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Reading: Anglo -Maratha War :जानिए आंग्ल मराठा युद्ध के बारे में
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WeStory > एजुकेशन > Anglo -Maratha War :जानिए आंग्ल मराठा युद्ध के बारे में
एजुकेशन

Anglo -Maratha War :जानिए आंग्ल मराठा युद्ध के बारे में

Anglo-Maratha War:अंग्रेजो और मराठाओं के बीच तीन बार आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ था। पहला युद्ध साल 1775 से 1782 तक हुआ दूसरा युद्ध साल 1803 से 1805 तक और तीसरा युद्ध वर्ष 1817 से 1818 तक हुआ।

Meena Bhardwaj
Last updated: 2024/02/01 at 6:58 PM
Meena Bhardwaj
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7 Min Read
Anglo -Maratha War
Anglo -Maratha War
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Anglo -Maratha War :जानिए कैसे अंग्रेजों ने मराठा साम्राज्य को कैसे नष्ट किया?

Anglo -Maratha War : मराठा शासक इतने ताकतवर थे कि अंग्रेजो का उनसे लड़ना बिलकुल भी आसान नहीं था। मराठा शासक अंग्रेजों के भारत में बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने में सबसे ज्यादा सक्षम थे। तब अंग्रेजो ने भारतीयों के बीच फूट डालो और राज करो की नीति पर काम करना शुरू किया और वे कामयाब भी हुए और फिर अंग्रेजो ने एक लंबे समय तक भारत पर राज किया। अंग्रेजी सेना ने अलग-अलग समय पर तीन बार मराठा सेना से युद्ध किया था।

Table of Contents
Anglo -Maratha War :जानिए कैसे अंग्रेजों ने मराठा साम्राज्य को कैसे नष्ट किया?प्रथम आंग्ल मराठा युद्धदूसरा आंग्ल मराठा युद्धतीसरा आंग्ल मराठा युद्ध

अनगिनत मराठा योद्धाओ की बहादुरी के लिए उनके नाम इतिहास में दर्ज है उसके साथ ही कई मराठा ऐसे भी थे जिन्होंने देश के साथ गद्दारी की थी। वरना अंग्रेजों के लिए भारत पर कब्जा करना इतना आसान नहीं था परन्तु अपने स्वार्थ की वजह से वह भी हुआ जिसकी संभावना भी नहीं थी।

अंग्रेजो और मराठाओं के बीच तीन बार आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ था। पहला युद्ध साल 1775 से 1782 तक हुआ दूसरा युद्ध साल 1803 से 1805 तक और तीसरा युद्ध वर्ष 1817 से 1818 तक हुआ। ये तीनों युद्ध मराठा शासकों के आपसी मतभेदों और अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति के ही परिणाम थे। एक-एक कर के तीन बार दोनों सेनाएं आमने-सामने आईं। तीनों युद्ध आंग्ल-मराठा युद्ध एक, दो और तीन के नाम से इतिहास में दर्ज हुए हैं।

Anglo -Maratha War
Anglo -Maratha War

तीनों युद्धों का परिणाम यह हुआ कि मराठा शासक धीरे-धीरे कमजोर होते गए और अंग्रेजों का स्वामित्व बढ़ता गया। जब मराठा बहुत ज्यादा मजबूत थे तब युद्ध लगभग सात साल तक चला था और उसके बाद फिर संधि हुई, जिसमें अनेक सौदेबाजी के साथ 20 वर्ष तक बिलकुल भी युद्ध ना करने का भी फैसला हुआ। जिसका पालन दोनों पक्षों ने अच्छे से किया था। मराठा लोग अपने ही लोगों को अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए कमजोर करते रहे और अंग्रेजो ने उन्हें अपने फायदे के हिसाब से इस्तेमाल किया।

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प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध

पहला आंग्ल मराठा युद्व 1775 -1782 के बीच में लड़ा गया था। कम्पनी के सभी डायरेक्टरों द्वारा “सूरत सन्धि” को वैधता दिये जाने के बाद फरवरी 1775 ई. में अंग्रेज सेना के कर्नल के नेतृत्व में रघुनाथ राव को साथ लेकर पूना की ओर चढ़ाई करी। 18 मई 1775 ई. में “आरस के मैदान” में अंग्रेज सेना और मराठा सेना के बीच युद्ध आरंभ हो गया। इससे पहले कि इस युद्ध का कोई परिणाम निकल पाता, कलकत्ता उच्च परिषद ने इस युद्ध की वैधता को ही मानने से इंकार कर दिया और सूरत की सन्धि को रद्द करते हुए उसे अमान्य करार दे दिया। इसके पश्चात कलकत्ता से कर्नल अप्टन को पूना के लिए भेजा गया। जिसके बाद अंग्रेजों तथा पूना दरबार के प्रतिनिधि नाना फड़नवीस के बीच 1 मार्च 1776 ई. में “पुरन्दर की सन्धि” सम्पन्न हुई।

दूसरा आंग्ल मराठा युद्ध

दूसरा आंग्ल मराठा युद्ध साल 1803 -1805 के बीच में लड़ा गया था। तक 1796 ई. में राघोबा के पुत्र बाजीराव द्वितीय अंग्रेजों की मदद से पेशवा बना। पेशवा बाजीराव द्वितीय दुर्बल, स्वार्थी और एक षड्यन्त्रकारी राजा था। वह मराठों का नेतृत्व करने में बिलकुल भी योग्य नहीं था। 1800 ई. में नाना फड़नवीस की मृत्यु के बाद बाजीराव द्वितीय बिलकुल नियन्त्रण मुक्त होकर अपनी मनमानी करने लगा। अपनी स्वार्थ सिद्ध करने के लिए वह खुद ही मराठों के बीच में झगड़े करवाने लगा।

दौलत राव सिंधिया व जसवन्त होल्कर दोनों पूना में अपने को सर्वश्रेष्ठ साबित करना चाहते थे। धीरे -धीरे बाजीराव द्वितीय सिंधिया का साथ देने लगा था। दोनों ने मिल 1801 ई. में जसवन्त के भाई की हत्या कर दी। जिसके कारण जसवन्त होल्कर ने पूना पर आक्रमण कर 28 अक्टूबर 1802 ई. में पेशवा और सिंधिया की संयुक्त सेना को हरा दिया। इसतरह से पूना पर होल्कर का अधिकार हो गया। पेशवा बाजीराव द्वितीय ने जाकर बेसीन में शरण ली। यहाँ पर उसने एक जहाज पर 31 दिसम्बर 1802 ई. में अंग्रेजों के साथ “बेसीन की सन्धि” की।

Anglo -Maratha War
Anglo -Maratha War

 

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तीसरा आंग्ल मराठा युद्ध

तीसरा आंग्ल मराठा युद्ध साल 181 -1818 के बीच में लड़ा गया था। 1813 ई. में लार्ड हेस्टिंग्स भारत में गवर्नर जनरल बनकर आया था। उसने मराठा साम्राज्य को पूरी तरह से खत्म करने का निर्णय लिया और राजपूत राज्यों पर अंग्रेजी अधिकार स्थापित करने की कुटिल योजना बनायी। किन्तु इस मार्ग की सबसे बड़ी चुनौती 1805-06 ई. में की गई सन्धियाँ थीं। जिनके अनुसार राजपूत राज्यों को सिन्धिया और होल्कर के प्रभाव में रहना था अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अंग्रेजों ने 5 नवम्बर 1817 ई. में सिन्धिया के साथ मिलकर “ग्वालियर की सन्धि” की।

इसके बाद अंग्रेजों ने पेशवा के साथ 13 जून 1817 ई. में “पूना की सन्धि” पर हस्ताक्षर किये। इन सन्धियों से पहले ही अंग्रेजों ने 27 मई 1816 ई. में भोंसले से “नागपुर की सहायक के लिए सन्धि” कर ली थी।कालान्तर में पेशवा, भोंसले तथा होल्कर ने सन्धि का उल्लंघन कर के अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। जिसके कारण किरकी में पेशवा, सीताबाल्डी में भोंसले और महीदपुर में होल्कर की सेनाओं को अंग्रेजी सेना से पराजित होना पड़ा। इन संघर्षों के बाद मराठों की सैन्य शक्ति लगभग समाप्त हो गई। जिसके बाद 6 जनवरी 1818 ई. में होल्कर ने अंग्रेजों के साथ “मन्दसौर की सन्धि” की।

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मेरा नाम- मीनू भरद्वाज है, मैंने अपनी स्नातक दिल्ली यूनिवर्सिटी से हिंदी और पत्रकारिता में किए हैं ! इसके उपरांत कई सारे डिजिटल न्यूज़ पोर्टल के लिए आपने लेख विभिन्य विषय पे पब्लिश कर चुकी हु ! अभी मैं वेस्टरी (WeStory.co.in ) के लिए एजुकेशन,ऑटोमोबाइल,खेल,टेक्नोलॉजी,फाइनेंस,बिज़नेस,मनोरंजन,लाइफस्टाइल,सफलता की कहानी,सेहत,स्टोरीज और हिंदी न्यूज़ लिख रही हु ! मेरे लिखे पोस्ट को लाइक और अपना प्यार बनाये रखने के लिये प्लीज फॉलो करिये मेरे सोशल हैंडल को !
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