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Reading: Second World War: इतिहास का सबसे बड़ा संघर्ष, 6 साल तक चला था विश्व युद्ध
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WeStory > हिंदी न्यूज़ > Second World War: इतिहास का सबसे बड़ा संघर्ष, 6 साल तक चला था विश्व युद्ध
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Second World War: इतिहास का सबसे बड़ा संघर्ष, 6 साल तक चला था विश्व युद्ध

द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939-45 के बीच होने वाला एक सशस्त्र विश्वव्यापी संघर्ष था। यह इतिहास का सबसे बड़ा संघर्ष था जो लगभग छह साल तक चला था। अनुमान है कि एक सितंबर 1939 से दो सितंबर 1945 तक चले इस युद्ध

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/01/31 at 4:16 PM
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16 Min Read
Second World War
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Second World War: 7 से 8.5 करोड़ लोगों की हुई थी मौत

द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939-45 के बीच होने वाला एक सशस्त्र विश्वव्यापी संघर्ष था। यह इतिहास का सबसे बड़ा संघर्ष था जो लगभग छह साल तक चला था। अनुमान है कि एक सितंबर 1939 से दो सितंबर 1945 तक चले इस युद्ध में न केवल 7 से 8.5 करोड़ लोग मारे गए बल्कि भूखमरी, तंगहाली और महंगाई भी बढ़ी। इस युद्ध के कई प्रमुख कारण थे। जिसकी नींव प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ही पड़ गई थी। वर्साय संधि की कठोर शर्तें, आर्थिक मंदी, तुष्टीकरण की नीति, जर्मनी और जापान में सैन्यवाद का उदय, राष्ट्र संघ की विफलता आदि इसके कारण प्रमुख कारणों में गिना जाता है।

Table of Contents
Second World War: 7 से 8.5 करोड़ लोगों की हुई थी मौतऐसे हुई दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआतहवा में लड़ी जाने वाली पहली लड़ाईसोवियत संघ की सेनाओं ने धूल चटा दीअमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिरायाहिटलर ने आत्महत्या कर लीराजशाही का अंत हो गयामहंगाई और बेरोजगारी तेजी से बढ़ीकई शहर हो गए थे तबाहब्रिटेन को भारी आर्थिक हानिजर्मनी में 70 लाख से अधिक लोग बेघरफ्रांस, बेल्जियम और नीदरलैंड को भारी नुकसानयूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं हो गई चौपट

द्वितीय विश्व युद्ध की कहानी प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति से शुरू होती है। प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार हुई। इसके बाद विजयी मित्र राष्ट्रों जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, अमेरिका और जापान आदि देश शामिल थे, उन्होंने जर्मनी को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया। इस संधि के तहत जर्मनी को युद्ध का दोषी मानकर उस पर आर्थिक दंड लगाया गया। इस कारण उसे अपनी भूमि के एक बड़े हिस्से से हाथ धोना पड़ा।

Second World War
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साथ ही उस पर दूसरे राज्यों पर कब्जा करने की पाबंदी लगा दी गई और उसकी सेना का आकार भी सीमित कर दिया गया। जर्मनी को यह संधि अपमानजनक लगी और इसी वजह से वहां अति-राष्ट्रवाद के प्रसार का रास्ता खुला। इधर इटली में 1922 में बेनिटो मुसोलिनी और जर्मनी में 1933 में एडोल्फ हिटलर के रूप में फासीवादी तानाशाही सरकारें बन गई। इस युद्ध में दुनिया के 30 से अधिक देश शामिल थे।

ऐसे हुई दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत

हिटलर ने खुले तौर पर वर्साय की संधि का उल्लंघन किया और जर्मनी की सेना तथा हथियारों का गुप्त रूप से निर्माण शुरू कर दिया। जर्मनी ने वादा किया था कि वह चेकोस्लोवाकिया या किसी अन्य देश पर आक्रमण नहीं करेगा, लेकिन यह वादा तोड़ते हुए जर्मनी ने हिटलर की अगुआई में मार्च 1939 में चेकोस्लोवाकिया पर हमला करके उस पर कब्जा जमा लिया। जर्मन सेनाओं ने इसके बाद एक सितंबर 1939 को पोलैंड पर धावा बोला।

पोलैंड पर यह हमला देख ब्रिटेन और फ्रांस बौखलाए और वे उसकी मदद के लिए आगे बढ़े। उन्होंने जर्मनी के पोलैंड पर आक्रमण करने के दो दिन बाद जर्मनी के खिलाफ हमला बोल दिया। इस हमले से ही दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। युद्ध की इस अवधि को वाक् युद्ध के रूप में जाना जाता है।

हवा में लड़ी जाने वाली पहली लड़ाई

यह युद्ध भी पहले विश्वयुद्ध की तरह दो गुटों के बीच लड़ा गया था। एक ओर थे धुरी राष्ट्र-जिसमें जर्मनी, इटली, जापान, ऑस्ट्रिया शामिल थे। तो वहीं दूसरी ओर थे मित्र राष्ट्र जिनमें ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ, अमेरिका शामिल रहा। शुरू में जर्मनी को सफलता मिली और उसने फ्रांस को जीत लिया। फ्रांस पर जीत के बाद हिटलर ने ब्रिटेन पर आक्रमण के मंसूबे पाल लिए। जर्मनी ने ब्रिटेन पर 1940 के जुलाई से सितंबर तक ताबड़तोड़ हमले किए।

यह पूरी तरह से हवा में लड़ी जाने वाली पहली लड़ाई थी। हालांकि कुछ समय बाद जर्मनी ने ब्रिटेन पर आक्रमण का अपना इरादा रद्द कर दिया। मित्र देशों के प्रमुख नेता रूस के जोसेफ स्टालिन, अमेरिका के फ्रैंकलिन रूजवेल्ट और ब्रिटेन के विंस्टन चर्चिल थे, जबकि धुरी राष्ट्र के प्रमुख लीडर जर्मनी के एडोल्फ हिटलर, इटली के बेनिटो मुसोलिनी और जापान के हिरोरितो थे।

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सोवियत संघ की सेनाओं ने धूल चटा दी

एक सितंबर 1939 को शुरू हुए दूसरे विश्व युद्ध का अंत 2 सितंबर 1945 को हुआ था। धुरी राष्ट्र के दो फैसलों की वजह से दूसरे विश्व युद्ध का अंत हुआ। 22 जून 1941 को जर्मनी ने 30 लाख सैनिकों के साथ यूएसएसआर पर हमला कर दिया था। जर्मन सेना मॉस्को के नजदीक पहुंच गए थे। लेकिन सर्दी ने जर्मन सेना का मनोबल तोड़ दिया। जर्मन सेनाओं को सोवियत संघ की सेनाओं ने धूल चटा दी। 2 साल में 20 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई।

आखिरकार जर्मन कमांडर फ्रेडरिक पॉलस ने रूस की सेना के सामने सरेंडर कर दिया। ये सरेंडर जर्मनी की हार का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। 1941 में जापान के अमेरिका के पर्ल हार्बर नेवी बेस पर हवाई हमले से अमेरिका भी इस युद्ध शामिल हो चुका था। इस हमले के कुछ दिनों बाद जर्मनी ने अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। अब तक मित्र राष्ट्रों को यह खबर लग चुकी थी कि नाजियों ने यहूदी लोगों की सामूहिक हत्या कर रहा है। अमेरिका ने इन हत्याओं का बदला लेने का वादा किया।

अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराया

उधर, 7 दिसंबर 1941 को जापान ने अमेरिका के पर्ल हार्बर पर हमाल बोल दिया था। इसके बाद अमेरिका ने जापान और धुरी राष्ट्र के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। 9 जुलाई 1943 को मित्र सेनाओं ने सिसिली पर हमला कर दिया। कुछ हफ्तों में इटली के तानाशाह मुसोलिनी का तख्तापलट हो गया। इसके बाद धुरी राष्ट्रों की फिलीपींस, रोमानिया, हंगरी, बाल्कन में हार मिली। जर्मनी और इटली की हार के बाद भी जापान हार मानने को तैयार नहीं था।

अमेरिका और ब्रिटेन जपान को सरेंडर पर जोर दे रहे थे। इसके बाद अमेरिका ने वो कर दिया, जिसे इंसानी इतिहास की सबसे बड़ी तबाही हुई। 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम गिरा दिया। इशके बाद 3 दिन बाद 9 अगस्त को नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया गया। इससे हुई तबाही ने जापान को सरेंडर के लिए मजबूर कर दिया। जापान के राजा हिरोहितो ने सरेंडर कर दिया और विश्व युद्ध का अंत हो गया।

हिटलर ने आत्महत्या कर ली

अब तक ब्रिटेन भी जर्मनी को सबक सिखाने के इंतजार में था। उसकी सेनाओं ने उत्तरी अफ्रीका और स्टालिनग्राद पर जवाबी कार्रवाई की। जर्मनी ने फरवरी 1943 में स्टालिनग्राद में सोवियत संघ के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। जर्मन सेना की यह पहली बड़ी हार थी। दूसरी तरफ उत्तरी अफ्रीका में जर्मन और इतालवी सेना मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर हुई। जर्मनी की इस पराजय को हिटलर बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने 30 अप्रैल 1945 को आत्महत्या कर ली।

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जिसके बाद जर्मनी ने आत्मसमर्पण कर दिया। दूसरी तरफ अमेरिका ने 6 अगस्त और 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु बम गिरा दिए। जिसमें लाखों लोग मारे गए। इससे 2 सितंबर 1945 को जापान ने सरेंडर कर दिया। इस तरह जापान पर परमाणु बम गिराने के साथ दूसरा विश्व युद्ध अपने अंजाम पर पहुंच गया।

राजशाही का अंत हो गया

दूसरे विश्व युद्ध में मित्र देशों के 6.1 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। इसमें 1.6 करोड़ सैनिक और 4.5 करोड़ आम नागरिक थे। जबकि युद्ध में धुरी राष्ट्र के 80 लाख सैनिक मारे गए थे और 40 लाख आम लोगों की मौत हुई थी। इस युद्ध के बाद जर्मनी से नाजीवाद, इटली से फासीबाद और जापान से राजशाही का अंत हो गया। दूसरे विश्व युद्ध के अंत के बाद दुनिया में न्यूक्लियर एज की शुरुआत हुई। अमेरिका और यूएसएसआर के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हुई। दुनिया के सबसे बड़े संगठन लीग ऑफ नेशंस को भंग कर दिया गया। इसकी जगह यूनाइटेड नेशंस की स्थापना की गई। दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया की आर्थिक हालत खराब थी। जिसकी वजह से दुनिया के नक्शे पर कई नए देशों का जन्म हुआ। एशिया और अफ्रीका के जिन देशों को अपनिवेश बनाया गया था, वो धीरे-धीरे आजाद होने लगे।

महंगाई और बेरोजगारी तेजी से बढ़ी

दूसरे विश्व युद्ध में ग्लोबल सप्लाई श्रृंखला ठप हो गई थी। जब युद्ध खत्म हुआ तो सामानों की मांग बढ़ने लगी। लेकिन इसकी आपूर्ति कम थी। महंगाई तेजी से बढ़ी। दूसरे विश्व युद्ध के पहले ही जर्मनी में बेरोजगारी चरम पर थी। 1930 से 1933 के बीच जर्मनी में बेरोजगारी 20 लाख से बढ़कर 60 लाख हो गई थी। दूसरे विश्व युद्ध में हंगरी की 40 फीसदी तक की संपत्ति खत्म हो गई थी। उस वक्त हर 15 घंटे में हंगरी में महंगाई बढ़ती थी। इस दौरान ही यूनाइटेड नेशंस मॉनिटरी एंड फाइनेंशियल कॉन्फ्रेंस की स्थापना की गई। जिसका मकसद दुनिया को विश्व युद्ध और आर्थिक संकट से जूझ रहे देशों की मदद करना था।

कई शहर हो गए थे तबाह

दूसरे विश्व युद्ध से मची तबाही कई कठिनाइयों का कारण बनी। इसमें करोड़ों लोगों की जान चली गई। कई परिवार बेघर हो गए और न जाने कितनों परिवारों को एक दूसरे से अलग कर दिया। ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और बेल्जियम के कुछ प्रमुख औद्योगिक और सांस्कृतिक केंद्रों सहित कई शहर तबाह हो गए। इसके अलावा परिवहन के बुनियादी ढांचे जैसे रेलवे, सड़क, पुल और बंदरगाहों को हवाई हमलों के दौरान व्यापक क्षति हुई थी।

कई देशों के शिपिंग बेड़े डूब गए थे। अनुमान के मुताबिक, जर्मनी में 70% आवास खत्म हो गए थे। वहीं सोवियत संघ में 1,700 शहर और 70 हजार गांव नष्ट हो गए थे। फैक्ट्रियां और कार्यशालाएं बर्बाद हो गई थीं। कई जंगल और खेत भी नष्ट हो गए थे। जापानियों द्वारा डाइक्स को नष्ट करने के बाद उत्तरी चीन में लाखों एकड़ जमीन बर्बाद हो गई थी। कई यूरोपीय लोग प्रतिदिन एक हजार से भी कम कैलोरी पर जीवित थे। नीदरलैंड में तो लोग ट्यूलिप बल्ब खा रहे थे।

ब्रिटेन को भारी आर्थिक हानि

इस लड़ाई में ब्रिटेन को भारी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ा था। वहीं फ्रांस को जर्मनों द्वारा तबाह कर दिया गया था। वह अपने लोगों की देखभाल करने और नागरिक समाज में अपनी सेना को फिर से संगठित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। नाजियों ने जर्मन वॉर मशीन के लिए अपने कब्जे वाले यूरोप में कई संसाधनों और खेतों को सुखा दिया था। वहीं, जर्मन कारखानों और खेतों में लाखों पुरुषों और महिलाओं को जबरन मजदूरी करने से मुक्ति मिल गई।

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ब्रिटेन की लड़ाई में एक लंबे समय तक जर्मनों ने बमबारी अभियान चलाया। इसका लक्ष्य दक्षिणी इंग्लैंड को कमजोर करना था। ब्लिट्ज के दौरान 20 लाख से अधिक घर नष्ट हो गए थे। 60 हजार नागरिक मारे गए और 87 हजार गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इनमें कई महिलाएं और बच्चे शामिल थे। वास्तव में युद्ध के शुरुआती वर्षों के दौरान सैनिकों से ज्यादा नागरिकों को जान का खतरा था।

जर्मनी में 70 लाख से अधिक लोग बेघर

जर्मनी में मित्र देशों की बमबारी ने कई शहरों को समतल कर दिया था। 70 लाख से अधिक लोग बेघर हो गए। लगभग छह लाख नागरिकों की मृत्यु हो गई और आठ लाख 50 हजार नागरिक घायल हो गए। एएएफ छापे ने देशभर में कुल आवास स्टॉक के लगभग 20 प्रतिशत को नष्ट कर दिया। बड़े शहरों में आवास स्टॉक का 45 प्रतिशत क्षतिग्रस्त हो गया। उदाहरण के लिए वूर्ज्बर्ग में निर्मित क्षेत्र का 89% नष्ट हो गया, जबकि हेम्बर्ग और वुप्पर्टल का 75% और रम्सचे और बोचुम का आंकड़ा 83% था।

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फ्रांस, बेल्जियम और नीदरलैंड को भारी नुकसान

फ्रांस में हुई हानि उसके वार्षिक राष्ट्रीय आय के तीन गुना के बराबर थी। बेल्जियम और नीदरलैंड को अपने संसाधनों के समान अनुपात में नुकसान उठाना पड़ा। ग्रेट ब्रिटेन में लगभग 30 प्रतिशत घर नष्ट या क्षतिग्रस्त हो गए थे। वहीं यह आंकड़ा फ्रांस, बेल्जियम और नीदरलैंड में लगभग 20 प्रतिशत था। सभी कब्जे वाले देशों में जनशक्ति की कमी, कृषि पशुओं के विनाश, मशीनरी और उर्वरकों की कमी के कारण कृषि सुविधाओं पर भारी असर पड़ा। प्रमुख रेल केंद्रों और पुलों पर बमबारी से आंतरिक परिवहन प्रणाली पूरी तरह से बाधित हो गई।

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यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं हो गई चौपट

वर्ष 1945 तक पश्चिमी यूरोप के महाद्वीपीय देशों की अर्थव्यवस्थाएं लगभग पूर्ण पक्षाघात की स्थिति में थीं। पूर्वी यूरोप में तबाही और भी बदतर थी। पोलैंड में 30 प्रतिशत भवनों के नष्ट होने के साथ-साथ 60 प्रतिशत स्कूलों, वैज्ञानिक संस्थानों और सार्वजनिक प्रशासन की सुविधाओं, अपनी कृषि संपत्ति का 30-35 प्रतिशत और 32 प्रतिशत खानों, विद्युत शक्ति और उद्योगों का नुकसान उठाना पड़ा। यूगोस्लाविया ने 20.7 प्रतिशत आवासों को नष्ट होने की सूचना दी। 

जर्मनी में ही यू।एस। स्ट्रैटेजिक बॉम्बिंग सर्वे ने पाया कि 49 सबसे बड़े शहरों में 39 प्रतिशत आवास इकाइयां नष्ट हो गईं या गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गईं। केंद्रीय व्यापार जिलों को आमतौर पर मलबे में बदल दिया गया था, केवल उपनगरीय छल्ले एक नष्ट कोर के आसपास खड़े थे।

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