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WeStory > हिंदी न्यूज़ > Population Impacts: 2 दर्जन देश हैं घटती आबादी से परेशान
हिंदी न्यूज़

Population Impacts: 2 दर्जन देश हैं घटती आबादी से परेशान

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/04/25 at 5:11 PM
WeStory Editorial Team
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Population Impacts
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Population Impacts: दुनिया की जनसंख्या 8 अरब लोग

दुनिया की आबादी के वृहद परिदृश्य को देखें तो भले इस समय मानव इतिहास में सबसे ज्यादा 8 अरब लोग धरती में रह रहे हों लेकिन कम से कम दो दर्जन ऐसे देश हैं जो अपनी घटती आबादी से परेशान हैं। ये अपनी आबादी बढ़ाने के लिए सब कुछ कर रहे हैं। फिर भी उनकी आबादी नहीं बढ़ रही। इसलिए सिर्फ वही देश चिंतित नहीं हैं जहां हाल के सालों में तमाम कोशिशों के बाद भी आबादी का बढ़ना बंद नहीं हुआ बल्कि वे देश उनसे भी ज्यादा चिंतित हैं जो चाहकर भी अपनी आबादी नहीं बढ़ा पा रहे। जो देश दुनिया में सबसे ज्यादा अपनी घटती जनसंख्या से परेशान हैं

Table of Contents
Population Impacts: दुनिया की जनसंख्या 8 अरब लोगसिंगापुर में फर्टिलिटी रेट दुनिया में सबसे कमकम फर्टिलिटी का शिकार रोमानिया भीकम जनसंख्या से रूस भी पीड़ितकई तरह के उपाय आजमा रहा जापानस्पेन के युवा दंपति में रुचि नहींसबसे ज्यादा आबादी वाला देश भारतकुछ दर्जन देशों में ही बढ़ रही है जनसंख्या

उनमें इटली, रोमानिया, तुर्की, सिंगापुर, डेनमार्क, रूस, दक्षिण कोरिया, जापान, हांगकांग और स्पेन के साथ साथ अब चीन भी शामिल होने जा रहा है। इटली में प्रति महिला फर्टिलिटी रेट 1।43 है जो कि यूरोप के औसत फर्टिलिटी रेट 1.58 से भी काफी कम है। इसीलिए इटली सरकार ने पिछले कई सालों से खास तौर पर नवविवाहित युवा जोड़ों को संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित करने की नीति अपनायी है। इसके लिए इटली सरकार एक विज्ञापन देती है, ‘आगे बढ़ो इंतजार मत करो।’ इटली से अलग तुर्की सरकार ने युवा विवाहित जोड़ों को साल 2015 से ही बच्चा पैदा करने पर ईनाम देने की घोषणा कर रखी है। इसके तहत पहला बच्चा पैदा करने पर 130 डॉलर, दूसरे बच्चे पर 170 डॉलर और तीसरा बच्चा पैदा करने पर 260 डॉलर का इनाम दिया जाता है।

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सिंगापुर में फर्टिलिटी रेट दुनिया में सबसे कम

ऐसे ही देशों में सिंगापुर भी शामिल है। यहां की महिलाओं का फर्टिलिटी रेट दुनिया में सबसे कम महज 0.81 बच्चा है। इसको ध्यान में रखकर कई साल पहले 9 अगस्त 2012 को सिंगापुर सरकार ने ‘नेशनल नाइट’ का आयोजन किया था। इसका मकसद जोड़ों को संबंध बनाने के लिए प्रेरित करना था।

इसके तहत सरकार ने किराये के लिए उपलब्ध छोटे वन बेडरूम अपार्टमेंट की भी सीमा तय कर दी है ताकि लोग साथ रहने और परिवार बनाने के बारे में सोचें। सिंगापुर की सरकार हर साल ऐसे प्रोत्साहन कार्यक्रमों में 1।6 अरब डॉलर खर्च करती है जिसका मकसद लोगों को संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित करना होता है।

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कम फर्टिलिटी का शिकार रोमानिया भी

महिलाओं की कम फर्टिलिटी का शिकार रोमानिया भी है लेकिन रोमानिया चूंकि गरीब मुल्क है, इसलिए वह अपने लोगों को ज्यादा बच्चा करने के लिए कोई प्रोत्साहन राशि नहीं देता। हां, वह इसका प्रयास दूसरे तरीके से करता है।

रोमानिया सरकार ने बच्चे न पैदा करने वाले दंपतियों पर भारी भरकम टैक्स थोप दिया है। जो दंपति बच्चा पैदा कर सकने के लायक होते हैं, फिर भी वे बच्चा नहीं पैदा करते, उन पर रोमानिया की सरकार 20 फीसदी का इनकम टैक्स लगाती है। रोमानिया सरकार का इस संबंध में साफ तौर पर कहना है, ‘अगर आप देश को भविष्य में काम करने के लिए कामगार नहीं दे रहे तो डॉलर दें।’

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कम जनसंख्या से रूस भी पीड़ित

कम जनसंख्या से रूस भी पीड़ित है। जहां तक दक्षिण कोरिया की बात है तो यहां हर महीने के तीसरे बुधवार को फैमिली डे के रूप में मनाया जाता है। इसके तहत दक्षिण कोरिया के तमाम सरकारी अधिकारी शाम 7 बजे लाइट बंद कर देते हैं। उसका संदेशा विवाहित जोड़ों के लिए यह होता है कि वे शारीरिक संबंध बनाएं। दक्षिण कोरिया में महिला फर्टिलिटी रेट केवल 1.25 है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कोरिया सरकार जल्द से जल्द अपने युवा दंपतियों को प्रोत्साहित न कर पायी तो यह फर्टिलिटी रेट और नीचे गिर जायेगा। इसलिए दक्षिण कोरिया में सरकार फैमिली लाइफ को प्रमोट करने के लिए हर तरह के कदम उठा रही है। जिन लोगों के पास एक से ज्यादा बच्चे हैं, उन्हें कई तरह के नकद प्रोत्साहन राशि दी जाती है।

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कई तरह के उपाय आजमा रहा जापान

कोरिया की तरह जापान भी अपने यहां प्रजनन दर बढ़ाने के लिए कई तरह के उपाय आजमा रहा है। वैसे जापान की यह समस्या तात्कालिक नहीं है। सन 1975 से ही वह इस तरह की समस्या से जूझ रहा है। इसलिए वह दंपतियों को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित भी तभी से कर रहा है। बावजूद इसके अभी तक उसे बड़ी सफलता नहीं मिली। वर्ष 2010 में यूनिवर्सिटी ऑफ टीसुकुबा के छात्रों ने योतारो बेबी रोबोट बनाया था जिसका मकसद युवा दंपतियों में मां-बाप बनने की इच्छाओं को विस्तारित करना था।

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स्पेन के युवा दंपति में रुचि नहीं

यूरोप के दूसरे प्रजनन दर से जूझ रहे देशों जैसा हाल स्पेन का भी है। स्पेन के युवा दंपति बच्चे पैदा करने में कुछ खास रुचि नहीं जता रहे। इसके भयानक नतीजों को समझते हुए स्पेन की सरकार ने साल 2017 में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था को जन्म दिया। इसके तहत स्पेशल कमिश्नर को नियुक्त किया गया। यह कमिश्नर इस बात का पता लगाता है कि आखिर स्पेनी युवा शारीरिक संबंध बनाने में रुचि क्यों नहीं ले रहे?

एशिया का एक और देश हांगकांग भी अपने युवाओं से परेशान है कि वे शादी, सेक्स और संतानोत्पत्ति के प्रति इतने उदासीन क्यों रहते हैं? गौरतलब है कि हांगकांग में महिला फर्टिलिटी की दर महज 1.18 बच्चा है। प्रजनन दर की इस कमी के चलते हांगकांग में बूढ़े हो रहे लोगों की जगह लेने वाले नहीं हैं। इसी कारण साल 2013 से हांगकांग सरकार ने ऐसे जोड़ों को नगद ईनाम देने की घोषणा की जो शादी के तुरंत बाद बच्चा पैदा करने में रुचि रखते हैं।

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सबसे ज्यादा आबादी वाला देश भारत

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) ने घोषणा की कि अब दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन नहीं बल्कि भारत है तो चीन ने भले दिखावटी तौर पर इसे जनसंख्या नियंत्रण के मामले में अपनी शानदार उपलब्धि बताया हो लेकिन हकीकत यही है कि ड्रैगन अपनी घटती जनसंख्या से खुश नहीं बल्कि परेशान है। यहां तक कि कभी ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ पर गर्व करने वाला चीन आज की तारीख में अपनी आबादी को बढ़ाने के लिए युवाओं को कई तरह के प्रोत्साहन दे रहा है।

कई ऐसी योजनाएं ला चुका है जिससे युवा खुशी-खुशी तीसरा बच्चा पैदा करें लेकिन ऐसी सभी तरह की रणनीतियां उसकी लगातार बेकार हो रही हैं। चाहकर भी चीन पिछले कई सालों से अपनी जनसंख्या नहीं बढ़ा पा रहा है। यहां तक कि वह आजकल युवाओं को एक दूसरे की तरफ आकर्षित करने और संतान पैदा करने के लिए साल में 15-15 दिन की दो बार या 30 दिन की एक बार ‘लव लीव’ भी दे रहा है ताकि युवा जोड़े एक दूसरे के नजदीक आएं और चीन की जनसंख्या बढ़े लेकिन कुछ भी योजना के मुताबिक नहीं हो रहा।

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कुछ दर्जन देशों में ही बढ़ रही है जनसंख्या

एक तरफ जहां चीन इस तरह अपनी घटती हुई जनसंख्या से परेशान है वहीं दूसरी तरफ दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाने के कारण भारत के तमाम लोग जनसंख्या वृद्धि न थमने को लेकर बहुत निराश हैं। कई लोग इसे आजाद भारत की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक मान रहे हैं। अगर देखा जाए तो कुछ संदर्भों में यह बात सही भी है कि हमारी बढ़ती जनसंख्या ने हमारे तमाम तरह के विकास को जीरो कर दिया है।

दूसरी तरफ यह भी सही है कि आज भारत जो दुनिया के विभिन्न देशों से हर साल 73-74 अरब डॉलर की जो रेमिटेंस हासिल कर रहा है, वह वास्तव में हमारी इसी बढ़ी जनसंख्या का नतीजा है। सवाल है जनसंख्या को आखिर किस नजरिये से देखा जाए? उसे बोझ माना जाए या संभावना। अगर दुनिया में सभी देशों की जनसंख्या बढ़ रही होती तो यह निश्चित रूप से एक खतरनाक एटम बम होती। चूंकि जनसंख्या सिर्फ कुछ दर्जन देशों में ही बढ़ रही है और वे ज्यादातर दक्षिण व दक्षिण पूर्व एशिया के देश हैं।

इसलिए दुनियाभर के विशेषज्ञ बिना कुछ सोचे-समझे भारत को जनसंख्या सीमित करने का सुझाव दे रहे हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि दुनिया में जिन देशों की जनसंख्या बढ़नी बंद हो चुकी है और अब ये देश अपनी जरूरत के मुताबिक जनसंख्या बढ़ाना चाह रहे हैं लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा। कई तरह के उपाय करने के बाद भी ये देश जनसंख्या बढ़ाने में नाकामयाब हैं।

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