Sports Budget: खिलाड़ियों को भरपूर सुविधाएं मिलेंगी आएंगे ज्यादा पदक
अगर भारतीय खिलाड़ियों से हम भारत के लोग विश्व मंचों पर ज्यादा से ज्यादा पदकों की उम्मीद करते हैं तो हमें सरकार पर अपनी-अपनी तरह से यह दबाव बनाना होगा कि वह खिलाड़ियों को भरपूर सुविधाएं उपलब्ध कराए या फिर अमेरिका जैसे इस देश का कॉरपोरेट जगत आगे बढ़कर आए और विभिन्न खेलों को गोद लें। अमेरिका में हर साल विभिन्न खेल गतिविधियां सरकार को सालाना करीब 14 बिलियन डॉलर की कमाई करवाती हैं।
इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि अमेरिका का कॉरपोरेट जगत अपने देश में खेलों के विकास पर दोनों हाथ खोलकर खर्च करता है जिससे अमेरिका में खेलों का उच्चस्तर न सिर्फ अमेरिकी खिलाड़ियों को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में शुमार करवाता है बल्कि उनके इस गुणवत्तापूर्ण खेल प्रदर्शन से देश को अच्छी खासी कमाई भी करवाता है। अगर भारत सरकार के पास खेलों पर खर्च करने के लिए जरूरी बजट नहीं है तो इस देश के कॉरपोरेट जगत को बढ़कर आगे आना चाहिए ताकि हमारे असीमित सफलताओं वाले सपनों को सीमित बजट की मार न झेलनी पड़े। साल 2023 के खेल बजट के लिए 3,396.96 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे और इस साल के अंतरिम बजट में इस धनराशि में 45 करोड़ का इजाफा करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 3,442.32 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं और कहा जा रहा है कि भारत लगातार अपने खेल बजट को बढ़ा रहा है।

500 से 1000 गुना ज्यादा खर्च करते हैं विकसित देश
दुनिया के सारे विकसित देश भारत के मुकाबले अपने खिलाड़ियों पर और सालाना खेल गतिविधियों पर करीब 500 से 1000 गुना ज्यादा खर्च करते हैं। सवाल है फिर भारतीय खिलाड़ी विश्व स्तर पर इन विकसित देशों के खिलाड़ियों का मुकाबला कैसे करें क्योंकि भावनाएं अपनी जगह पर, राष्ट्रवाद अपनी जगह पर, खेलों में बादशाहत हासिल करने के लिए एलीट किस्म की ट्रेनिंग और बहुत महंगे उपकरणों के साथ-साथ एक ऐसी फोकस्ड जीवनशैली की जरूरत होती है जिसमें अथाह पैसे खर्च होते हैं। इस तरह देखा जाए तो आज की तारीख में विश्व खेल मंचों पर पदक जीतना महज जज्बे की बात नहीं है बल्कि खिलाड़ियों की ट्रेनिंग और उनको उपलब्ध करायी गई सुविधाओं के नतीजे होते हैं।
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हास्यास्पद है हमारा समूचा खेल बजट
हालांकि भारत में साल 2015 से लेकर 2024-25 तक लगातार खेल बजट में इजाफा होता रहा है लेकिन हमारा समूचा खेल बजट विकसित देशों और विशेषकर खेल महाशक्ति के रूप में उभरे देशों के सामने बहुत हास्यास्पद है। भारत की जो सबसे एलीट खेल परियोजना है जिसे साल 2015-16 से शुरू किया गया उसका नाम है ‘खेलो इंडिया’। साल 2015 में इस परियोजना के लिए 97.52 करोड़, 2016-17 के लिए 118.09 करोड़, साल 2017-18 के लिए 346.99 करोड़, साल 2018-19 के लिए 342.24 करोड़, साल 2020-21 के लिए 890.42 करोड़ और साल 2024-25 के लिए 900 करोड़ रुपये आवंटित किया गया। अमेरिका में खेल संस्थानों, स्टेडियमों आदि के रंग रोगन में हर साल इससे ज्यादा बड़ी धनराशि खर्च हो जाती है। इसलिए विश्व मंचों पर खास तौर पर ओलंपिक जैसे वैश्विक खेल मैदान पर पदक जीतना महज भावनाओं या जज्बे की बदौलत संभव नहीं है।
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चीन और भारत में जमीन-आसमान का फर्क
भारत जहां अपने कुल जीडीपी का महज 0.07 प्रतिशत खर्च करता है वहीं चीन साल 2022 में अपने खेल बजट में 5.9 फीसदी की बढ़ोतरी करके इसे अपने कुल जीडीपी के 1 फीसदी से ऊपर ले गया था। याद रखिए, चीन और भारत के जीडीपी में जमीन-आसमान का फर्क है क्योंकि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसका सकल घरेलू उत्पाद 18 ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा है जबकि हमारा जीडीपी अभी 3 और 4 ट्रिलियन के बीच झूल रहा है। इसलिए अगर भारत चीन की देखादेखी अपने खेल बजट में 5 फीसदी का इजाफा भी कर दे तो भी यह चीन के मुकाबले सिर्फ 20 फीसदी ही साबित होगा क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुना से भी ज्यादा बड़ी है।
आखिर भारत जो अपने आधारभूत संरचना उद्योग और निर्माण में जबरदस्त खर्च करके तेज रफ्तार चलकर अगले 20 सालों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना चाहता है, वह खेलों में कम से कम इतना निवेश तो नहीं करता कि हम आने वाले 20 सालों में ओलंपिक खेलों की पदक तालिका में पहले 10 देशों के भीतर अपने को देख पाएं। भारत में कतई टैलेंट की कमी नहीं है।
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बेपनाह एक्सपोजर है क्रिकेट में
जिन खेलों में भारतीय खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं मिली हैं, उन सभी खेलों में हमारे खिलाड़ियों ने दुनिया के किसी भी कोने के खिलाड़ियों को जबरदस्त टक्कर दी है और जिस खेल में हम आर्थिक रूप से दूसरे देशों के मुकाबले सम्पन्न हैं, जैसे क्रिकेट तो उसमें हम एक तरह की ‘महाशक्ति’ ही हैं। आज दुनिया की कोई भी ऐसी क्रिकेट टीम नहीं है जिसके विरुद्ध खेलते हुए भारतीय क्रिकेटर शानदार जीतें न हासिल करते हों। क्रिकेट में चूंकि पैसा है, इंफ्रास्ट्रक्चर है, आधुनिक तकनीक है और सबसे बड़ी बात बेपनाह एक्सपोजर है।
इसलिए भारत के क्रिकेटर सिर्फ विश्व स्तरीय नहीं बल्कि दुनिया के ज्यादातर खिलाड़ी भारतीयों से पीछे हैं। चाहे सचिन तेंदुलकर रहे हों या आज विराट कोहली। ऐसी बल्लेबाजी दुनिया के बहुत कम देशों के खिलाड़ी कर पाए हैं। इससे पता चलता है कि खेलों में कुछ कर गुजरने के लिए सिर्फ उपदेशों या मोटिवेशन से काम नहीं चलता बल्कि उसके लिए जबरदस्त तरीके से खर्च करना होता है और बेहतरीन से बेहतरीन खेल सुविधाएं खिलाड़ियों को मुहैया करानी होती हैं।

खेलों के लिए महज 24 रुपये
हालांकि अगर हम हिंदुस्तान की 140 करोड़ आबादी को ध्यान में रखकर इस बजट का मूल्याकंन करें तो हर भारतीय के हिस्से में साल भर के खेलों के लिए महज 24 रुपये आते हैं। क्या कोई देश जो अपने खेलों के लिए प्रति व्यक्ति महज 24 रुपये का बजट रखता हो, वह अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और कोरिया जैसे देशों का मुकाबला कर सकता है? एक अमेरिकन के लिए अमेरिका की सरकार औसतन एक साल के लिए 10,375 रुपये आवंटित करती है। अंदाजा लगाइये ये भारत में प्रति व्यक्ति खेल आवंटन के मुकाबले में कितना गुना ज्यादा है। सौ भी नहीं, करीब 500 फीसदी ज्यादा है। यह अकेले अमेरिका की बात नहीं। अमेरिका की तरह ही चीन अपने खिलाड़ियों पर और समूची खेल गतिविधियों पर हर साल अपने कुल जीडीपी का 1 फीसदी खर्च करता है जो साल 2022 में 461 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जितना भारत का कभी रक्षा बजट भी नहीं रहा।
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