America Tariff: बचने के लिए मलेशिया, थाइलैंड को बना रहा हथियार
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब से राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली है, तभी से वो अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर लगाने वाले टैरिफ के विरोध में उस देश के ऊपर टैरिफ लगा रहे हैं। इसमें अभी तक डोनाल्ड ट्रंप ने सबसे ज्यादा टैरिफ चीन के ऊपर लगाया है। 2017 में जब डोनाल्ड ट्रंप पहली बार राष्ट्रपति बने थे, तब उन्होंने चीन के खिलाफ सिर्फ बात की थी, लेकिन इस बार ट्रंप कुछ बदले हुए नजर आ रहे हैं और वो ज्यादा बोलने की जगह करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। अगर कहा जाए कि अमेरिका टैरिफ के जाल में चीन बुरी तरह से फंस गया है तो ये गलत नहीं होगा। दरअसल अब चीन को अमेरिकी बाजार की जगह अपना सामान खपाने के लिए दूसरे देशों की ओर निर्भर होना पड़ रहा है। ऐसे में चीन ने अपने प्रोडक्ट को डंप करने के लिए नया डंपिंग यार्ड ढूंढ लिया है, जिस वजह से इन देशों की मैन्युफैक्चरिंग तो घटी है साथ में इन देशों में लोगों की जॉब्स भी जा रही है।
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America Tariff: 2024 में चीन का सरप्लस ट्रेड
कोरोना महामारी में जहां पूरी दुनिया लॉकडाउन लगा कर महामारी से अपना बचाव कर रही थी, वहीं चीन ने इस दौर को भुनाने का काम किया और अपनी मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी को तेजी से बढ़ाया। इसका नतीजा ये हुआ कि 2024 में चीन ने 86 लाख करोड़ रुपए का सरप्लस रिकॉर्ड ट्रेड किया, जिसमें 37 लाख करोड़ रुपए के एक्सपोर्ट के साथ अमेरिका चीन का सबसे बड़ा बाजार रहा था। अब डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापिसी से चीन के लिए अमेरिका में निर्यात करना दूर की कौड़ी बनता जा रहा है, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति सबसे बड़ा रोड़ा ह
काबू में करना काफी जरूरी
चीन डोनाल्ड ट्रंप के 2017 के कार्यकाल तरह इस बार भी उन्हें हल्के में ले रहा था। चीन को लग रहा था कि डोनाल्ड ट्रंप केवल अमेरिका फर्स्ट को अपने भाषणों तक ही सीमित रखेंगे, जिससे उससे अमेरिकी बाजार में घुसने में कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन 2025 के ट्रंप कार्यकाल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप काफी बदले-बदले नजर आ रहे हैं, जिसमें उनके टैरिफ वार से उनके पड़ौसी मैक्सिको और कनाडा भी नहीं बच पा रहे हैं। ऐसे में चीन यानी ड्रैगन को तो डोनाल्ड ट्रंप को काबू में करना काफी जरूरी थी और उन्होंने ऐसा करने के लिए चीन के ऊपर धड़ाधड़ टैरिफ लगाना शुरू कर दिया।
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1 फीसदी तक कम होगी चीन की GDP
अमेरिकी टैरिफ के चलते चीन का एक्सपोर्ट प्रभावित होगा, जिसके चलते विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले फाइनेंशियल ईयर में चीन की जीडीपी में 1 फीसदी की गिरावट देखने को मिल सकती है। अगर चीन अमेरिका का वैकल्पिक बाजार तलाश लेता है तो उसे होने वाला घाटा थोड़ा कम जरूर हो सकता है, लेकिन फिलहाल ऐसा होता दिख नहीं रहा, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप किसी भी तरह से चीन को कोई रियायत देने के मूड में नहीं दिख रहे।
‘अर्ली – वॉर्निंग सिस्टम’ ने किया काम तो बचेगी ड्रैगन की जान
लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के अनुसार चीन ने अपने एक्सपोर्ट जोखिम को कम करने के लिए एक टास्क फोर्स बनाई हुई, जिसे अर्ली वार्निंग सिस्टम नाम दिया है, जो तमाम स्टडी के आधार पर पता लगाती है कि कैसे और किसकी वजह से चीन का एक्सपोर्ट प्रभावित हो सकता है। इसी का नतीजा है कि चीन अमेरिकी चुनौती से निपटने के लिए तुरंत एक्शन मोड में आ गया। अमेरिकी टैरिफ वार से बचने के लिए चीन काफी पहले से ही अलर्ट मोड में आ गया था, जिसका नतीजा है कि चीन ने इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देशों को अपना एक्सपोर्ट बढ़ा दिया, लेकिन इसके परिणाम इन देशों पर नेगेटिव पड़ना शुरू हो गए हैं। दरअसल चीन के सस्ते समान के आगे इनके महंगे घरेलू प्रोडक्ट टिक नहीं पा रहे और इससे इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड की मैन्युफैक्चरिंग सुस्त पड़ गई है और इसी का नतीजा है कि बड़े पैमाने पर यहां छंटनी हुई है। इंडोनेशिया फाइबर और फिलामेंट यार्न प्रोड्यूसर एसोसिएशन के मुताबिक, दो साल में टेक्सटाइल इंडस्ट्री से करीब 25 लाख छंटनी हो चुकी है। संगठन ने 2025 में 5 लाख और छंटनी की आशंका जताई है।