Sachin Kumar, founder Sattuz : ‘सत्तूज’ कंपनी के फाउंडर सचिन कुमार का सालाना टर्नओवर डेढ़ करोड़
Sachin Kumar, founder Sattuz – पटना स्थित ‘सत्तूज’ कंपनी के फाउंडर सचिन कुमार बताते हैं, बचपन से लोगों को सत्तू खाते-पीते देखते हुए बड़ा हुआ। इसे बिहार का फास्ट-फूड भी कहा जाता है। एक ग्लास पानी लिया, दो चम्मच सत्तू मिलाया और नमक या चीनी के साथ पी लिया। MBA के दौरान मार्केटिंग में इंटरेस्ट आने लगा था। सोचता था कि बिहार का ऐसा कौन-सा प्रोडक्ट है, जिसे वर्ल्ड लेवल पर फेमस किया जा सकता है। मैं मधुबनी जिले से हूं, यहां की मिथिला पेंटिंग और मखाना पूरी दुनिया में फेमस है, लेकिन सत्तू पर किसी का ध्यान नहीं गया था। सचिन कहते हैं, बिहार का ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा, जिसने एक बार भी सत्तू न पिया हो, लेकिन बिहार से बाहर के लोग सत्तू को उतना नहीं जानते हैं। सत्तू की आज तक कोई भी ग्लोबल कंपनी नहीं बन पाई। यंगस्टर भी इससे दूर होते चले गए। लिहाजा मैंने तय किया कि बिहार के सत्तू को दुनियाभर में पहुंचाना है।

2014 से रिसर्च करनी शुरू की
सचिन अपने बीते दिनों को याद करते हैं, गांव लौटने के कुछ साल बाद मेरी शादी हो गई। मेरी पत्नी BA पास थी। हम दोनों ने सत्तू पर 2014 से रिसर्च करनी शुरू की। बिहार के अलग-अलग शहरों के अलावा दिल्ली, मुंबई समेत उन जगहों पर जाने लगा, जहां सत्तू बनता था। हर जगह साधारण जल-जीरा फ्लेवर का सत्तू ही दिख रहा था। इसका कोई ब्रांड नहीं था। सभी लोकल मार्केट के थे। सत्तू का ऐसा प्रोडक्ट नहीं दिखा, जो रेडी-टू-ड्रिंक के फॉर्मेट में हो। लोग पैकेट को फाड़ें और पानी या दूध के साथ घोलकर पी लें। सत्तू प्रोटीन और कार्बोनेटेड ड्रिंक्स का अच्छा और हेल्दी ऑप्शन है। शुरुआत में जब सचिन ने अपने रिश्तेदार-दोस्तों और घरवालों को सत्तू का स्टार्टअप शुरू करने के बारे में बताया, तो उनमें से कइयों ने सचिन का मजाक उड़ाया। कहते थे, ‘सत्तू का कारोबार भी कोई आइडिया है।’

कमेंट्स को इग्नोर करना शुरू किया
सचिन कहते हैं, जब मैंने लोगों के कमेंट्स को इग्नोर करना शुरू किया और ठान लिया कि सत्तू का ही स्टार्टअप करना है, तो कुछ दोस्तों और बाद में घरवालों ने भी सपोर्ट किया। बिहार में स्टार्टअप शुरू करने को लेकर सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि यदि आप किसी बड़ी कंपनी से जुड़ते हैं, तो ना सिर्फ परिवार सपोर्ट करता है, बल्कि बैंक भी लोन दे देता है। लेकिन स्टार्टअप के मामले में ऐसा नहीं हो पाता। साल 2018 के 14 अप्रैल की बात है। इस दिन नॉर्थ इंडिया में सतुआनी (सतुआन) मनाया जाता है।
लोग खासतौर से सत्तू खाते या पीते हैं। हमने इसे मार्केट में लॉन्च कर दिया, लेकिन स्टार्टअप को बूस्ट करने के लिए अधिक फंड की जरूरत थी। 2019 की बात है। हम जहां भी जाते थे, साथ में सत्तू का पैकेट जरूर लेकर जाते थे। कोलकाता के एक सेमिनार में गया था। हमने वहां एक एंजेल इन्वेस्टर को ग्लास में सत्तू घोलकर पिलाया। पीते ही वो शॉक्ड हो गए कि सत्तू को ऐसे भी बनाया जा सकता है? उन्होंने कहा, ‘क्या चाहिए।’ हमने उनसे फंड देने की रिक्वेस्ट की। मार्केट में सत्तू बनाने वाली लोकल कंपनियों की पकड़ है। गांव के लोग आज भी चने को भूनकर खुद से सत्तू तैयार करते हैं।
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अलग-अलग फ्लेवर पैक्ड हैं
सचिन हमें कुछ पैकेट्स दिखाते हैं, जिसमें सत्तू के अलग-अलग फ्लेवर पैक्ड हैं। वो कहते हैं, शुरुआत से ही हमारा टारगेट लोकल मार्केट नहीं रहा। इस देसी स्वाद को इंटरनेशनल लेवल तक पहुंचाना था। यंगस्टर को सत्तू बोरिंग लगने लगा था। इसलिए पत्नी ऋचा के साथ मिलकर सत्तू को तीन फ्लेवर- चॉकलेट, जल-जीरा और स्वीट में तैयार किया। सचिन कहते हैं, लोगों के फीडबैक से पता चला कि कई फ्लेवर्स में सत्तू मार्केट में आ जाए, उसकी पैकेजिंग बेहतर हो, तो ये उनकी डेली रूटीन में शामिल हो सकता है। सचिन दो वाकया बताते हैं।
पहला- पटना के पारस हॉस्पिटल समेत कई दूसरे हॉस्पिटल में हमने ट्रायल के लिए सत्तू का स्टॉल लगाया था। एक-एक गिलास सत्तू अलग-अलग फ्लेवर में घोलकर डॉक्टर को ऑफर किया, तो उनकी पहली लाइन थी- ‘क्या बवाल बनाए हो, ये है क्या !’ दूसरा- बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, भागलपुर में तीन दिन का सेमिनार था। यूके के कुछ साइंटिस्ट आए थे। जब हमने सत्तू घोलकर उन्हें ऑफर किया और उन्होंने पिया तो उनके मुंह से निकल पड़ा, ‘वाओ इट्स ग्रेट’। जाते-जाते पूरा कार्टून ही खरीद ले गए। सचिन कहते हैं, शुरुआत में तो दुकानदार सत्तू को बेचना ही नहीं चाहते थे, लेकिन कई बार कहने के बाद उन्होंने इसे अपने स्टोर में रखना शुरू किया। डिब्बे में सत्तू के पैकेट के साथ एक गिलास और चम्मच भी देना शुरू किया। एक बार की बात है, यूके के एक व्यक्ति ने सत्तू मंगवाया था। जब हमने उन्हें भेजा तो उन्होंने कहा, ‘आज तक मैंने सत्तू की इस तरह से पैकेजिंग नहीं देखी।’

सालाना 10 लाख का ही कारोबार
सचिन कहते हैं, चने की सफाई के बाद इसे उबाला जाता है। फिर सुखाने के बाद इसे भूना जाता है, चक्की में पिसाई होती है। अलग-अलग फ्लेवर के साथ प्रोसेसिंग की जाती है। कुछ वेंडर्स के साथ हमारा कॉन्ट्रैक्ट है, जो रॉ मटेरियल प्रोवाइड करवाते हैं। सचिन ने जब 2018 में ‘सत्तूज’ की शुरुआत की थी, तो सालाना 10 लाख का ही कारोबार कर पा रहे थे। वो कहते हैं, कोरोना के दौरान काफी नुकसान भी हुआ, लेकिन हर महीने 10 लाख का बिजनेस हो रहा है। एक डिब्बे में 6 सैशे पैक्ड होते हैं, अलग-अलग फ्लेवर के मुताबिक इसकी कीमत 60 रुपए से लेकर 120 रुपए तक होती है। जिस वक्त हमारी उनसे बातचीत हो रही है, सचिन के क्लाउड किचन में एक डिलिवरी बॉय लिट्टी-चोखा के ऑर्डर को रिसीव करने के लिए बैठा हुआ है।
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शार्क टैंक इंडिया में अप्लाई किया
सत्तू से बनी खाने-पीने की चीजों को लेकर सचिन दिलचस्प किस्सा बताते हैं, 2020-21 में हमने शार्क टैंक इंडिया में अप्लाई किया था। वहां तीन राउंड में शूटिंग भी हुई, लेकिन फाइनल एपिसोड को टीवी पर नहीं दिखाया गया। हालांकि जजों ने जो फीडबैक दिया, उसने मेरे बिजनेस में पंख लगा दिए। शार्क टैंक के जजों ने कहा, क्यों नहीं हम एंड प्रोडक्ट यानी कि सत्तू से बने प्रोडक्ट बेचें। इसके बाद हमने पटना में क्लाउड किचन की शुरुआत की। जोमैटे, स्विगी समेत दूसरे ई-कॉमर्स फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म पर कंपनी को लिस्ट कर लिट्टी-चोखा, सत्तू पराठा समेत कई सत्तू रिलेटेड प्रोडक्ट को 24×7 बेचना शुरू किया। अभी महीने में 500 के करीब ऑर्डर आ जाते हैं। आने वाले दिनों में हम बिहार के बाहर भी आउटलेट खोलने की प्लानिंग कर रहे हैं।
फिलहाल सचिन सत्तू और इससे रिलेटेड आइटम्स के अलावा बिहार की कुछ फेमस डिशेज जैसे- ठेकुआ, नमकीन, भुना हुआ मखाना, भूंजा भी पैक्ड कर ऑनलाइन सेल कर रहे हैं। इनकी देश के अलावा विदेशों में भी डिमांड है। आखिर में सचिन स्टार्टअप का सपना देखने वाले लोगों को कुछ नसीहत भी देते हैं। कहते हैं- स्टार्टअप के लिए दिन-रात मेहनत करनी होती है। कुछ लोगों को लगता है कि यह एक ग्लैमर है, लेकिन इसके पीछे रिस्क भी है। यदि कोई स्टार्टअप शुरू करना चाहता है, तो उसके पास उस सब्जेक्ट की रिसर्च होनी चाहिए। वह कहते हैं आज हमारे सत्तू की सप्लाई देश के अलावा अमेरिका, यूके, सिंगापुर, ओमान समेत दर्जनों देशों में है। हर महीने 10 हजार पैकेट यानी 18 क्विंटल सत्तू की सप्लाई है। कंपनी का सालाना टर्नओवर डेढ़ करोड़ और मुनाफा 30% है।