रेंडली प्रोडक्ट को बढ़ावा
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Cow Dung: पर्यावरण की सुरक्षा और इको फ्रेंडली प्रोडक्ट को बढ़ावा

Cow Dung : जयपुर से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले भीमराज शर्मा ने एक अनोखा काम किया है।

WeStory Editorial Team
Last updated: 2025/03/18 at 12:01 PM
WeStory Editorial Team
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8 Min Read
Cow Dung
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Cow Dung – 70 तरह के इको फ्रेंडली आर्टिकल्स बनाते हैं भीम राज, करोड़ों का टर्नओवर

Cow Dung : जयपुर से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले भीमराज शर्मा ने एक अनोखा काम किया है। पर्यावरण की सुरक्षा और इको फ्रेंडली प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने गाय के गोबर से 70 तरह के इको फ्रेंडली आर्टिकल्स डिवेलप किए हैं। साल 2017 में भीमराज शर्मा ने गाय के गोबर से प्रोडक्ट बनाना शुरू किया और इसका पेटेंट हासिल कर लिया। गौकृति नाम से गाय के गोबर से वे पेपर बनाते हैं। इसके साथ ही भीमराज शर्मा गाय के गोबर से पेपर बनाकर स्टेशनरी आइटम बनाते हैं। किसी भी त्योहार के मौके पर भीमराज शर्मा के गोबर से बने देवी-देवता की मूर्तियां और कई प्रोडक्ट खूब बिकते हैं। भीमराज शर्मा ने कहा कि फेस्टिवल सीजन में उनके प्रोडक्ट की इतनी डिमांड होती है कि वे उसे पूरा नहीं कर पाते। कोरोना संकट के बाद गौकृति के कामकाज पर असर पड़ा है लेकिन अब भी शर्मा साल में एक करोड़ का कारोबार और 40 लाख रुपए तक की कमाई कर रहे हैं।

Table of Contents
Cow Dung – 70 तरह के इको फ्रेंडली आर्टिकल्स बनाते हैं भीम राज, करोड़ों का टर्नओवर100 से अधिक महिलाओं को रोजगारसभी देखकर हंसने लगे, मजाक उड़ाने लगेढाई से तीन घंटे तक प्रोसेसिंगडायरी, किताब, कैलेंडर, ग्रीटिंग कार्ड, जैसे प्रोडक्ट तैयार
Cow Dung
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100 से अधिक महिलाओं को रोजगार

गौकृति के जरिये 100 से अधिक महिलाओं को रोजगार मिला है, जबकि 20-25 लोगों की टीम शर्मा के साथ सीधे काम करती है। गोबर ही एक मात्र चीज है जो गाय के साथ हमेशा रहता है 2014-15 की बात है। आयुर्वेद और गाय को लेकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाने वाले राजीव दीक्षित के कुछ क्लिप सुन रहा था। हम देखते हैं कि सड़कों पर भी आवारा गायें घुमा करती हैं, उनकी मौत भी हो जाती है। भीम राज कहते हैं, ऐसा भी कई बार सुनने में आया था कि साउथ अफ्रीका में हाथी के गोबर से कुछ प्रोडक्ट्स और पेपर तैयार किए जा रहे हैं। इसके बाद मैंने भी गाय के गोबर से कुछ करने की ठानी। जब मैंने गणित लगाया तो पता चला कि गाय की औसतन उम्र 15 साल होती है, जिसमें से वो 10 साल दूध नहीं देती है। जबकि गोबर ही एक मात्र चीज है जो गाय के साथ हमेशा रहता है।

चाहे वो दूध दे या न दे। भीम राज बताते हैं- मेरे बड़े भाई ने पागलखाना भेज देने तक की बात कही थी। घर वाले कहते थे- तुम्हारे दिमाग में गोबर भर गया है। गोबर से पेपर बनाएगा, अरे! किसी के मुंह से कभी सुना है। मैं भी डर रहा था कि इतना अच्छा प्रिंटिंग प्रेस का बिजनेस है। यदि इसमें फेल हो गया, तो सब चौपट हो जाएगा। क्या करूंगा? मैंने हिम्मत की। दोस्तों, रिश्तेदारों से बिजनेस स्टार्ट करने के लिए पैसे मांगे, लेकिन किसी ने नहीं दिया। सब यही कहते थे- ‘पहली बार सुन रहा हूं कि कोई गोबर से कागज बनाएगा।’ भीम राज कहते हैं, मैंने विजुअल आर्ट में डिप्लोमा किया है। 20 साल से भी अधिक समय से प्रिंटिंग प्रेस चला रहा हूं। कस्टमर की डिमांड को समझता था, लेकिन सोचता था कि गोबर से बनाए पेपर का इस्तेमाल कौन करेगा?

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Cow Dung
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सभी देखकर हंसने लगे, मजाक उड़ाने लगे

मशीनों को खुद से डिजाइन किया, ऑर्डर देकर बनवाया। शुरुआत में तो इसे चलाना भी नहीं आता था। पहली बार खुद से पेपर बनाया, तो किसी नक्शे की तरह टेढ़ा-मेढ़ा बन गया। सभी देखकर हंसने लगे, मजाक उड़ाने लगे। फिर मैंने इंटरनेट को खंगालना शुरू किया। कई सारे वीडियो देखकर प्रोडक्ट बनाना सीखा। गोबर से पेपर बनाने का प्रोसेस क्या होता है? भीम राज कहते हैं, शहर में बहुत सारी गोशालाएं हैं, लेकिन पहले कोई गोबर खरीदने वाला नहीं था। गोबर से सिर्फ खाद बनाई जाती थी। मैंने ताजा गोबर खरीदना शुरू किया, क्योंकि पुराने गोबर में कीड़े पड़ जाते हैं। गोबर के साथ वेस्टेज कॉटन यानी कपड़ों के कतरन को मशीन से बारीक काटकर अच्छी तरह मिक्स किया जाता है। इसमें 50% तक गोबर मिलाकर प्रोसेसिंग और ग्राइंडिंग की जाती है।

Cow Dung
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ढाई से तीन घंटे तक प्रोसेसिंग

करीब ढाई से तीन घंटे तक इसकी प्रोसेसिंग होती है। जिसके बाद यह पल्प के रूप में तैयार हो जाता हैं। इस पल्प को पहले एक टैंक में भरते हैं, फिर स्क्वायर जालीदार फ्रेम पर अच्छी तरह से फैलाया जाता है। प्रेशर मशीन के साथ पानी निकाला जाता है और फिर उसे सूखने के लिए छोड़ देते हैं। 24 घंटे में यह अच्छी तरह सूख जाता है। जिस मोटाई के मुताबिक हमें प्रोडक्ट की जरूरत होती है, उतने पल्प को फ्रेम में डालकर पेपर तैयार किया जाता है। इसे और गाढ़ा बनाने के लिए ग्वार गम डाला जाता है। कलर करने के लिए हल्दी और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट का इस्तेमाल करते हैं। प्रोडक्ट को बेचना कैसे शुरू किया? भीम राज को 2016-17 के वो दिन याद आ जाते हैं, जब उनके पेपर को लोग देखकर ही फेंक देते थे। कहते थे- इस पेपर को कौन खरीदेगा? लेकिन उसके बाद मैंने प्रोडक्ट बनाना शुरू किया। आज 70 तरह के आइटम्स की सेलिंग करता हूं। हर दिन 3 हजार शीट पेपर तैयार करता हूं।

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Cow Dung
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डायरी, किताब, कैलेंडर, ग्रीटिंग कार्ड, जैसे प्रोडक्ट तैयार

अब तो आलम ये है कि लबासना (लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन) जैसे बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट से ऑर्डर आते हैं। हम पेपर, डायरी, किताब, कैलेंडर, ग्रीटिंग कार्ड, फाइल, फोल्डर जैसे प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। भीम राज के इस बिजनेस में उनकी बेटी भी साथ दे रही हैं। वो कहते हैं, जागृति ने जयपुर से ही विजुअल आर्ट्स में बैचलर किया है। प्रोडक्ट डिजाइन में मॉडिफिकेशन के बाद अब डिमांड बहुत ज्यादा हो गई है। बिजनेस लगातार ग्रोथ कर रहा है। लोग प्लास्टिक के बदले हमारे प्रोडक्ट को खरीद रहे हैं। अधिकांश कॉलेज-यूनिवर्सिटी में होने वाले सेमिनार, वर्कशॉप, कॉन्फ्रेंस में हमारे प्रोडक्ट की डिमांड है। कोरोना के बाद से भीम राज ऑनलाइन प्रोडक्ट भी बेच रहे हैं।

साथ ही कई शहरों में उनके डिस्ट्रीब्यूटर्स भी हैं। भीम राज कहते हैं, प्रोडक्ट पर 50% का मुनाफा है। यदि किसी प्रोडक्ट को बनाने में 100 रुपए का खर्च आता है, तो हम उसकी मार्केट कॉस्ट 200 रुपए रखते हैं, जो 150 रुपए तक में बिक जाता है। अब अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर भी हमारे प्रोडक्ट उपलब्ध हैं। हम भारत के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में अपने प्रोडक्ट भेजे हैं।

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