Tiger Project: इंसान-बाघ के बीच कलह की समस्या नहीं आई
वर्ष 1972 में हुई बाघों की गणना में जहां महज 1,800 बाघ पाये गए थे वहीं आज देश में बाघों की संख्या 3,000 से भी ज्यादा हैं। देश में इस समय 54 टाइगर रिजर्व हैं और ये सभी करीब 75,000 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं। निश्चित रूप से भारत का टाइगर प्रोजेक्ट वन्यजीवों के संरक्षण के मामले में दुनिया के गिने चुने ऐसे प्रोजेक्ट्स में से है जो पूरी तरह से सफल रहा है। इसलिए विशेषज्ञ इसे वन्य संरक्षण के मामले में ‘ग्लोरिएस 50 ईयर’ की संज्ञा देते हैं।
आज अकेले राजस्थान में बाघों की संख्या 100 के पार पहुंच गई है। यहां 4 टाइगर रिजर्व रणथंभौर, सरिस्का, मुकुंदरा और रामगढ़ विषधारी मौजूद हैं। पांचवां टाइगर रिजर्व धौलपुर में बनने जा रहा है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की अथक मेहनत भी इस परियोजना की सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण है। इस प्राधिकरण ने सभी टाइगर रिजर्व पर हर समय अपनी पैनी निगाहें रखी हैं। इसलिए इस प्रोजेक्ट में इंसान और बाघ के बीच कलह की वह समस्या सामने नहीं आयी जो वन्यजीव संरक्षण के मामले में अकसर आती है। अगर कहा जाए कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा सुनिश्चित किये गए बाघ अभयारण्यों में इंसानों की कम से कम घुसपैठ इस योजना को सफल बनाने के मूल में रही है तो अतिश्योक्ति न होगी।
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पैनल का गठन
1973 में जब बाघों के खात्मे से चिंतित तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में बाघों के संरक्षण के लिए करण सिंह की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया था तब इस पैनल ने जिम कार्बेट, कान्हा, रणथंभौर, मेलघाट, बांदीपुर, मानस, पलामू और सिमलीपाल सहित 9 टाइगर रिजर्व की एक रूपरेखा बनायी थी। बाघों का संरक्षण करने के लिए जो योजना बनी थी, उसमें शिकारियों पर नजर रखने पर भी जोर दिया गया था।
बाघों को मारने पर कठोर सजा प्रावधानों को सुनिश्चित किया गया था तथा इन अभ्यारण्यों की सुरक्षा के लिए प्रोटेक्शन फोर्स के गठन की भी बात कही गई थी। दरअसल देश और दुनिया में मौजूद बाघों के शरीर के विभिन्न हिस्सों के काला बाजार ने बाघों की हड्डियों, उनकी खाल और शरीर के दूसरे हिस्सों को अलग-अलग वजहों से बहुत महंगा कर दिया था। विदेशी बाजार में बाघ के गोश्त के साथ उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों की मिलने वाली चकाचौंध कीमत ने भारत में बाघों को तस्करों के लिए चमकदार हीरे बना दिया था। लोग कोई भी कीमत देकर बाघ के शरीर के विभिन्न हिस्सों को खरीद रहे थे और इन्हें मारकर बेचने वाले मालामाल हो रहे थे।
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स्वाभाविक भोजन
ऐसे हालात में देश में बचे बाघों को सुरक्षा प्रदान करना और इनकी आबादी की बढ़ोतरी को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न टाइगर रिजर्व में मौजूद बाघों को भरपूर भोजन हेतु उन जानवरों को छोड़ा गया जो बाघों के स्वाभाविक भोजन हैं। उनके इन संरक्षित आवासों में प्रजनन और वंश वृद्धि के लिए समूची पारिस्थितिकी तंत्र को व्यवस्थित तरीके से समृद्ध किया गया।
हालांकि शुरू में बहुत अच्छे नतीजे नहीं मिल रहे थे, लेकिन यह तय था कि अगर इस प्रोसेस को जारी रखा गया तो जल्द ही नतीजे मिलेंगे। यही कारण है कि 1980 में जहां सिर्फ 9 टाइगर रिजर्व थे वहीं बाद में इन्हें बढ़ाकर 15 कर दिया गया और 2005-06 तक आते आते इनकी संख्या बढ़कर 28 हो गई। जब एनटीसीए (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी) ने वैज्ञानिक पद्धति से बाघों की गणना की तो उसके नतीजे देखकर एकबारगी हर कोई हैरान रह गया क्योंकि इन सालों तक आते-आते बाघों की संख्या 1972 से भी कम महज 1411 रह गई थी।
इससे हड़कंप मच गया। नये सिरे से प्रोजेक्ट पर ध्यान दिया गया। बाघों के संरक्षण के लिए गठित प्रोटेक्शन फोर्स को और मजबूत बनाया गया। बाघों के रिजर्व क्षेत्र से हर हालत में इंसानी आबादी को बाहर किया गया और देश के महज कुछ राज्यों तक सीमित टाइगर रिजर्व को देश के 20 राज्यों तक बढ़ाया गया। साथ ही टाइगर रिजर्व की संख्या को 28 से बढ़ाकर 54 कर दिया गया। कहना नहीं होगा कि आज यह प्रोजेक्ट दुनिया के सबसे सफल बाघ संरक्षण प्रोजेक्ट के रूप में जाना जाता है लेकिन इसके लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी है।
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70 फीसदी अकेले भारत में
वैज्ञानिक पद्धति से इनकी गणना के बाद साल 2010 में बाघों की संख्या बढ़कर 1706 हुई। 2014 में यह बढ़कर 2,226 हो गई। 2018 में बाघ बढ़कर 2,967 हो गए और अब यह संख्या 3,000 के ऊपर है। अब इसमें भी कोई गफलत नहीं है कि इनकी वास्तविक संख्या यही है या कुछ और है क्योंकि अब ये कैमरे और सैटेलाइट के जरिये गिने हुए बाघ हैं जिसमें 1 ही बाघ को 2 बार या 2 से ज्यादा बार गिने जाने की समस्या नहीं है।
आज दुनिया में जितने बाघ मौजूद हैं, उनमें से 70 फीसदी अकेले भारत में हैं। 9 प्रोजेक्ट टाइगर अब बढ़कर 54 हो गए हैं। अब तो कई प्रांतों में बाघ आय का भी अच्छा खासा जरिया बन गए हैं। जैसे राजस्थान के रणथंभौर, सरिस्का में 40 फीसदी से ज्यादा पर्यटक सिर्फ बाघ देखने के लालच में आते हैं। मध्य प्रदेश आज पर्यटकों को आकर्षित करने वाले राज्यों के रूप में जाना जाता है। आज देश के सभी हिस्सों में टाइगर रिजर्व मौजूद हैं। इससे पारिस्थितिकी तंत्र तो बेहतर हुआ ही है, कई प्रांतों में इन्हीं बाघों के कारण पर्यटकों का आगमन बढ़ा है।
20 से 40 हजार के बीच थी संख्या
टाइगर या बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु है। एक जमाना था जब हिंदुस्तान में हजारों बाघ हुआ करते थे। 20वीं सदी की शुरुआत में ही इनकी संख्या 20,000 से लेकर 40,000 के बीच थी लेकिन पिछली सदी में एक ऐसा वक्त आया जब लगा कि शायद हिंदुस्तान की आने वाली पीढ़ियां अब बाघों के बारे में सिर्फ किताबों में ही उनके दिलचस्प किस्से पढ़ पाएंगी। शिकार प्रिय भारत के राजाओं, महाराजाओं ने अपने इस क्रूर शौक के चलते बाघों का लगभग सफाया कर दिया था।
1972 में जब पहली बार बाघों की गणना हुई तो पता चला कि एक सदी पहले जिस हिंदुस्तान में बाघों की संख्या 20 से 40 हजार के बीच थी, अब उसी हिंदुस्तान में सिर्फ 1800 बाघ बचे हैं। बाघ गणना के आंकड़े देखकर विशेषज्ञों की ही नहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भी आंखें खुली की खुली रह गईं। उन्होंने आनन-फानन में विशेषज्ञों के साथ एक मीटिंग की। उनके साथ हुई बातचीत के आधार पर बाघ संरक्षण के लिए सुझाव देने हेतु एक पैनल का गठन किया। फिर इस पैनल के सुझाव पर महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट टाइगर शुरू हुआ। इसके बाद की कहानी पूरी दुनिया जानती है।
प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी ने विशेषज्ञों से मीटिंग में बिल्कुल सीधे शब्दों में पूछा था कि क्या किया जाए कि देश में फिर से बाघों की दहाड़ गूंजे। इस काम के लिए गठित किये गए पैनल ने कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये। इन सुझावों की अगुवाई में ही 50 साल पहले 1 अप्रैल, 1973 को देश में पहली बार उत्तराखंड स्थित कॉर्बेट नेशनल पार्क से प्रोजेक्ट टाइगर यानी बाघ संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया। इस प्रोजेक्ट के 50 साल पूरे हो चुके हैं।
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