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एजुकेशन

Admission In IIT: अनुसूचित जाति के छात्रों को बगैर आरक्षण आईआईटी में प्रवेश लेने में लगेंगे 367 वर्ष

Admission In IIT: हाल ही में सूचना के अधिकार के माध्यम से एकत्रित देश के पांच पुराने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों से संबंधित आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि इन संस्थानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय के छात्रों की अनुमोदन दर काफी कम है।

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/08/29 at 10:53 AM
WeStory Editorial Team
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7 Min Read
Admission In IIT
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Admission In IIT – सूचना के अधिकार माध्यम से एकत्रित आंकड़ों से मिले संकेत

Admission In IIT: हाल ही में सूचना के अधिकार के माध्यम से एकत्रित देश के पांच पुराने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों से संबंधित आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि इन संस्थानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय के छात्रों की अनुमोदन दर काफी कम है। आईआईटीज में पीएचडी प्रोग्राम हेतु अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आवेदकों के चयन होने की संभावना सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों से आधी है। लगभग चार शताब्दी वह समय सीमा है जिसमें देश के अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी के छात्रों के अंकों के बराबर पहुंचने और बगैर किसी आरक्षण के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में प्रवेश लेने में समय लगेगा। इसी तरह थोड़े सुधार के साथ 367 वर्ष लगेंगे अनुसूचित जाति के छात्रों को बगैर आरक्षण आईआईटी में प्रवेश लेने में।

Table of Contents
Admission In IIT – सूचना के अधिकार माध्यम से एकत्रित आंकड़ों से मिले संकेतसामान्य श्रेणी के छात्रों का आवेदन अधिकआरक्षण को लेकर लंबे समय से विरोध60% का इनपुट अंतर सबसे अधिकसमानता हासिल करने में 32 साल लगेंगे ओबीसी के लिए
Admission In IIT
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सामान्य श्रेणी के छात्रों का आवेदन अधिक

सरकार की आरक्षण नीति के तहत SC श्रेणी से छात्रों हेतु 15% सीटें, ST श्रेणी के छात्रों के लिये 7।5% और अन्य पिछड़ा वर्ग हेतु 27% सीटों का आवंटन अनिवार्य है। प्रवेश लेने वाले सामान्य श्रेणी के छात्रों का प्रतिशत आवेदन करने वाले छात्रों से हमेशा अधिक रहा है। हालाँकि SC, ST और OBC वर्ग के छात्रों की स्थिति इसके विपरीत देखी गई है। वर्ष 2015 से 2019 तक सभी IITs द्वारा दिये गए कुल प्रवेश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग का प्रतिशत क्रमशः 9।1% तथा 2।1% था। केवल 23।2% सीटें OBC के आवेदकों हेतु तथा शेष 65।6% या सभी सीटों का लगभग दो-तिहाई हिस्सा जनरल श्रेणी के आवेदकों के लिये आरक्षित था। कुछ संस्थान सामान्य श्रेणी की भी सभी सीटें नहीं भर पाते हैं, क्योंकि उन्हें पर्याप्त योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पाते हैं। योग्य छात्र पीएचडी में शामिल होने के बजाय अच्छी नौकरियों में चले जाते हैं, क्योंकि पीएचडी और पोस्ट पीएचडी में अनिश्चितताओं के साथ आय का निम्न स्तर बना रहता है। यह संभव है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि और आर्थिक स्तर का पीएचडी हेतु आवेदन करने वाले उम्मीदवारों पर प्रभाव पड़ सकता है।

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आरक्षण को लेकर लंबे समय से विरोध

आरक्षण को लेकर आईआईटी प्रशासकों और संकायों के मध्य लंबे समय से विरोध देखा जा रहा है, जिसे वे संस्थानों में अन्यायपूर्ण सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं। शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित समिति की हालिया रिपोर्ट में संकाय की भर्ती में आरक्षण को समाप्त करने की सिफारिश की गई है। समिति ने अपनी सिफारिशों में मुख्य रूप से उन तर्कों को शामिल किया जो शैक्षणिक उत्कृष्टता को बनाए रखने हेतु IITs की आवश्यकता के साथ-साथ आरक्षित श्रेणियों के योग्य उम्मीदवारों की कमी को पूरा करने हेतु मानदंडों पर बल देते हैं। आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र धीरज सिंह का एक श्वेत पत्र आईआईटी में शामिल होने वाले छात्रों की विभिन्न श्रेणियों के प्रवेश डेटा, प्रत्येक के औसत सामान्यीकृत अंक और उनमें से आरक्षित श्रेणी के प्रत्येक अभ्यर्थी के बगैर अरक्षण शामिल होने में लगने वाले वर्षों के संदर्भ में आवश्यक इनपुट सामने लाता है।

Admission In IIT
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60% का इनपुट अंतर सबसे अधिक

1999 में आरक्षित श्रेणी के छात्र के रूप में आईआईटी कानपुर में प्रवेश पाने वाले सिंह की यात्रा चुनौतियों से भरी रही है। उन्हें अक्सर इस सवाल का सामना करना पड़ता था कि 1970 के दशक के मध्य में शुरुआत से लगभग 50 वर्षों के बाद भारतीय छात्रों को आईआईटी में शामिल होने के लिए आरक्षण की आवश्यकता क्यों है। ऐसे में उनके समक्ष तीन प्रमुख बातों का अनुमान लगाने का लक्ष्य था। वह यह कि क्या आरक्षण हमेशा के लिए रहेगा और क्या यह अंतर कभी पूरा होगा। साथ ही क्या हम इस खाई को पाटने के लिए तेजी से काम कर सकते हैं और इसकी गति क्या होनी चाहिए? इसके लिए उन्होंने आरक्षित और बगैर आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों के 2013 और 2023 के बीच औसत अंकों का विश्लेषण किया और पाया कि एसटी छात्रों के लिए -60% का इनपुट अंतर सबसे अधिक है। इसके बाद एससी उम्मीदवार आते हैं, जिनके लिए यह दर -51% है। फिर उन्होंने पाया कि इस अंतर को पाटने के लिए लक्षित नीतिगत रणनीति से कैच-अप दर प्रति वर्ष +1% तक बढ़ जाती है। इस तरह एससी और एसटी श्रेणियों को सामान्य श्रेणी के स्कोर के साथ समानता हासिल करने में लगभग 90 से 100 साल लगेंगे।

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समानता हासिल करने में 32 साल लगेंगे ओबीसी के लिए

ओबीसी के लिए जेईई एडवांस्ड स्कोर पर समानता हासिल करने में 32 साल लगेंगे, लेकिन यदि कैच-अप दर प्रति वर्ष 0।5% धीमी रही, तो जेईई एडवांस परीक्षा में सामान्य श्रेणी के अंकों के साथ समानता हासिल करने में एससी और एसटी श्रेणियों को 180 से 200 साल लगेंगे। जाहिर है नीति निर्माताओं को एससी, एसटी और ओबीसी को मुख्यधारा में लाने की प्रक्रिया इतनी धीमी और लंबी होने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। साथ ही अगले 20 वर्षों में पूर्ण समानता प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ मुख्यधारा की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए लक्षित तंत्र होना चाहिए।

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