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WeStory > हिंदी न्यूज़ > Stock Market Crash: युद्ध के संकट से दुनिया के बाजार ध्वस्त
हिंदी न्यूज़

Stock Market Crash: युद्ध के संकट से दुनिया के बाजार ध्वस्त

Stock Market Crash: जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका में मंदी की आशंका है तो इसका कुछ प्रभाव भारत पर भी देखने को मिल सकता है।

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/08/07 at 5:55 PM
WeStory Editorial Team
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8 Min Read
Stock Market Crash
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Stock Market Crash- भारत में मौजूद अमेरिकी कंपनियों में छंटनी की संभावना

Stock Market Crash: जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका में मंदी की आशंका है तो इसका कुछ प्रभाव भारत पर भी देखने को मिल सकता है। साल 2008 में अमेरिका में आई मंदी से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था हिल गई थी। अमेरिका में मंदी आने से इंपोर्ट-एक्सपोर्ट से लेकर नौकरियों पर सबसे ज्यादा असर पड़ सकता है। भारत में मौजूद अमेरिकी कंपनियों में छंटनी हो सकती है। हालांकि, भारत का बड़ा घरेलू बाजार हमारे लिए सबसे राहत की बात है।अगर अमेरिका को मंदी जकड़ती है तो यूरोप व इंग्लैड सहित अनेक पश्चिम देशों की हालत खराब हो सकती है।

Table of Contents
Stock Market Crash- भारत में मौजूद अमेरिकी कंपनियों में छंटनी की संभावनामंदी की आहट समझना जरूरी1,14,000 लोगों को नौकरी दी गईग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 9.3 फीसदीअमीर-गरीब की खाई को पाटना चुनौती

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन OECD ने तो 2024 में दुनिया की ग्रोथ का अनुमान 2.6% और 2025 के लिए 1. 8 फीसदी कर दिया है। तमाम आशंकाओं के बीच उम्मीद की कोई किरण कहीं दिख रही है तो वो विकासशील यानी उभरते हुए बाज़ार हैं। इन देशों का बाज़ार में बदलना ही दरअसल इस उम्मीद की सबसे बड़ी वजह है। भारत भी ऐसे देशों में न सिर्फ शामिल है, बल्कि इस वक्त यह कहना गलत नहीं होगा कि वो दुनिया में ऐसे देशों का अगुआ ही है। अमेरिका में मंदी की आशंका व मध्य-पूर्व में मंडराते युद्ध के संकट से दुनिया के सभी प्रमुख बाजार ध्वस्त हो गए। लेकिन, मंगलवार को भारतीय शेयर बाजारों में बढ़त रही। अमेरिका में मंदी की आशंका की वजह बेरोजगारी दर का बढ़ना है।

Stock Market Crash
Stock Market Crash

मंदी की आहट समझना जरूरी

भारत के संदर्भ में देखें तो यहां पर तो बेरोजगारी की दर अमेरिका की तुलना में दोगुने से भी अधिक है। अमेरिका में मंदी की आशंका के पीछे पिछले हफ्ते जारी हुए बेरोजगारी के आंकड़े हैं। इसने मंदी का संकेत देने वाले साहम (SAHM) रूल को एक्टिवेट कर दिया है। साहम रूल को अमेरिका के फेडरल बैंक की पूर्व अर्थशास्त्री क्लॉडिया साहम ने 2019 में प्रतिपादित किया था। इससे मंदी की आहट को भांपा जा सकता था। यह रूल कहता है कि अगर तीन महीनों की औसत राष्ट्रीय बेरोजगारी दर पिछले 12 महीनों के दौरान न्यूनतम बेरोजगारी वाले तीन महीनों के औसत से आधा प्रतिशत (0.50 प्रतिशत) या इससे अधिक हो जाए तो इसे मंदी की आहट समझा जाना चाहिए। इसे श्रम बाजार की हालत खासकर बेराजगारी दर का विश्लेषण करके मंदी को पहचानने के टूल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

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Stock Market Crash
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1,14,000 लोगों को नौकरी दी गई

यह रूल सरकार को मंदी से उबरने के उपायों को तेजी से लागू करने में मददगार होता है। यह रूल अधिक उपयोगी इसलिए माना जाता है कि यह बेरोजगारी के डाटा पर आधारित होता है और अन्य आर्थिक संकेतकों की तुलना में यह डाटा जल्दी आता है। इस रूल पर विश्वास करने की दूसरी बड़ी वजह यह है कि जब इसे पूर्व में आई मंदी के आंकड़ों से मिलाया गया तो यह पूरी तरह सही साबित हुआ। अमेरिका में जुलाई में बेरोजगारी की दर 4।3 फीसदी रही। यह जून की तुलना में 0.2 फीसदी अधिक है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में जुलाई में 1,14,000 लोगों को नौकरी दी गई, जबकि 249,000 अस्थायी लोगों की छंटनी कर दी गई। तमाम आशंकाओं के बावजूद क्लॉडिया साहम का कहना है कि इस बार हालात कुछ अलग हैं, क्योंकि बाजारों में मांग में कोई कमी नहीं आई है और अन्य आर्थिक सूचकांक अभी सामान्य दिख रहे हैं। अगर हम अमेरिकी मंदी के भारत पर असर की बात करें तो इसके अनेक पहलू हैं। लेकिन, बेरोजगारी की जो दर अमेरिका की चिंता का सबब है, वह तो भारत में वहां के दो गुने से भी अधिक है।

 

Stock Market Crash
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ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 9.3 फीसदी

भारत में भी बेरोजगारी की बढ़ती दर चिंता बढ़ाने वाली है। सरकार ने इस साल के बजट में कुछ उपाय तो किए हैं, लेकिन उसका असर दिखने में समय लग सकता है। पिछले जून के आंकड़ों को देखें तो भारत में बेरोजगारी की दर 9।2 फीसदी हो गई है। मई में यह सात फीसदी थी। CMIE के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 9.3 फीसदी हो गई है। हरियाणा में बेरोजगारी की दर सर्वाधिक 37.4 फीसदी, जबकि उड़ीसा में सबसे कम .9 फीसदी है। इससे खर्च, ग्रोथ में कमी के साथ ही रोजगार के अवसर पैदा करने में दिक्कत होती है। जिससे देश की आर्थिक प्रगति बाधित होने के साथ ही सामाजिक अशांति का खतरा भी पैदा होता है।

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Stock Market Crash
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अमीर-गरीब की खाई को पाटना चुनौती

आज की सबसे बड़ी चुनौती गरीब और अमीर के बीच की खाई को पाटना है। यह अंतर भारत ही नहीं दुनिया के सभी विकसित और विकासशील देशों के भीतर लगातार बढ़ रहा है। देश के सबसे अमीर लोगों की कमाई और संपत्ति जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उससे गरीबी के विरुद्ध लड़ाई कमजोर होती दिख रही है। अर्थशास्त्री इसे एक बड़ी चिंता की तरह देख रहे हैं। अमेरिका में मंदी की आशंका के बीच भारत के अनेक विशेषज्ञ दावा करते हैं कि इससे भारतीय शेयर बाजार को फायदा ही होगा। उनका कहना है कि मंदी की आशंका को देखते हुए अमेरिकी फेडरल बैंक सितंबर में ब्याज दरों में कटौती कर सकता है, जिससे अनेक विदेशी निवेशक भारत का रुख कर सकते हैं।

वे भारत की उच्च जीडीपी ग्रोथ को देखते हुए फिलहाल किसी बड़े खतरे को नहीं देखते हैं। जब अमेरिका में 1929 की गर्मियों में महामंदी की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। उस समय हालात इतने खराब थे कि लोग बाजार आते और बिना कुछ खरीदे ही चले जाते। यह ट्रेंड इतना बढ़ा कि बाजारों में हर चीज का ढेर लग गया। फैक्ट्रियां बंद होने लग गईं। जबकि शेयर मार्केट इन सबसे बेपरवाह भागने लग गया था। फिर आखिर 24 अक्टूबर, 1929 को अमेरिका में इन सब बातों से परेशान निवेशकों ने जरूरत से ज्यादा बढ़े शेयरों को धड़ाधड़ बेचना शुरू कर दिया। शाम होते-होते रिकॉर्ड 1।29 करोड़ शेयरों की ट्रेडिंग की गई। उस दिन को ‘काला बृहस्पतिवार’ नाम दिया गया।

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