India America Nuclear Deal : 17 साल के बाद लागू हुआ अमेरिका से परमाणु समझौता
India America Nuclear Deal – भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते (2008) पर दस्तखत के 17 साल बाद अमेरिकी अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने होल्टेक इंटरनेशनल को भारत में परमाणु रिएक्टरों के निर्माण और डिजाइनिंग के लिए नियामक मंजूरी दे दी है। होल्टेक को छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) तकनीक को तीन भारतीय कंपनियों होल्टेक एशिया, लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड और टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड के साथ साझा करने की अनुमति दी गई है। असल में यह तकनीक 10सीएफआर810 नामक अमेरिकी प्रतिबंधात्मक नियमों के तहत आती है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग की यह मंजूरी 10 वर्षों तक वैध होगी और हर 5 साल में इसकी समीक्षा की जाएगी।

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तकनीक हस्तांतरण की अनुमति नहीं दी
हालांकि, अमेरिका ने प्रमुख भारतीय सरकारी एजेंसियों न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल), एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (एईआरबी) और एनटीपीसी लिमिटेड को अभी तकनीक हस्तांतरण की अनुमति नहीं दी है। भारत ने अब तक इन एजेंसियों के लिए अप्रसार की गारंटी नहीं दी है। होल्टेक भविष्य में इन सरकारी संस्थानों को इस सूची में शामिल करने के लिए आवेदन कर सकता है।
अमेरिका ने यह स्पष्ट किया है कि बिना अनुमति के इस तकनीक को अन्य किसी पक्ष के साथ साझा नहीं किया जा सकता और इसे केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही उपयोग करना होगा, जो अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों के अनुरूप होगा। होल्टेक को तिमाही रिपोर्ट में अमेरिकी ऊर्जा विभाग को तकनीक हस्तांतरण से जुड़ी विस्तृत जानकारी देनी होगी।

गुजरात और पुणे में उत्पादन सुविधाएं
यह मंजूरी भारत-अमेरिका समझौते के बाद एक दशक से अधिक समय तक लंबित रही बाधाओं को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है। भारत के न्यूक्लियर डैमेज लॉ और आपूर्तिकर्ता की जिम्मेदारी से जुड़ी कानूनी अड़चनों के कारण विदेशी निवेशक हतोत्साहित हो रहे थे। होल्टेक की स्थापना भारतीय-अमेरिकी उद्योगपति क्रिस पी. सिंह ने की थी और इसकी गुजरात और पुणे में उत्पादन सुविधाएं हैं।
कंपनी ने संकेत दिया है कि यदि पूरी तरह से उत्पादन शुरू होता है तो वह भारत में अपने कार्यबल का विस्तार करेगी। यह फैसला भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। जुलाई 2007 में भारत और अमेरिका के बीच हुए समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग को सक्षम बनाना था। तब से लेकर अब तक जमीनी स्तर पर कोई प्रोग्रेस नहीं हुई है और इसे लेकर अभी तक कोई इन्वेस्टमेंट नहीं हुआ है। ऐसे में अमेरिका ऊर्जा विभाग का ये फैसला भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक लाभ के रूप में देखा जा रहा है।

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शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों के लिए होगा इस्तेमाल
यह ऑथराइजेशन भारत सरकार द्वारा 3 मार्च, 2025 को दिए जाने वाले इस आश्वासन के भी अधीन है कि तीन चयनित निजी संस्थाएं – एलएंडटी, टीसीई और होलटेक एशिया – होलटेक से ट्रांसफर टेक्नोलॉजी और सूचना का उपयोग केवल अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सुरक्षा उपायों के तहत शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों के लिए करेंगी न कि परमाणु हथियारों या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरणों या किसी सैन्य उद्देश्य के लिए। अब तक, रेगुलेशन ने होलटेक जैसी अमेरिकी कंपनियों को भारत जैसे देशों को सख्त सुरक्षा उपायों के तहत उपकरण निर्यात करने की क्षमता प्रदान की है, लेकिन उन्हें भारत में किसी भी परमाणु उपकरण के निर्माण या किसी भी परमाणु डिजाइन कार्य को करने से स्पष्ट रूप से रोक दिया है।
26 मार्च के ऑथराइजेशन में प्रमुख शर्तें हैं कि टेक्नोलॉजी और सूचना या इससे प्राप्त वस्तुओं को संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार की पूर्व लिखित सहमति के बिना भारत में या संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर अन्य देशों में किसी अन्य संस्था या अंतिम उपयोगकर्ता को दोबारा ट्रांसफर नहीं किया जाएगा। साथ ही भारतीय अंतिम उपयोगकर्ता भारत सरकार द्वारा विषय भाग 810-नियंत्रित परमाणु प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं।