Independence Day – 25 सालों बाद विकसित देशों में होगी भारत की गिनती
Independence Day: 75वें स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से आह्वान किया था कि अगले 25 सालों बाद जब हम अपनी आजादी का शताब्दी समारोह मनाएं, तब दुनिया के नक्शे में भारत की गिनती विकासशील देशों में नहीं, बल्कि विकसित देशों में हो। इसे शुरुआत में राजनीतिक स्टंट समझा गया पर, अब भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में यह बात गंभीरता से सोची जा रही है। इसलिए अगले 23 सालों में भारत सचमुच दुनिया के विकसित देशों के समूह का सबसे महत्वपूर्ण देश बनकर उभर सकता है।
लेकिन यह सिर्फ सोच लेने से या मान लेने से संभव नहीं होगा, बल्कि इसके लिए अनुमान से कहीं ज्यादा मेहनत और दृढ़ता दिखानी होगी। अगर अगले 23 सालों तक भारत की सालाना आर्थिक विकास दर 7.6 से 8.0 फीसदी रहती है और भारतीयों की प्रतिव्यक्ति आय वर्तमान के 2600 डॉलर सालाना से बढ़कर 10,205 अमरीकी डॉलर सालाना हो जाती है, तो भारत को अगले 23 सालों में विकासशील से विकसित देश बनने में दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। साल 2024-25 के आम बजट और उसके पहले आर्थिक सर्वे में भारत की जो सालाना विकास दर आंकी गई है, वह उत्साहजनक है और इसी आंकड़े के आसपास है। भारत को लगातार यह विकास दर हासिल कैसे होगी?

दुनिया की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति
तकनीकी रूप से सकल घरेलू उत्पाद के आईने में भारत अभी दुनिया की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति है। लेकिन जिस गति से अपने यहां आर्थिक विकास हो रहा है, उसके चलते अनौपचारिक रूप से भारत दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बन चुका है, जिस पर 2027 के अंत या 2028 की शुरुआत में औपचारिक मोहर लग जाएगी। भारत वर्तमान में दुनिया के सबसे अधिक युवाओं वाला देश है और अगले पांच सालों तक अगर हम सबसे युवा देश नहीं भी रहे तो भी पहले तीन सबसे युवा देशों में एक होंगे। इसलिए भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभों का भरपूर फायदा उठाना चाहिए। दूसरी महत्वपूर्ण बात, भारत को अगले 23 सालों तक मौजूदा विकास दर को बनाये रखने के लिए सभी तरह के जरूरी सुधारों को करते रहना होगा।
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युवाओं की सबसे बड़ी संख्या
विकसित देश बनने के लिए सरकार के प्रयास तो महत्वपूर्ण हैं ही, भारत की युवा आबादी को भी इसमें बढ़-चढ़कर और पूरी दृढ़ता व संकल्प के साथ काम करने होंगे। भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी वर्क फोर्स है और इसमें युवाओं की सबसे बड़ी संख्या है। लेकिन युवा होना और संख्या में बहुत होना ही विकास या खुशहाली की गारंटी नहीं है। हमारे युवाओं को महत्वपूर्ण संसाधन साबित होना भी जरूरी है। आज भारत में भले 4 करोड़ से ज्यादा युवा बेरोजगार हों, लेकिन दूसरी तरफ सच्चाई यह भी है कि भारत को सभी क्षेत्रों में मिलाकर करीब ढाई करोड़ कुशल कामगारों की भी जरूरत है। यही नहीं हमें अपने कौशल विकास के कार्यक्रमों को सच में मूर्त रूप देना होगा। कागजों पर तो 4 करोड़ से ज्यादा युवा विभिन्न तरह की कुशलताओं में पारंगत होने का सर्टिफिकेट भी हासिल कर चुके हैं।

दुनिया में सबसे ज्यादा वर्कफोर्स
आज दुनिया में सबसे ज्यादा वर्कफोर्स होने के बाद भी हमारा वर्क परफोर्मेंस दुनिया के 56-57 देशों से नीचे है। भारत में आज भी महज 10 फीसदी वर्कफोर्स ही स्किल्ड है। भारत को अगर अगले 23 सालों में दुनिया के विकसित देशों का महत्वपूर्ण हिस्सा बनना है, तो न सिर्फ हमें अपने श्रम बल्कि भूमि के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण सुधारों को जगह देनी होगी। हमें इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि भारत की विकास दर कई दूसरे देशों की तरह रैखिक या ऊर्ध्व नहीं है, बल्कि यह संरचनात्मक बदलावों और हालात से निपटने के अनुकूल है। इसलिए भारत की अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक और पर्यावरणीय व्यवधानों के बीच विकास होगा। हमें इसके लिए हर समय तैयार रहना होगा। भले आज भारत आजादी के बाद बहुत ज्यादा बदल गया हो, लेकिन आज भी महिलाएं हमारे श्रमशक्ति का 50 फीसदी हिस्सा नहीं हैं। अगर हमें विकसित देश बनना है, तो महिलाओं की श्रमशक्ति में भागीदारी 70 फीसदी से ज्यादा सुनिश्चित करना होगा।
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आजादी को फ्रीडम एट मिडनाइट
स्वतंत्रता दिवस हमारे लिए आजादी, समानता और न्याय के मूल्यों पर विचार करने का दिन है। इस दिन हम आजादी के लिए लड़ने वाले असंख्य नायकों को भी याद करते हैं। हमारी आजादी को फ्रीडम एट मिडनाइट यानी आधी रात को आजादी कहा जाता है। इसकी वजह यह है कि ज्योतिषियों ने 15 अगस्त 1947 का दिन शुभ नहीं बताया था। आजादी के दिन महात्मा गांधी दिल्ली में नहीं, बल्कि कलकत्ता में थे। गांधीजी को कलकत्ता में दंगे होने का डर सता रहा था और वह उसे हर हाल में रोकना चाहते थे। 14 अगस्त को सूर्यास्त के बाद देश से गुलामी के प्रतीक यूनियन जैक को उतार दिया गया, लेकिन इसका कोई जश्न नहीं मनाया गया।
असल में माउंटबेटेन का आग्रह था कि यूनियन जैक उतारने की बजाय भारत के ध्वज को फहराने का जश्न मनाया जाए, जिसे पं. जवाहरलाल नेहरू ने स्वीकार कर लिया था। पं. नेहरू ईश्वर पर जरा भी विश्वास नहीं करते थे, लेकिन मद्रास के नटराज मंदिर से पीतांबर और अन्य पवित्र वस्तुएं ले कर अनेक साधु दिल्ली आए थे, उन्होंने पंडित नेहरू का धार्मिक तरीके से चंदन आदि लगाकर स्वागत किया। शपथ की तैयारी में लगे नेहरू उस समय गहन चिंता में डूब गए जब उन्हें यह सूचना मिली कि लाहौर में कई जगहों पर हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। इन्हीं चिंताओं के बीच पंडित नेहरू ने आजाद भारत को सबोधित किया और उनका वह ऐतिहसिक भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ के नाम से ख्यात हुआ। इसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ भाषणों में शुमार किया जाता है। हांलाकि, नेहरू का कहना था कि वह तमाम घटनाओं से इतने चिंतित थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि वे क्या बोल रहे हैं?
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