Conservation of Dolphin: गंगा डॉल्फिन के निरंतर लुप्त होते जा रही है
भारत सरकार ने 1972 के भारतीय वन्यजीव संरक्षण कानून के दायरे में गंगा डॉल्फिन को शामिल किया था और फिर साल 1996 में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने भी डॉल्फिनों को विलुप्तप्राय जीव घोषित किया था। जब गंगा की सफाई के लिए मिशन क्लीन गंगा बनाया गया तो भी इसमें डॉल्फिनों को ध्यान रखा गया और इनकी वृद्धि के लिए योजना बनायी गई क्योंकि जिस तरह जंगल की सेहत बाघ की मौजूदगी से पता चलती है उसी तरह गंगा नदी की सेहत का पता उसमें डॉल्फिन की मौजूदगी देती है। जब डॉल्फिन सांस लेती है तो बहुत शोर पैदा करती है। यह पानी में अपने शिकार का पता करने के लिए ध्वनि तरंगों को महसूस करती है।
मछुआरों के जाल में फंसने का खतरा
डॉल्फिन को मछुआरों के जाल में फंसने का भी जबरदस्त खतरा रहता है और बांधों व बैराजों के साथ साथ ड्रेजिंग कार्यों, रेत खनन और नदी की धाराओं के सूखने से भी खतरा पैदा होता है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर डॉल्फिन निवास क्षेत्र के विभिन्न समुदायों को इनकी सुरक्षा और संरक्षण के लिए इन्हें जागरूक करता है और इस तरह नदी की पारिस्थितिकी की अखंडता को बचाने की कोशिश में लगा है।

यूं तो पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से लुप्त होती विशेष जीव प्रजातियों और बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र पर चिंता जतायी जा रही है लेकिन साल 2023 में इस हेतु जो कई महत्वपूर्ण कदम उठाये गए उनमें एक गांगेय या गंगा डॉल्फिन को बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 14 अक्टूबर, 2023 को इसे ‘राज्य जलीय जानवर’ घोषित किया गया और इसके बचाव के लिए ‘मेरी गंगा, मेरी डॉल्फिन 2023’ अभियान की शुरुआत की। इससे पहले 18 मई, 2009 को भारत सरकार ने गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। इसके बाद भी गंगा डॉल्फिन के निरंतर लुप्त होते जाने के सिलसिले में कोई खास बदलाव नहीं हुआ।
डॉल्फिन अब लुप्तप्राय जीव प्रजातियों में शामिल
एक जमाने में गांगेय डॉल्फिन गंगा, यमुना, चंबल, घाघरा, राप्ती और गेरुआ जैसी नदियों में बहुतायत में पायी जाती थी। गंगा और उसकी सहायक नदियों की तरह ही यह ब्रह्मपुत्र-मेघना और संगु-कर्णफुली नदियों में भी पायी जाती थी। यही नहीं यह भारत, बांग्लादेश और नेपाल की तरह भारत से होकर पाकिस्तान में बहने वाली सिंधु नदी में भी काफी बड़ी संख्या में मौजूद थी लेकिन गंगा और सिंधु के मीठे पानी की यह डॉल्फिन अब लुप्तप्राय जीव प्रजातियों में शामिल है और सिर्फ गंगा नदी के कुछ इलाकों में ही इसका अस्तित्व बचा है। हालांकि इसकी संख्या को लेकर अलग-अलग आंकड़े हैं लेकिन एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक वर्तमान में इसकी आबादी करीब 2000 है।
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सुरक्षा और संरक्षण क लिये पहल
लगातार खत्म होती इस विशेष जीव प्रजाति को बचाने के लिए इस साल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गांगेय डॉल्फिन की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कई तरह के उपायों की घोषणा की। ‘मेरी गंगा, मेरी डॉल्फिन 2023’ का शुभारंभ करते हुए योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के लोगों से नदियों और तालाबों को साफ और शुद्ध रखने की गुजारिश की ताकि इंसान के साथ दुनिया में मौजूद विभिन्न जीव प्रजातियों का भी अस्तित्व बचा रहे। गंगा में डॉल्फिन की मौजूदगी उसके शुद्ध और साफ होने की निशानी है।
गंगा के पानी में अगर डॉल्फिन नहीं बच रही तो इसका मतलब गंगा का पानी जलीय जीवों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसलिए गंगा या गांगेय डॉल्फिन को नदी के स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण संकेतक माना जाता है। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और उत्तर प्रदेश वन विभाग डॉल्फिन की आबादी पर नजर रख रहा है, विशेषकर उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के गढ़ गंगा क्षेत्र में डॉल्फिन के जीवन और प्रजनन पर नजरें रखी जा रही हैं। गंगा में डॉल्फिन की सुरक्षा के लिए मुजफ्फरपुर बैराज से लेकर नरोरा बैराज तक फैली गंगा नदी के किनारे डॉल्फिन की सुरक्षा और संरक्षण के विशेष उपाय भी किए गए हैं।

एक नेत्रहीन जलीय जीव है गांगेय डॉल्फिन
गांगेय डॉल्फिन एक ऐसी लुप्तप्राय जीव प्रजाति है जो सिर्फ भारत में और अपने यहां भी सिर्फ गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी प्रणालियों में बची है। गंगा नदी में पायी जाने वाली गांगेय डॉल्फिन एक नेत्रहीन जलीय जीव है जिसमें सूंघने की अपार शक्ति होती है। एक समय था जब गंगा नदी में लाखों की तादात में डॉल्फिन हुआ करती थीं लेकिन जैसे-जैसे गंगा में प्रदूषण बढ़ा, बांध बनें और तस्करों ने अपने कारोबारी फायदे के लिए इनका शिकार करना शुरु किया, तेजी से इनकी संख्या घटने लगी। साल 2009 में गंगा डॉल्फिन के खत्म होने से चिंतित होकर भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय जल जीव घोषित किया और इसके बाद से ही इसकी संख्या में थोड़ी वृद्धि हुई है। इस समय गंगा में उत्तर प्रदेश के नरोरा और बिहार के पटना साहिब, भागलपुर के सुल्तानगंज इलाकों में ही गांगेय डॉल्फिन बची हुई है। इसे बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में ‘सोंस’ भी कहते हैं।
10 करोड़ साल से है मौजूदगी
जन्मजात नेत्रहीन होने के कारण डॉल्फिन ‘इकोलोकेशन’ यानी प्रतिध्वनि निर्धारण की बदौलत सूंघकर अपने भोजन हेतु शिकार की तलाश करती है। गांगेय डॉल्फिन का इसलिए भी बहुत महत्व है क्योंकि माना जाता है कि भारत में इसकी मौजूदगी करीब 10 करोड़ साल से है। इससे न सिर्फ धरती में जीव उत्पत्ति के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है बल्कि भारत के ऐतिहासिक अस्तित्व का भी भान होता है। डॉल्फिन मछली नहीं बल्कि यह एक स्तनधारी जीव है। मादा डॉल्फिन अपने बच्चे को दूसरी मादाओं की तरह दूध पिलाती है। मादा डॉल्फिन की नर डॉल्फिन से लंबाई थोड़ी अधिक होती है। डॉल्फिन की औसत उम्र करीब 28 साल तक रिकॉर्ड की गई है। कहते हैं सम्राट अशोक डॉल्फिन को ‘सन ऑफ रिवर’ कहते थे और इसके संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये थे। इससे यह भी पता चलता है कि सदियों पहले भी डॉल्फिन संकटग्रस्त हो चुकी थी।
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