PM Modi – Trump Meet : मोदी-ट्रंप के बीच हुए समझौते को लेकर आशावादी हैं industry expert
PM Modi – Trump Meet – भारत-अमेरिका ट्रस्ट दोनों देशों के बीच आर्थिक और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सहयोग का रास्ता साफ करेगा, जबकि आईएमईसी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करने से बुनियादी ढांचे और आर्थिक गलियारों में सहयोग गहरा होगा। उद्योग विशेषज्ञों ने यह उम्मीद जताई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने महत्वपूर्ण खनिजों, उन्नत सामग्रियों और फार्मास्युटिकल्स की मजबूत आपूर्ति शृंखला बनाने पर जोर देने के लिए ‘रणनीतिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए संबंधों में बदलाव’ (ट्रस्ट) पहल पर सहमति जताई है।
अमेरिका में ट्रंप-मोदी बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य के अनुसार, दोनों देशों ने लिथियम और ‘दुर्लभ मृदा’ जैसे रणनीतिक खनिजों के लिए पुनर्प्राप्ति और प्रसंस्करण पहल शुरू करने का निर्णय लिया है। दोनों पक्ष आईएमईसी (भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा) और आई2यू2 ढांचे के तहत आर्थिक गलियारों और संपर्क बुनियादी ढांचे पर भी मिलकर काम करेंगे।

औद्योगिक भविष्य को होगा सुरक्षित : राजमणि कृष्णमूर्ति
भारतीय इस्पात संघ (आईएसए) के शीर्ष निकाय के अध्यक्ष और जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) के चेयरमैन नवीन जिंदल ने कहा कि महत्वपूर्ण खनिजों और उन्नत सामग्रियों पर ‘ट्रस्ट’ की पहल आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आईएमईसी और आई2यू2 समूह पर प्रधानमंत्री का ध्यान वैश्विक संपर्क के लिए रणनीतिक प्रयास को दर्शाता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलता है। भारतीय स्टेनलेस स्टील विकास संघ (आईएसएसडीए) के अध्यक्ष राजमणि कृष्णमूर्ति ने कहा कि महत्वपूर्ण खनिजों, उन्नत सामग्रियों और फार्मास्युटिकल्स के लिए मजबूत आपूर्ति शृंखला बनाने पर जोर, विशेष रूप से स्टेनलेस स्टील, विशेष मिश्र धातु और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भारत के औद्योगिक भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
टेक्समैको रेल एंड इंजीनियरिंग के वाइस चेयरमैन और कार्यकारी निदेशक इंद्रजीत मुखर्जी ने कहा कि लीथियम और दुर्लभ मृदा तत्वों जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के लिए मजबूत आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि हरित ऊर्जा बदलाव और इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) प्रौद्योगिकियों के विकास में उनकी केंद्रीय भूमिका है। बुनियादी ढांचे और रेलवे में एक प्रमुख हितधारक के रूप में टेक्समैको विनिर्माण और प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों में नए अवसर पैदा करने के लिए इस सहयोग में अपार संभावनाएं देखती है।

भारत-अमेरिका में कारोबारी भरोसा बढ़ा: गोयल
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को कहा कि भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत की घोषणा से दोनों देशों में कारोबारी विश्वास बढ़ा है। उन्होंने कहा कि इससे उनकी प्रतिस्पर्धा करने की ताकत का लाभ उठाकर आर्थिक संबंधों को और मजबूत करने में मदद मिल सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना कर 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने तथा 2025 के अंत तक पारस्परिक रूप से लाभकारी, बहुक्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) के पहले चरण पर बातचीत करने की घोषणा की।
गोयल ने कहा कि प्रधानमंत्री अपने साथ इस वर्ष के अंत तक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए एक समझौता या सहमति लेकर आए हैं। मुझे लगता है कि यह अमेरिका और भारत में हर व्यवसायी को बहुत आत्मविश्वास और राहत देता है, जो मानते हैं कि साथ मिलकर हम वास्तव में वैश्विक व्यापार को बदल सकते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिस्पर्धी शक्तियों के साथ, हम वास्तव में दो दोस्तों के रूप में, प्रगति और समृद्धि के लिए दो भागीदारों के रूप में काम कर सकते हैं। आमतौर पर मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) में दो व्यापारिक साझेदार अपने बीच व्यापार वाले उत्पादों की अधिकतम संख्या पर सीमा शुल्क को या तो समाप्त कर देते हैं या काफी कम कर देते हैं। इसके अलावा वे सेवाओं में व्यापार को बढ़ावा देने और निवेश को बढ़ावा देने के लिए मानदंडों को भी सुगम बनाते हैं।
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नई साझेदारियों का विस्तार और निर्माण
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान, दोनों देशों ने एक छोटे व्यापार समझौते पर चर्चा की थी, लेकिन जो बाइडन प्रशासन ने इसे टाल दिया था, क्योंकि वह इस तरह के समझौतों के पक्ष में नहीं थे। वाणिज्य मंत्री ने कहा कि भारत, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ईएफटीए ब्लॉक सहित विकसित देशों के साथ नए व्यापार समझौतों के माध्यम से दुनियाभर में नई साझेदारियों का विस्तार और निर्माण कर रहा है। यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के सदस्य आइसलैंड, लीश्टेंस्टाइन, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड हैं। गोयल ने कहा कि यूरोप के साथ अन्य संबंधों में हम जो प्रगति कर रहे हैं और इस साल के अंत तक व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के लिए हम जल्द ही अमेरिका के साथ जो प्रगति करेंगे, वह सभी वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती प्रासंगिकता को दर्शाते हैं।

जापानी कंपनियों तलाश रही संभावनाएं
कोविड-19 महामारी के बाद जापानी कंपनियां भारत को अपने एक आधार के रूप में देख रही हैं, क्योंकि वे चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अपने विनिर्माण और आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने के लिए ‘चीन प्लस वन’ रणनीति अपना रही हैं। वित्तीय परामर्श कंपनी डेलॉयट के विशेषज्ञों ने कहा कि इस नीति में वैकल्पिक देशों में उत्पादन सुविधाएं स्थापित करना शामिल है, जिसमें भारत एक महत्वपूर्ण लाभार्थी के रूप में उभर रहा है। डेलॉयट जापान के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) केनिची किमुरा ने कहा कि कोविड के बाद जापानी कंपनियां ‘चीन-प्लस’ आपूर्ति शृंखला रणनीतियों की सक्रियता से खोज कर रही हैं,
जिसमें भारत एक प्रमुख गंतव्य के रूप में उभर रहा है। जहां कुछ कंपनियां जापान लौट गईं, वहीं अन्य भारत को न केवल एक विनिर्माण केंद्र के रूप में देख रही हैं, बल्कि इसे पश्चिम एशिया और अफ्रीका जैसे उच्च-वृद्धि वाले बाजारों के प्रवेश द्वार के रूप में भी देख रही हैं। यद्यपि भारत के घरेलू बाजार का विशाल आकार एक प्रमुख आकर्षण है, वहीं भारत को और भी अधिक आकर्षक बनाने वाली बात यह है कि इन क्षेत्रों में इसका सुस्थापित व्यापार और प्रतिभा नेटवर्क है।
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महत्वपूर्ण आपूर्ति शृंखला केंद्र
किमुरा ने कहा कि जहां जापानी व्यवसायों को अब भी इस क्षमता का पूरी तरह से दोहन करना बाकी है, हम भारत को न केवल एक बाजार के रूप में देखते हैं, बल्कि एक महत्वपूर्ण आपूर्ति शृंखला केंद्र के रूप में देखते हैं, जो क्षेत्रीय और वैश्विक सफलता को आगे बढ़ा सकता है। जापान सरकार ने कंपनियों को घरेलू स्तर पर या दक्षिण-पूर्व एशिया में उत्पादन स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त धनराशि आवंटित करके इस बदलाव का सक्रिय रूप से समर्थन किया है। जापानी कंपनियां भारत के बड़े घरेलू बाजार और प्रतिस्पर्धी श्रम लागत का लाभ उठाने के लिए रणनीतिक साझेदारी बना रही हैं और भारत में परिचालन का विस्तार कर रही हैं। डेलॉयट दक्षिण एशिया के सीईओ रोमल शेट्टी ने कहा कि ‘चीन प्लस वन’ रणनीति ने जापानी कंपनियों को भारत में संभावनाएं तलाशने और निवेश करने के लिए प्रेरित किया है, जिसका उद्देश्य अपनी आपूर्ति शृंखला में विविधता लाना और देश की आर्थिक क्षमता का लाभ उठाना है।
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