Science Behind Navaratri Fasting: धार्मिक कर्मकांड में छिपी है एक वैज्ञानिक दृष्टि
हर देश को विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए न सिर्फ अपने एक स्वदेशी भाव भूमिका की भी जरूरत होती है बल्कि यह एक तरह से वैज्ञानिक विकास का महत्वपूर्ण आकर्षण भी होता है। भारत सरकार ने अगर यह लक्ष्य बनाया है कि अगले डेढ़ दशक में देश की सारी पुरानी और इस्तेमाल न होने वाली स्वदेशी तकनीकों का आधुनिक तरीके से इस्तेमाल शुरू किया जायेगा तो भारत स्वदेशी तकनीक के क्षेत्र में न केवल अपनी निजी हैसियत को बढ़ायेगा बल्कि विज्ञान का भी भला करेगा।
इसलिए विकसित भारत के लिए स्वदेशी विज्ञान के जरिये विकास का सपना देखना पूरी तरह से वैज्ञानिक चेतना है। विज्ञान दरअसल उस जगह भी होता है जहां हम नहीं समझते कि वह है। मसलन भारत में 2 सबसे बड़े मौसमों की संधिकाल में आने वाली नवरात्रि का व्रत पर्व भले धार्मिक कर्मकांड माने जाते हों लेकिन इनका गहन वैज्ञानिक विष्लेषण करें तो पता चलेगा कि कैसे हमारे पूर्वजों ने बरसात के बाद आने वाली शरद ऋतु के संधिकाल और हांड़ कंपाती सर्दियों के बाद व आग उगलती गर्मियों के पहले चैत्र में नवरात्रि के उपवास का नियम बनाकर वैज्ञानिक ढंग से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
मतलब यह कि भले नवरात्रि धार्मिक मनोभाव से मनाया जाता हो लेकिन उसके पीछे एक वैज्ञानिक दृष्टि छिपी है। हमारी ज्यादातर सांस्कृतिक गतिविधियों का एक मजबूत सिरा विज्ञान से जाकर जुड़ता है। इसलिए हमारे संस्कारों और संस्कृति से स्वदेशी विज्ञान का बहुत गहरा रिश्ता है। हाथ जोड़कर प्रणाम करना, झुककर पैर छूना, उगते सूर्य को अर्घ्य देना, सुबह सोकर उठने पर हाथों को रगड़कर आंखों में लगाना, ये आदतें भले सदियों से हमारे जीवन जीने का तरीका भर हों लेकिन इन सब तरीकों के पीछे एक ठोस विज्ञान मौजूद है।
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योग विद्या में जबरदस्त तकनीकी कौशल
यह अकारण नहीं है कि भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा भोजन व्यंजन हैं। दरअसल, ये हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में मौजूद वह प्रयोगशील वैज्ञानिक चिंतन परंपरा है जो भोजन में हजारों तरह के प्रयोग करके उसे अपने अनुकूल बनाती रही है। भारत के पास जो योग और कामशास्त्र का विज्ञान है वह मानवीय इतिहास की सबसे उन्नत और प्रसंस्कृत वैज्ञानिक चेतना है।
आज पूरी दुनिया की मेडिकल साइंस मानती है कि योगासनों में शरीर को न सिर्फ हमेशा स्वस्थ और सभी तरह के विकारों से मुक्त बनाये रखने की ताकत है बल्कि इस योग विद्या में इतना जबरदस्त तकनीकी कौशल है कि यह शरीर को रबड़ जैसा लचीला और उम्र के चिह्नों से बिल्कुल अछूता बनाये रख सकती है। पश्चिम का मेडिकल साइंस मानता है कि 300 से ज्यादा कठिन से कठिन बीमारियों को नियमित योग दिनचर्या जड़ से मिटा सकती है।
योग, ध्यान व आसनों में वह ताकत है जो किसी इंसान को 10, 20 नहीं बल्कि 100 साल तक की उम्र बढ़ा सकती है। जब हम इन्हें भारतीय संस्कृति या भारतीयों के संस्कार का हिस्सा कहते हैं तो भले हम इसे स्वदेशी विज्ञान न कहते हों लेकिन ये प्रक्रियाएं स्वदेशी विज्ञान ही हैं।
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भोज्य पदार्थों में पौष्टिकता का भंडार
भारत दुनिया का सबसे समृद्ध भोजन व्यंजन वाला देश है और अब साइंस इस बात की तस्दीक करती है कि भोजन सिर्फ कुछ अनाजों, सब्जियों और फलों को खाने योग्य बनाने का तरीका भर नहीं है या उनके इस्तेमाल का जरिया भर नहीं है बल्कि इस कला और संतुलन की मिश्रण तकनीक से हम विभिन्न भोज्य पदार्थों को औषधियों का रूप भी दे सकते हैं। उन्हें पौष्टिकता का भंडार बना सकते हैं।
नकारात्मकता की हद तक जाएं तो जहर भी उनसे निर्मित किया जा सकता है। यह विभिन्न भोज्य पदार्थों के मिश्रण और मिश्रित प्रतिक्रियाओं के नतीजों का ही कमाल है। इंसान जब जंगल में आम जैसे फल से पहली बार रूबरू हुआ होगा और कुछ दिनों के बाद उसके न होने पर उसे पाने के प्रयास किये होंगे तो उन्हीं प्रयासों का ही तो नतीजा सैकड़ों तरह के अचार, आम पापड़ और सैकड़ों दूसरे आम उत्पाद हैं। हाल के दशकों में स्वदेशी दृष्टिकोण और पारम्परिक ज्ञान प्रणालियों को मुख्यधारा के वैज्ञानिक अभ्यास में शामिल करने का चलन बढ़ा है।

रोजमर्रा की समस्याओं को सुलझाने की अंतर्दृष्टि
स्वदेशी विज्ञान वास्तव में स्वदेशी ज्ञान और विज्ञान का अनुप्रयोग है। यह एक समग्र ज्ञान प्रणाली है जो स्वदेशी लोगों की सांस्कृतिक परंपराओं और उनके क्षेत्र की समझ में निहित है। स्वदेशी विज्ञान में कहानी कहने, समारोहों और प्रत्यक्ष अनुभव के माध्यम से प्रसारित पारंपरिक और पारिस्थितिक ज्ञान (प्रविधि या तकनीक के रूप में) शामिल हैं। इस ज्ञान में औषधीय पौधों की जानकारी, जानवरों के हावभाव और उनके व्यवहार को समझना, मौसम के पैटर्न को जानना और दूसरी हजारों तरह की प्राकृतिक प्रक्रियाओं की गहरी समझ शामिल होती है।
स्वदेशी विज्ञान कई कारणों से महत्वपूर्ण होता है। इसमें रोजमर्रा की समस्याओं को सुलझाने की ताकत ही नहीं एक अंतर्दृष्टि भी होती है। वास्तव में सांस्कृतिक परंपराओं और हमारे जीवन जीने के तौर- तरीके वास्तव में हमारे स्वदेशी विज्ञान का हिस्सा होते हैं। भारत सरकार ने अब परंपरा और संस्कृति में समाये इस विज्ञान को महत्वपूर्ण तरीके से रेखांकित करने का मन बना लिया है। इसलिए वर्ष 2024 के राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की थीम ‘विकसित भारत के लिए स्वदेशी तकनीक’ है।
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने 6 फरवरी, 2024 को इसकी घोषणा की थी क्योंकि किसी देश का विकास परिदृश्य भले दुनिया की अत्याधुनिक तकनीक से बना दिखता हो लेकिन किसी देश का राष्ट्रीय चरित्र, उसकी संस्कृति और संस्कारों में समाए विज्ञान व प्रगतिशीलता के बोध से ही उभरकर आता है। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हमारी सदियों पुरानी घरेलू कार्यविधियां वास्तव में स्वदेशी प्रोद्योगिकियां ही होती हैं। हमारी जिंदगी जीने के तौर-तरीकों में जो समझ होती है वास्तव में वह हमारे वैज्ञानिक मानस का आधार होती है। हाल के दशकों में स्वदेशी दृष्टिकोण और ज्ञान प्रणालियों को मुख्यधारा के वैज्ञानिक अभ्यास में शामिल करने का चलन और मान्यता दोनों खूब बढ़ी है।

दुनिया में सबसे समृद्ध देशों में भारत
सरकार ने भारतीय नौसेना के लिए पहले स्वदेशी विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत को भले स्वदेशी विज्ञान के महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में चुना हो लेकिन हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में जीवन जीते हुए जो वैज्ञानिक चेतना, तर्कशीलता और प्रगतिशीलता हम प्रदर्शित करते हैं, वास्तव में वह हमारे जीवन में सदियों से मौजूद विज्ञान की एक ऐसी कहानी कहती है जिसका नाता हमारे खून, पानी और अस्थिमज्जा से होता है।
कोई भी देश अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जिस तरह जीता है, जिस तरह की उसकी भोजन व्यवस्था होती है, असल में वही उसका स्वदेशी विज्ञान होता है। पारंपरिक, स्वदेशी विज्ञान के लिहाज से भारत दुनिया में सबसे समृद्ध देशों में है। सच बात तो यह है कि भारत, चीन, मिस्र जैसे देश पारंपरिक ज्ञान विज्ञान के मामले में अमेरिका, रूस और ब्रिटेन जैसे देशों को कोसों पीछे छोड़ देते हैं।
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जीवन जीने की कला में अव्वल
विकास का विज्ञान अब इस बात को पूरी जिद के साथ मानता है कि हर तरह का ज्ञान विकास के एक पायदान तक पहुंचने का जरिया रहा है। अलग-अलग देशों में जो अलग-अलग पारंपरिक मेडिकल ज्ञान है, वह सिस्टम इंसान के रोजमर्रा के जीवन अनुभवों के व्यवहार से हासिल संज्ञानात्मक निष्कर्ष ही तो है। इसलिए जब किसी देश की संस्कृति बहुत समृद्ध होती है तो भले उसकी संस्कृति का रिश्ता आधुनिक जीवनशैली से न हो लेकिन वहां स्वदेशी विज्ञान का मजबूत आधार होता है।
आजादी के बाद भारत की तत्कालीन सरकार ने यह महसूस किया था कि देश को अत्याधुनिक ज्ञान की जरूरत है क्योंकि जीवन जीने की कला में तो हम सदियों से समृद्ध रहे हैं मगर आज जो पश्चिम केंद्रित उपभोक्तावादी विज्ञान है, उस विज्ञान का भी आजादी के बाद भारत की विभिन्न संस्थाओं ने शानदार विकास किया है। आज अमेरिका, चीन और रूस की टक्कर का ही हमने अपना अंतरिक्ष क्षेत्र विकसित किया है। इसरो; नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी जितनी ही महत्वपूर्ण और ताकतवर संस्था है।
निश्चित रूप से इसरो के ज्ञान का आधार दुनिया में पहले से विकसित अंतरिक्ष तकनीक ही रही है लेकिन जिस तरह से पश्चिमी देशों की गुटबंदी के कारण हमें महत्वपूर्ण आधुनिक तकनीकों से दूर रखने की कोशिश की गई उसके चलते इसरो ने 90 फीसदी से ज्यादा तकनीक खुद विकसित की है। आज भारत अंतरिक्ष देश में अगर विकसित देशों के समकक्ष खड़ा है तो इसमें हमारे वैज्ञानिकों और तकनीकी विषेशज्ञों का ही कमाल है।

आधुनिक विकास और मनोविज्ञान
उन्होंने जिस तरह से आजादी के बाद स्वदेशी तकनीक को विकसित करने में अपने को झोंक दिया, उसके चलते ही आज हम कई क्षेत्रों में दुनिया के बराबर या उनके नजदीक पहुंच रहे हैं। कुछ क्षेत्रों में हम दुनिया में सबसे आगे भी हैं और कई क्षेत्रों में पीछे भी हैं लेकिन आजादी के बाद जिस तरह से भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, कृषि आधुनिक उद्योग जगत और उन सारे क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल की गई हैं, जो आधुनिक विकास और मनोविज्ञान को व्यक्त करता है,
उसमें हमारी स्वदेशी तकनीकें बेहद ऊंचे दर्जे की हैं। यह भारत की वैज्ञानिक प्रगति का हासिल है। भले आज भी हम सबसे ज्यादा विदेशों से हथियार खरीदते हों लेकिन पिछले 75 सालों में देश के डीआरडीओ जैसे संस्थानों ने जो उन्नत किस्म की मिसाइलें और तमाम दूसरे हथियार बनाने की तकनीक विकसित की है, वह लाजवाब है।
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