Origin of the Moon: जब चंदा मामा बने तभी धरती पर जीवन आया
धरती पर जीवन की उत्पत्ति को लेकर तरह-तरह की थ्योरी दी जाती है। हाल ही में एक नयी थ्योरी आयी है। इस बार जो जानकारी आयी है वह रोचक तो है ही, साथ ही उससे संबंधित अध्ययन भारतीय मूल के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में हुआ है। इस अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि पृथ्वी पर जीवन के लिए जरूरी कार्बन, नाइट्रोजन और अन्य ऐसे तत्वों की प्राप्ति ग्रहों की टक्कर की उस घटना के बाद हुई जिसके परिणामस्वरूप 4.4 अरब वर्ष पहले चंद्रमा की उत्पत्ति हुई थी। अध्ययनकर्ताओं ने कहा, ‘प्राचीन काल में उल्कापिंडों के अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों को लम्बे समय से ज्ञात था कि पृथ्वी और सौर मंडल की आंतरिक कक्षाओं में स्थित चट्टानों वाले अन्य ग्रहों में विघटन होकर तत्व निकलते रहते हैं, लेकिन इसके समय और प्रणाली पर बहस चलती रही।’ एक पत्रिका में छपे अध्ययन में कहा गया है, ‘हमारी खोज पहली है जो सभी भू-रासायनिक साक्ष्यों के अनुरूप समय की व्याख्या कर सकती है।’ कहा गया कि प्रयोगों की कड़ी में लम्बे समय से माने जा रहे इस सिद्धांत के परीक्षण के लिए साक्ष्य जुटाये कि पृथ्वी पर जीवन के लिए जिम्मेदार तत्व एक ग्रह के साथ टक्कर के बाद पैदा हुए जिसके केंद्र में सल्फर की बहुतायत थी। साथ ही इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि पृथ्वी पर कार्बन-नाइट्रोजन का अनुपात और कार्बन, नाइट्रोजन तथा सल्फर की पूरी मात्रा चंद्रमा की उत्पत्ति के संगत है यानि जब चंदामामा बने तभी धरती पर जीवन भी आया।

ऐसे हुआ चांद का जन्म
चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में दूसरा शोध भी सामने आया है। इसका मानना है कि अरबों साल पहले एक बड़ा ग्रह पृथ्वी से टकराया था। इस टक्कर के फलस्वरूप चांद का जन्म हुआ। शोधकर्ता अपने इस सिद्धांत के पीछे अपोलो के अंतरिक्ष यात्रियों के ज़रिये चांद से लाए गए चट्टानों के टुकड़ों का हवाला दे रहे हैं। इन चट्टानी टुकड़ों पर ‘थिया’ नाम के ग्रह की निशानियां दिखती हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि उनकी खोज पुख़्ता करती है कि चंद्रमा की उत्पत्ति टक्कर के बाद हुए भारी बदलाव का नतीजा थी। वैसे ये कोई नया सिद्धांत नहीं है। ये पहले से माना जाता रहा है कि चांद का उदय खगोलीय टक्कर के परिणाम स्वरूप हुआ था। हालांकि एक दौर ऐसा भी आया जब कुछ लोग कहने लगे कि ऐसी कोई टक्कर हुई ही नहीं।
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पृथ्वी और थिया के बीच हुई टक्कर
वर्ष 1980 से आसपास से इस सिद्धांत को स्वीकृति मिली हुई है कि 4.5 बिलियन साल पहले पृथ्वी और थिया के बीच हुई टक्कर ने चंद्रमा की उत्पत्ति की थी। थिया का नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं में मौजूद सीलीन की मां के नाम पर रखा गया था। सीलीन को चांद की मां कहा जाता है। समझा जाता है कि टक्कर होने के बाद थिया और धरती के टुकड़े एक दूसरे में समाहित हो गए और उनके मिलने से चांद की पैदाइश हुई। ये सबसे आसान थ्योरी है जो कंप्यूटर सिमूलेशन से भी मेल खाती है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी दिक्क़त ये है कि किसी ने भी थिया की मौजूदगी का प्रमाण चांद के चट्टानों में नहीं देखा है। चंद्रमा पर बेशक थिया के निशान मिले हैं लेकिन इसकी संरचना आमतौर पर पृथ्वी सरीखी है। अध्ययनकर्ताओं की टीम के अगुवा यूनिवर्सिटी ऑफ गॉटिंगेन के डा. डेनियल हेवाट्ज के अनुसार, अब तक किसी को इस टक्कर सिद्धांत के इतने दमदार सबूत नहीं मिले थे। उन्होंने कहा, ”पृथ्वी और चंद्रमा के बीच छोटे-छोटे अंतर हैं, जिसे हमने इस नमूनों में खोज निकाला है। ये टक्कर की अवधारणा को पुख्ता करता है।” ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेलीडे उन वैज्ञानिकों में हैं, जो ये देखकर चकित हैं कि चांद की चट्टानों पर मिली थिया की सामग्री और पृथ्वी के बीच अंतर बहुत मामूली और सूक्ष्म हैं। ओपन यूनिवर्सिटी के डॉक्टर महेश आनंद इस शोध को रोमांचकारी बताते हैं लेकिन वह ये भी कहते हैं, “मौजूदा तथ्य चांद के लाए गए महज़ तीन चट्टानी नमूनों के आधार पर निकाला जा रहा है।” “हमें इन चट्टानों को पूरे चंद्रमा का प्रतिनिधि मानने के प्रति सावधानी बरतनी चाहिए। इस लिहाज से चांद की अलग-अलग चट्टानों का विश्लेषण भी ज़रूरी है तभी आगे कुछ पुष्टि की जानी चाहिए।”

मानवों की जींस की संरचना अलग थी
मानव की उत्पत्ति कहाँ से हुई-जहां से अन्य प्राणियों की उत्पत्ति हुई। बस मानवों की जींस की संरचना अलग थी। प्रत्येक प्राणी और वानस्पतिक बीजों की सभी के जींस और chromosoms के गुणसूत्रों पर यह निर्भर कर्ता है। पहली बार प्रकृति को प्राणियों का जन्म कराने में बहुत समय लगा होगा और वैसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई होंगी। जैसे स्टोर किए चावल में चावल की ही भांति कीड़े पड जाते है । कैसे पैदा हो जाते हैं कोई नहीं जानता। पर बाद में सभी प्राणियों की सहज उत्पत्ति के लिए प्रजनन की सुविधा दे दी। अब प्रथम बार जैसी परिस्थितियों की व्यवस्था की प्रतीक्षा आवश्यक नहिं है। पर चावल औरा घाव में बड़े बड़े कीड़े इस प्रकार पड जाते हैं कि प्रकृति अपनी प्रथम बार बिना प्रजनन के भी जीवन का उत्पन्न होना सम्भव है, यह प्रमाण अभी भी देती है। जैसे दूब घास अपनी गांठों में लगी जड़ों द्वारा भी उग जाती है और अपने बीजों के फैलने से भी उगती है। इस प्रकृति के लिए जिस की जितनी अधिक आवश्यकता होती है उसके उत्पन्न के लिए ऐसी ही दोहरी व्यवस्था यें उसने बना कर भी रखा है।
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मनुष्य धरती पर कैसे आया, अब भी पहेली
हर एक मनुष्य के पीछे उसके माता और पिता का हाथ होता हैं। आज तक कोई भी जीव वैज्ञानिक यह पता नहीं लगा पाया हैं की इस धरती का पहला मनुष्य कैसे पैदा हुआ। किसी भी चीज़ के होने के पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक कारण होते हैं। इन दोनों मतों के अपने अलग अलग प्रमाण होते है। इन दोनों मतों की वजह से यह सिद्ध नहीं हो पाया हैं की मनुष्य धरती पर कैसे आया। यह प्रश्न भी उठता हैं की इस धरती पर पहला जीव कौन था और उसकी उत्पत्ति कैसे हुई। इन प्रश्नों का उत्तर शायद भविष्य में जाकर मिल जाए और शायद कभी मिले ही नहीं परन्तु आज के समय में जितने भी प्रमाण हैं उनसे यह सिद्ध हो जाता हैं की मनुष्य की उत्त्पत्ति के पीछे कुछ न कुछ कारण तो जरूर था जिसका हम पता लगाने में असमर्थ रहे हैं। वैज्ञानिक रूप से देखे जाए तो इसके पीछे प्रकृति का बदलता स्वरुप हैं। वैज्ञानिको का ये प्रमाण उनकी लम्बे समय तक चली रिसर्च का परिणाम हैं। विज्ञान धार्मिक प्रमाणों को सत्य नहीं मानता। वे किसी भी बात के निश्चय तक तब तक नहीं पहुँचता जब तक की उसका कोई पक्का प्रमाण उनके सामने नहीं आ जाता। वैज्ञानिक रूप से माना जाए तो मानव करोड़ो साल पहले एक वानर था जो चारो पैर से चलता था। जैसे जैसे समय गुजरा उसकी जरुरत के साथ उसकी प्रवृत्ति में बदलाव आया। मानव ने अपने आप को प्रकृति के साथ अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए विकसित करा हैं।
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