Emotional Support: वे हमारे साथ रहते हैं तो घर की धुरी होते हैं
Emotional Support: बूढ़े मां-बाप को सिर्फ पेट भरने के लिए रोटी और जिन्दा रहने के लिए दवाओं भर की जरूरत नहीं होती बल्कि उन्हें इमोशनल देखभाल और प्यार भी चाहिए होता है। लेकिन हम भारतीयों की परवरिश कुछ इस तरह की हुई होती है कि हम इसके अलावा और कुछ सोच भी नहीं सकते। इसलिए अकसर बुजुर्गों की बात छिड़ते ही हमारे जहन से प्यार न जाने कहाँ फुर्र हो जाता है? जबकि बुजुर्गों की देखभाल के जितनी ही उन्हें प्यार की भी जरूरत होती है। उम्रदराज लोगों की खुराक बहुत ज्यादा नहीं होती। वे कोई बहुत मंहगे शौक भी नहीं रखते। लेकिन प्यार की चाह उनमें युवाओं से कम नहीं बल्कि थोड़ी ज्यादा ही होती है। इसलिए वे हर समय अपने पोतो-पोतियों से, अपने बच्चों से, आस-पड़ोस से यहाँ तक कि अजनबियों से भी थोड़े से प्यार की चाहत रखते हैं।

बच्चों की माफिक दुलार की चाहत
कई बार उन्हें बच्चों की माफिक दुलार की चाहत होती है। लेकिन अफसोस कि हम कभी यह एहसास ही नहीं करते कि हमारे बुजुर्गों को यह सब भी चाहिए। दरअसल बुजुर्गों के जीवन में अकेलापन बढ़ता जा रहा है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक देश के महानगरों में 40 लाख से ज्यादा बूढ़े अकेले रहते थे जिनके बेटे विदेश या देश के ही किसी दूसरे शहर में और 5-7 प्रतिशत के तो उसी शहर में मगर दूसरी जगह रह रहे थे।
हाल के वर्षों में जिस तरह परिवार व्यवस्था और ज्यादा क्षरित हुई है उससे तो निश्चित रूप से यही कहा जा सकता है कि अब एकाकी जीवन गुजार रहे बुजुर्गों कि संख्या में और ज्यादा इजाफा हुआ होगा। इन परिस्थतियों को देखते हुए अगर हम अपने बुजुर्गों को उनकी रोजमर्रा की जरूरतों के साथ थोड़ा सा प्यार भी दें तो वे गदगद हो जाएंगे। बदलें में वे हमें न सिर्फ प्यार देंगे बल्कि अपनी अनुभवी जिन्दगी के खजाने से कीमती उपहार देंगे। बुजुर्ग चाहे जितने कमजोर हों, कृशकाय हों। अगर वे हमारे साथ रहते हैं तो घर की धुरी होते हैं। लेकिन हम आमतौर पर उनके महत्व की अनदेखी करते हैं जो निःसंदेह खराब स्थिति है।
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अनदेखी करना, पैर पर कुल्हाड़ी मारना
बुजुर्गों के महत्व की अनदेखी करना असल में अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारना होता है। आजकल आसानी से देखा यह जाता है कि बुजुर्गों के प्रति युवाओं का नजरिया सम्मानपूर्ण नहीं होता। वे बिना यह सोचे हुए कि उन्हें भी एक दिन इस अवस्था में पहुंचना है उनके साथ गलत व्यवहार कर बैठते हैं। बुजुर्गों की अनदेखी सिर्फ घर पर होती हो ऐसा नहीं है। सार्वजनिक परिवहनों, कार्यक्रमों, बाजार आदि में भी होती है। बस या ट्रेन में सफर के दौरान तमाम लोग उन्हें खड़ा देखकर भी उन्हें उनकी आरक्षित सीट देने में आनाकानी करते हैं। सड़क पर पैदल जा रहे किसी वृद्ध को देखकर हम अक्सर हड़बड़ी में आगे बढ़ जाते हैं। कहीं भी उन्हें लाइन में खड़ा देखकर हम उनके बारे में नहीं सोचते। किसी वृद्ध को हैरान-परेशान देखकर भी लोग सहजता से उनकी मदद के लिए आगे नहीं आते।

रोटी, कपड़ा और दवा के साथ थोड़ा स्नेह जरूरी
बूढ़े जरूरी नहीं कि हर मामले में आउटडेटेड हो गए हों। फिर भी ज्यादातर मौकों पर आज के युवा उनकी कोई बात सुने बिना ही उनकी बात खारिज कर देते हैं। यही नहीं वह उनका उपहास उड़ाने, उनके प्रति असम्मान दिखाने में भी जरा सा संकोच नहीं करते। धैर्यपूर्वक बुजुर्गों की बात सुनना, मेहमानों के सामने या किसी आस-पड़ोस के सामने भी उन्हें सहजता से जाने देना, उनके साथ बातचीत करने देना एक किस्म से बूढों का सम्मान है। उन्हें हम अगर थोड़ा सा प्यार और दुलार दें तो हमारी और उनकी दोनों की दुनिया खुशियों से भर सकती है। यह तभी संभव है जब हम यह मानकर चलें कि हमें उन्हें रोटी, कपड़ा और दवा के साथ थोड़ा प्यार भी देना है।

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