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Reading: Poisonous Air: भारत में लोगों की उम्र को कम कर रही जहरीली हवा
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सेहत

Poisonous Air: भारत में लोगों की उम्र को कम कर रही जहरीली हवा

जहरीली हवा पूरे भारत में लोगों की उम्र को कम कर रही है, बेंगलुरु गंभीर जल संकट से जूझ रहा है, जबकि सिक्किम और हिमाचल प्रदेश अभी भी पिछले साल विनाशकारी हिमस्खलन और बाढ़ से पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं।

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/05/22 at 2:38 PM
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6 Min Read
Poisonous Air
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Poisonous Air: पर्यावरणीय मुद्दों को चुनावों में क्यों नहीं मिलती तवज्जो

Poisonous Air पूरे भारत में लोगों की उम्र को कम कर रही है, बेंगलुरु गंभीर जल संकट से जूझ रहा है, जबकि सिक्किम और हिमाचल प्रदेश अभी भी पिछले साल विनाशकारी हिमस्खलन और बाढ़ से पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बावजूद,ये मुद्दे आजीविका संबंधी चिंताओं के आगे गौण बने हुए हैं और राष्ट्रीय चुनावों में इनका अभी भी महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं है। उनका कहना है कि इसकी एक वजह यह है कि भारत में राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन मुख्य रूप से आजीविका के मुद्दों पर केंद्रित होते हैं।

Table of Contents
Poisonous Air: पर्यावरणीय मुद्दों को चुनावों में क्यों नहीं मिलती तवज्जोसामाजिक प्रेरणा की कमी बड़ी बाधा‘जलवायु उपवास’ का नेतृत्व कर रहे वांगचुकघोषणापत्रों में जरूरी हो जलवायु परिवर्तनसार्थक चर्चा के लिए एकसाथ आना जरूरी
Poisonous Air
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सामाजिक प्रेरणा की कमी बड़ी बाधा

शिमला के पूर्व उप महापौर टिकेंदर सिंह पंवार ने बताया कि पर्यावरण को आजीविका से जोड़ने वाली सामाजिक प्रेरणा की कमी एक बड़ी बाधा है। उन्होंने विकास के जलवायु जोखिम की सूचना देने की केरल के दृष्टिकोण की सराहना की, लेकिन आपदाओं को आजीविका और शासन के मुद्दों से जोड़ने वाले ऐसे आंदोलनों की अनुपस्थिति के कारण हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में चुनौतियों का उल्लेख किया। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सदस्य ने कहा कि देश में पर्यावरण संबंधी मुद्दों को मुख्यधारा में लाने में और पांच से 10 साल लगेंगे।

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Poisonous Air
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‘जलवायु उपवास’ का नेतृत्व कर रहे वांगचुक

पंवार ने कहा,‘‘आप देख सकते हैं कि सोनम वांगचुक लद्दाख में क्या कर रहे हैं। यहां तक कि दिल्ली में भी, जब वायु प्रदूषण होता है, तो आप कुछ शोर सुनते हैं। लेकिन ये सिर्फ नेपथ्य में हैं।” वांगचुक लद्दाख को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा देने की मांग को लेकर ‘जलवायु उपवास’ का नेतृत्व कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी और जनजातीय पहचान की रक्षा करने में मदद मिलेगी। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) वैश्विक जोखिम रिपोर्ट-2024 में प्रतिकूल मौसमी घटनाओं और पृथ्वी प्रणालियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन को अगले दशक में दुनिया के सामने सबसे बड़ी चिंताओं के रूप में उल्लेख किया गया है।

Poisonous Air
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घोषणापत्रों में जरूरी हो जलवायु परिवर्तन

येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन (वाईपीसीसीसी) और सेंटर फॉर वोटिंग ओपिनियन एंड ट्रेंड्स इन इलेक्शन रिसर्च (सीवोटर) द्वारा 2021-2022 में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक 84 प्रतिशत भारतीय मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन वास्तविक है और उनमें से अधिकांश स्वीकार करते हैं कि यह मानवजनित गतिविधियों से उत्पन्न हुआ है। कई छोटे राजनीतिक दलों ने भी पिछले चुनावों के लिए अपने घोषणापत्रों में जलवायु परिवर्तन को प्राथमिकता दी है, जिसमें टिकाऊ कृषि, पर्यावरण-पर्यटन और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। दिल्ली स्थित ‘विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ के सीनियर रेजिडेंट फेलो देबादित्यो सिन्हा ने कहा,‘‘फिर भी, बहुत से लोग चुनाव में इन मुद्दों पर वोट नहीं देंगे।”

उन्होंने कहा, ‘‘बुनियादी मानवीय जरूरतों पर ध्यान देने के बाद ही पर्यावरण संबंधी चिंताओं को चुनावों में प्रमुखता मिलेगी। भोजन, पानी और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाती है। आजीविका कमाने में व्यस्त अधिकांश आबादी पर्यावरणीय मुद्दों को तब तक नजरअंदाज करती है, जब तक कि ये सीधे तौर पर उनके दैनिक जीवन को प्रभावित न करें।” सिन्हा ने कहा कि लेकिन उच्च प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों में, पर्यावरणीय मुद्दों के संबंध में लोगों के बीच अधिक राजनीतिक जागरूकता होती है। उन्होंने कहा कि इन राज्यों में, राजनीतिक दलों से पर्यावरणीय क्षति की स्थिति को बदलने, जंगलों और जल संसाधनों की सुरक्षा और वायु प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन से निपटने जैसी चिंताओं को प्राथमिकता देने की उम्मीद की जाती है।

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Poisonous Air
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सार्थक चर्चा के लिए एकसाथ आना जरूरी

प्रख्यात पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने कहा कि वायु प्रदूषण शहरों के राजनीतिक एजेंडे में प्रमुखता से शामिल है, खासकर दिल्ली जैसे अत्यधिक प्रदूषित शहरी केंद्रों में, लेकिन पार्टी घोषणापत्रों में पर्यावरण संबंधी चिंताओं को शामिल करना भर महत्वपूर्ण एवं प्रभावी कार्रवाई की गारंटी नहीं है। स्वतंत्र थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट’ की प्रमुख नारायण ने कहा कि इन मुद्दों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए, सभी हितधारकों को सार्थक चर्चा के लिए एकसाथ आना चाहिए।

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से, वर्तमान खंडित और ध्रुवीकृत राजनीतिक परिदृश्य इस तरह के सहयोग को और अधिक कठिन बना देता है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस ने 2019 में पहली बार वन संरक्षण और वायु प्रदूषण को अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया। हालांकि, हिमालयी राज्यों के लिए भाजपा के ‘हरित बोनस’ जैसे वादे अधूरे हैं। कांग्रेस ने वायु प्रदूषण को राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के रूप में मान्यता दी और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को मजबूत करने का वादा किया। चुनाव घोषणा पत्र में शामिल करने के बावजूद, चुनाव के दौरान मुफ्त पानी और बिजली जैसे लोकलुभावन मुद्दे पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर हावी रहते हैं।

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