Air Quality: पहले से कहीं ज्यादा मारक हो गई है हीट वेब्स
हर देश जानता है कि जंगलों का कटना बिगड़ते पर्यावरण की आग में घी का काम करता है। इसके बावजूद पर्यावरण को सलामत रखने के लिए पौधारोपण में बढ़ोतरी नहीं हो रही। इसका सबसे बड़ा असर हम रोज देखते हैं। धरती पर दिन और रात के तापमान में अब के पहले इतना ज्यादा अंतर कभी नहीं देखा गया जब से इन दिनों कई क्षेत्रों में दिन का तापमान और रात के तापमान में 10 से 12 डिग्री से भी ज्यादा का अंतर आ गया है। यह बहुत खतरनाक है।
अगर दिन और रात के तापमान में यह दूरी लगातार बढ़ती रही तो हीट वेब्स या जिन्हें हम अपने यहां लू कहते हैं, उन हवाओं का हर गुजरते दिन के साथ वेग प्रचंड होता रहेगा। वहीं दुनिया में लगातार बढ़ रही गर्मी रुक नहीं रही। यह गर्मी सिर्फ गर्मीभर पैदा नहीं कर रही बल्कि अपनी चपेट में बहुत चीजों को मार भी रही है। गर्मी की चपेट में आने के कारण वायु गुणवत्ता दिनोंदिन गिरती जा रही है और इससे करोड़ों लोगों का स्वास्थ्य खतरे में पड़ गया है।
हर साल 20 लाख से ज्यादा लोग वायु की बिगड़ रही गुणवत्ता के कारण दम तोड़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण हीट वेब की न केवल आवृत्ति बढ़ रही है बल्कि वह पहले से कहीं ज्यादा मारक और सघन होती जा रही है। दुनियाभर में जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं और रेगिस्तान में उठने वाले बवंडरों में आयी तेजी का कारण ये हीट वेब्स ही हैं। इनकी वजह से हर गुजरते दिन के साथ वायु की गुणवत्ता घट रही है जो मानव स्वास्थ्य पर सीधा सीधा हमला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल के महीनों में यूरोप के सैकड़ों वायु गुणवत्ता निगरानी स्थलों से संपर्क किया है और वायु की घटती गुणवत्ता का अध्ययन किया है जिससे पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हवा की बिगड़ती गुणवत्ता आशंकाओं से भी कहीं ज्यादा तेज है।
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समुद्र की सतह का वायु तापमान में बढ़ोतरी
दुनियाभर के जलवायु विशेषज्ञों ने अपने एक हालिया अनुमान में कहा है कि अगर आज की तारीख में दुनिया ग्रीन हाउस गैसेज पर निर्देशों के मुताबिक उत्पादन में कटौती करती है तो भी साल 2035 तक 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड और सन 2100 तक 2.5 डिग्री सेंटीग्रेड की तापमान वृद्धि होगी।
पिछले दशक में औसत वैश्विक समुद्री जल स्तर में दोगुने की बढ़ोतरी हुई है। अगर 2010 और 2020 के बीच उन क्षेत्रों पर गहन नजर डालें जहां दुनिया की करीब आधी आबादी रहती है यानी समुद्री जल स्तर के बढ़ोतरी के मामले में सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र तो इन इलाकों में लगातार बाढ़, सूखे और तूफानों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और उसी के अनुसार इन मौसम संबंधी दुश्वारियों और दुर्घटनाओं के कारण लाखों लोगों ने दम तोड़ दिया है।
समुद्र की सतह का तापमान दुनिया में घटते या बढ़ते तापमान को जानने का सबसे सटीक तरीका होता है। जहां जुलाई 2012 में समुद्र की सतह का वायु तापमान 16.2 डिग्री सेंटीग्रेड था। वहीं जुलाई 2023 में यह बढ़कर 16.9 डिग्री हो गया। मतलब साफ है कि महज 1 दशक के भीतर धरती के तापमान में .7 परसेंट की औसत बढ़ोतरी हो चुकी है। इतनी वृद्धि एक शताब्दी में भी बहुत ज्यादा है। इससे साफ है कि समुद्र की सतह की वायु का तापमान तमाम वैज्ञानिक आशंकाओं से भी कहीं तेजी से बढ़ रहा है।
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25 हजार प्रजातियां खत्म
दुनिया में लगातार गर्मी अपने पिछले रिकॉर्ड तोड़ रही है। अगर साल 1940-41 से लेकर साल 2023 तक का एक क्रमिक अध्ययन करें तो पता चलता है कि जहां 1940-41 में धरती की सतह का औसत तापमान 15.6 डिग्री सेंटीग्रेड हुआ करता था, वहीं साल 2023 में यह बढ़कर 16.8 हो गया है
यानी पिछले 8 दशकों में धरती के सतह के तापमान में 1.2 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है जो बहुत ज्यादा है। इसके कारण इस पूरी अवधि में न सिर्फ धरती के 10 हजार से ज्यादा विभिन्न किस्म के जीव और वानस्पतिक प्रजातियां खत्म हो गईं बल्कि समुद्र के भीतर तो इससे भी ज्यादा करीब 25 हजार प्रजातियां खत्म हुई हैं। जब भी धरती या समुद्र से बड़े पैमाने पर जीव प्रजातियों का समापन होता है तो धरती की जैविक क्षमताओं पर बुरा असर पड़ता है और ऐसा हो भी रहा है।

पहल कोई देश नहीं करना चाहता
सवाल है जब लगातार वैज्ञानिक और पर्यावरणविद वातावरण के असामान्य बदलाव की भयावहता बता रहे हैं तो फिर इसको रोका क्यों नहीं जा सका? इसकी एक ही वजह है कि दुनिया के तमाम देश मिलकर बड़ी-बड़ी बातें तो बहुत करते हैं लेकिन हर देश चाहता है कि उसके जीवनस्तर में किसी किस्म की कमी न आए।
अपने जीवनस्तर को बरकरार रखते हुए हर देश चाहता है कि धरती के वातावरण में जो विकार हुआ है, वह सही हो जाए। इसलिए हर देश सिर्फ बढ़ती समस्याओं का ढोल ही बजाता है, कोई खुलकर इस समस्या को कम करने के मामले में पहल नहीं करना चाहता।
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