Jagat, Satyam, and Nitish – बिहार की स्टार्टअप कंपनी ने बदल दी ग्रामीणों की जिंदगी
Jagat, Satyam, and Nitish: मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद तीन दोस्त जगत कल्याण, नीतीश कुमार और सत्यम कुमार ने बड़ी कंपनियों में नौकरी करने की बजाय अपने गांव में ही भविष्य की नींव रखी और खेती-किसानी जुडें कारोबार को शुरू किया। कुछ करने का जज्बा हो तो सफलता कदम चूमती है। कुछ ऐसा ही बिहार के तीन दोस्तों ने कर दिखाया है। तीनों ने कुछ नया करने का सोचा और नौकरी नहीं करने का फैसला किया। तीनों दोस्तों ने बिहार में ही स्टार्टअप की योजना बनाई। वैशाली जिला के रामपुर नौसहन गांव के रहने वाले तीनों दोस्तों ने एक साथ वैशाली जिले के केवीके से केला के थम से रेशा एवं खाद बनाने का प्रशिक्षण लिया, और केवीके की मदद से 2022 में केले के थम से रेशा,वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाने का व्यवसाय शुरू किया।

तरुवर एग्रो नाम से स्टार्टअप की शुरुआत
तीनों दोस्तों ने अपनी पूंजी लगाकर 2021 में तरुवर एग्रो नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की। जतिन ने बताया कि तीनों ने अपने घर से कुल 15 लाख रुपये की पूंजी लगाने का फैसला किया। इस नई योजना को लेकर परिवार वालों का भी साथ मिला। आज स्थिति ऐसी है कि यह (कंपनी) अपने आप में अब ऑटो मोड पर चलना शुरू कर चुकी है। नीतीश ने कहा कि बिहार के लोगों का सपना होता है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी करें। लेकिन हमने हमेशा एक बात को लेकर आगे बढ़ने का फैसला किया कि बिहार में रहकर बिहार के लोगों के लिए काम करना है। अपने पूरे प्रोजेक्ट के बारे में अपने परिवार वालों को समझाया कि यदि हम लोग बाहर जाकर नौकरी करेंगे तो फिर हमारे आगे की पीढ़ी भी बाहर जाकर नौकरी करने की सोचेगी। हमारे प्रोजेक्ट से परिवार के लोग संतुष्ट हुए और हमने अपना नया स्टार्टअप शुरू किया।
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लीज पर ली जमीन
बिहार ही नहीं पूरे देश में हाजीपुर की पहचान केले के उन्नत फसल के रूप की जाती है। इसलिए इन तीनों ने तरुवर एग्रो का यूनिट हाजीपुर में लगाने का फैसला किया। हाजीपुर के जरुआ में लीज पर जमीन ली। 15 हजार रु प्रतिमाह की लीज पर जमीन ली। वहां पर प्रोसेसिंग प्लांट लगाया। तीनों दोस्तों ने केले का रेशा निकालने की 2 मशीन खरीदी, लेकिन बाद में खुद ही अपने हिसाब से मशीन असेंबल करवा कर कुछ और मशीन यहां लगवाया। आज तरुवर एग्रो का तीन यूनिट काम कर रहा है। एक में बनाना फैब्रिक का काम होता है। दूसरे यूनिट में वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाता है और तीसरी यूनिट में ड्राई फ्रूट्स प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग की यूनिट लगाई गई है।

किसानों से वेस्टेज की खरीद
हाजीपुर में हजारों एकड़ में केले की खेती होती है। केला के फसल में एक चीज होती है कि पेड़ से फल निकलने के बाद उस पेड़ में दुबारा फल नहीं निकलता है। इसलिए केले के पेड़ को काट कर फेंक दिया जाता है। इन लोगों ने केला की खेती करने वाले किसानों से पेड़ के कटे भागों को उनके हाथों बेचने की बात की। किसान भी केले के तनों को उनको बेचने को तैयार हो गए। जतिन ने बताया कि केले के पेड़ के निचले हिस्से का वजन 60 से 100 किलो तक का होता है। हम किसानों की 1 थंब के लिए 18 से 20 रु देते हैं। 1 ट्रैक्टर पर 100 केले के थंब आते हैं। इस तरह जिस चीज को किसान फेंक देते थे। उसके बदले उनको प्रति टेलर 2000 रु मिलने लगे। आज हाजीपुर के 2 दर्जन से अधिक किसान हमारे यहां केले के कटे पेड़ की सप्लाई करते हैं।
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रेशा 100 से 1000 रुपए प्रति किलो तक बिकता है
सत्यम कुमार कहते हैं कि अगर आज नौकरी कर रहे होते तो करीब 8 से 9 लाख रुपए का सालाना पैकेज होता। 9 से 4 की नौकरी तक ही जिंदगी सिमट कर रह जाती। लेकिन आज समाज में एक अलग पहचान बन रहा है, जो शायद नौकरी से संभव नहीं था। वहीं जगत कल्याण कहते हैं कि एक केले के पेड़ से करीब 500 ग्राम तक रेशा बनता है। अलग-अलग क्वालिटी का रेशा 100 से 1000 रुपए प्रति किलो तक बिक जाता है। पांच बनाना फाइबर एक्सट्रैक्शन (केला के थम से रेशा बनाने वाली) मशीन की मदद से हर रोज करीब 60 से 70 किलो रेशा तैयार किया जाता है।

देश के अलग अलग राज्यों में जाता है
आज यहां का रेशा देश के अलग अलग राज्यों में भेजा जा रहा है। वहीं अगर यहां रेशा से कपड़ा, धागा बनाने की फैक्ट्री लग जाए। तो किसानों को काफी फायदा हो सकता है। वहीं जगत कल्याण कहते हैं कि आज करीब 60 से 70 हजार रुपए की कमाई महीने का हो जाता है। ये लोग केला के थम से रेशा बनाने के साथ वर्मी कंपोस्ट खाद भी बनाते हैं। सत्यम कुमार कहते हैं कि केला के थम से रेशा बनाने के दौरान जो कचड़ा निकलता है। उससे वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाते हैं। ये कहते हैं कि प्रति 30 किलो एक पैकेट 500 रुपए तक के भाव से बेचा जाता है। वहीं खाद बनाने के दौरान 70 प्रतिशत केला से निकलने वाला पलप एवं वेस्टेज और 30 प्रतिशत गोबर की मदद से वर्मी कम्पोस्ट बनाया जाता है। नीतीश कुमार, जगत कल्याण एवं सत्यम कुमार खुद आत्मनिर्भर बन रहे हैं। साथ ही आसपास के कई लोगों को रोजगार देकर उनके जीवन में भी बदलाव ला रहे हैं। वहीं करीब 15 लोगों को 8 से 10 हजार रुपए प्रति महीने की सैलरी पर रखा गया है। यहां काम करने वाले कर्मचारी कहते हैं कि घर बैठे ही नौकरी मिल गई है। इतनी ही सैलरी की नौकरी के लिए कई लोग बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
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फाइल फोल्डर और पर्स भी हो रहा तैयार
सत्यम कुमार ने बताया कि आज तरुवर एग्रो के कई प्रोडक्ट तैयार हो रहे हैं। तरुवर एग्रो में पहले केवल केले के तना के रेशे से धागा का निर्माण होता था, लेकिन धीरे धीरे कई प्रोडक्ट तैयार होने लगे। केले के फाइबर के अलावे केले के पौधे के रस से पोषक तत्वों और पोटेशियम से भरपूर होता है। इसका लैब टेस्ट भागलपुर स्थित सबौर कृषि विश्वविद्यालय में हुआ। इसलिए केले के पेड़ रस से उन लोगों ने खेतों के लिए उपयोगी पोटेशियम का लिक्विड तैयार किया। इस लिक्विड को खेतों में डालने से खेतों में पोटेशियम की कमी दूर हो जाती है। तीनों दोस्तों ने बताया कि केले के वेस्टेज से उन लोगों ने वर्मी कंपोस्ट की यूनिट तैयार की। केले के पेड़ के वेस्टेज से तैयार वर्मी कंपोस्ट खेतों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हो रहा है। तरुवर एग्रो विभिन्न स्वादों में बेक्ड मखाना स्नैक्स भी बना रहा है। केले के रेशे से फाइल, फोल्डर और पर्स भी बनाया जा रहा है। इसके अलावा केले का धागा भी है जिसका इस्तेमाल मंदिरों में उपयोग होने वाले फूलों के माला एवं अन्य आर्टिफिशियल माला के धागे के रूप में किया जा रहा है।

8-9 बार यूज कर सकते हैं एक सेनेटरी पैड
केले के फाइबर से बने सेनेटरी पैड भी बनाई जा रही है। इससे 2 तरह का सेनेटरी पैड बनते हैं। पहले इको फ्रेंडली जो एक बार में यूज करके फेंक देते हैं। दूसरा हाई क्वालिटी का वॉशेबल सेनेटरी पैड जिसका उपयोग 8 से 9 बार तक किया जाता है। जतिन ने बताया कि वे लोग जिस चीज का उत्पादन करते हैं, उसकी सप्लाई बिहार के बाहर के कई राज्यों में हो रही है। जतिन ने बताया कि गुजरात बंगाल कर्नाटक और केरल के टेक्सटाइल से जुड़े हुए कारोबारी उन लोगों के संपर्क में है। जहां-जहां फाइबर पर काम हो रहा है, वहां के व्यापारी हमसे माल मंगवाते हैं। देश के बाहर भी हमारे प्रोडक्ट का सैंपल मंगवाया गया है। जापान और फ्रांस में प्रोडक्ट का सैंपल मंगवाया गया है। यदि सब कुछ सही रहा तो देश के बाहर भी अब अपना प्रोडक्ट भेज सकेंगे।

लोकल फॉर वोकल पर जो
जतिन ने बताया कि वह लोग बिहार में इसको लेकर लोगों को जागरुक कर रहे हैं। उनके यहां तैयार फैब्रिक को भागलपुर के बुनकरों को भेजा जा रहा है। इसके अलावा हाजीपुर और स्थानीय लोगों को हैंडीक्राफ्ट के क्षेत्र में सक्षम बनाने के लिए वह अपने प्रोडक्ट यहां के स्थानीय लोगों एवं कलाकारों को दे रहे हैं ताकि उनको यहीं पर सभी चीज की आपूर्ति हो सके। सत्यम कुमार ने बताया कि उनके यहां जितने माल तैयार होते हैं, वह बड़े व्यापारी को यह लोग खुद सप्लाई कर देते हैं। सेफेक्स ,डीएचएल और गति से क्लाइंट के पास प्रोडक्ट आसानी से भेज देते हैं। सत्यम ने बताया कि उन लोगों को देखने के बाद स्थानीय लोग भी अब इस क्षेत्र में काम करने को उत्सुक हुए हैं।
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वर्मी कंपोस्ट की मांग
नीतीश वर्मा ने कहा कि उनके वर्मी कंपोस्ट की लोकप्रियता किसानों के बीच बढ़ रही है। हाजीपुर एवं अन्य जिलों के नर्सरी के व्यापारी उनके वर्मी कंपोस्ट को खरीद कर ले जा रहे हैं। सत्यम कुमार ने बताया कि तरुवर एग्रो की 4 मजदूरों के साथ शुरुआत की गई थी, लेकिन आज इनके यूनिट में 30 के करीब स्थाई एवं दैनिक मजदूर काम कर रहे हैं। उनके यहां काम करने वाले लोगों में महिलाओं की संख्या अधिक है। इनके वेतन के मद में हर महीने करीब 4 लाख रु खर्च हो रहा है। सत्यम कुमार ने बताया कि उन लोगों ने बहुत छोटे स्केल पर इस स्टार्टअप की शुरुआत की थी। 2024 में इन लोगों का सालाना टर्नओवर 1.50 करोड़ के आसपास है, लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले वर्ष उनके कंपनी का सालाना टर्नओवर 5 से 6 करोड़ प्रतिवर्ष का होगा। जतिन ने बताया कि उन लोगों ने इसकी शुरुआत की थी, तब लक्ष्य ही था कि इस क्षेत्र में वह बिहार के प्रोडक्ट को देश स्तर तक ले जाएं। बिहार के लोगों को बिहार में रोजगार मिले उसको लेकर काम करने का सपना है। जतिन ने बताया कि उन लोगों का लक्ष्य है कि कुछ ऐसे प्रोडक्ट की शुरुआत की जाए जिसका फ्यूचर में डिमांड हो।
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