Books Downloading: डिजिटल बाजार से मामूली खर्च में बड़ा लाभ
आने वाले दिनों में तकनीकी के वर्चस्व के कारण किताबों की दुनिया पूरी तरह से तकनीकीविदों और तकनीकी के मालिकों के मेहरबानी की गुलाम हो जाए। इसलिए यह स्थिति बिगड़े उसके पहले ही जरूरी है कि डाउनलोडिंग की दुधारी तलवार से किताबों की पुख्ता सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। जिस तरह से अभी कोई कहीं से भी किताबें डालउनलोड कर लेता है और इसे चोरी समझने की बजाय अपनी स्मार्टनेस समझता है, उस स्थिति से निपटने की मजबूत तैयारी तो करनी ही होगी।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि ऐसा गेटवे या सिस्टम हर हाल में विकसित किया जाना चाहिए जिससे इस तकनीकी विकास का दुष्प्रभाव लेखक के खाते में न आए। ऐसा न हो कि तकनीकी विकास पाठकों के लिए तो जबरदस्त फायदेमंद हो लेकिन लेखक को शोषण करवाने के लिए मजबूर कर दे।

डाउनलोड की दुनिया एक ऐसी दुधारी तलवार है जिसमें पाठक, प्रकाशक और किताबों के विक्रेता तो जरूर फायदे में हैं लेकिन लेखक का फायदा सुनिश्चित नहीं है। या तो लेखक बहुत प्रभावशाली और एलीट तबके का हो तो उसे इस सबका फायदा मिलता है या फिर कोई ईमानदार प्रकाशक उसके साथ ईमानदारी का बर्ताव करके फायदा दे सकता है वरना तो लेखक डाउनलोड की मार से बचता नहीं लग रहा।
भूगोल और ट्रांसपोर्ट की बाधाएं खत्म
डाउनलोडिंग का यह असर किताबों की दुनिया में लेखकों के पक्ष में नहीं होने जा रहा। पाठकों के लिए जरूर डाउनलोडिंग की प्रक्रिया काफी सरल और फायदेमंद है क्योंकि ये किताबें ज्यादातर मौकों पर मुफ्त हासिल हो जाती हैं। अगर इसके लिए कुछ खर्च भी करना पड़ता है तो वह किताब खरीदने के मुकाबले बहुत सस्ता होता है।
यही नहीं, इंटरनेट में खोजबीन की जबरदस्त तकनीकी विकसित होने के कारण दुनिया के किसी भी कोने में किताब छपी हो और अगर वह इंटरनेट में मौजूद है तो पलक झपकते ही आपके सामने उपस्थित हो जाती है जिससे किताबों के संबंध में भूगोल और ट्रांसपोर्ट की बाधाएं भी खत्म हो जाती हैं लेकिन बात वही पर अटकती है कि इस सबका फायदा लेखक के खाते में या तो जाता ही नहीं या बहुत मामूली जाता है। होना यह चाहिए था कि इस पूरी प्रक्रिया में सबसे ज्यादा लाभ लेखक को मिलता।
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लेखकों की माली हालत पर कमजोर
दूसरी ओर कोरोना महामारी के 2 वर्ष बाद नई दिल्ली में लगने जा रहे आगामी विश्व पुस्तक मेले का बड़ा हिस्सा ई-बुक को समर्पित रहा और इससे पहले लगे अंतिम बुक फेयर में भी डिजिटल किताबों की हिस्सेदारी काफी बड़ी तादाद में थी। इससे यह तो स्पष्ट है कि आज नहीं तो कल यह स्थिति आ सकती है कि किताबों की पारंपरिक दुनिया को यह डिजिटलाइजेशन पस्त कर दे।
हालांकि तब किताबों की दुनिया संगीत की दुनिया की तरह डिजिटल बाजार में नये सिरे से उठ खड़ी होकर सर्वाइव कर पायेगी, इस पर संदेह है क्योंकि न – न करते संगीत का निर्माण ऐसे लोग करते हैं जो बहुत मजबूर या गरीब नहीं होते जबकि किताबें लिखने वाले लेखकों की माली हालत दूसरे पेशेवरों के मुकाबले काफी कमजोर होती है। इसलिए ज्यादातर लेखक अपने शोषण की किसी भी स्थिति पर समझौता कर लेते हैं।
चोरी छिपे घालमेल का एक नया कारोबार
डाउनलोड के जरिये जहां पाठकों को घर बैठे दुनिया के किसी भी कोने में लिखी गई किताब पढ़ने को मिल रही है, प्रकाशक को दुनियाभर का बाजार मिल रहा है, वहीं लेखक के हिस्से सुनिश्चित ढंग से उसका हक नहीं आ रहा। भारत जैसे विकासशील देश में जहां अभी भी तार्किक बौद्धिक बाजार विकसित नहीं हुआ और प्रकाशकों की कार्यसंस्कृति लेखकों को गया गुजरा समझने तक ही रुकी हुई है, वहां आज भी लेखक की इज्जत नहीं है जबकि प्रकाशक इस डाउनलोडिंग की दुनिया का शिकार भी हैं और इसे वे शिकार का जरिया भी बना रहे हैं।
बड़े पैमाने पर देश में चोरी छिपे घालमेल का एक नया कारोबार शुरू हो गया है। तमाम अकादमिक किताबें खासकर इंजीनियरिंग, मेडिकल जैसे तकनीकी विषयों वाली किताबें लेखक से लिखवाने या छपी हुई किताब का सशुल्क अधिकार लेने की बजाय प्रकाशक उन किताबों की उलट-पलट के जरिये नई किताब छाप रहे हैं। आज अकादमिक क्षेत्र में सैकड़ों किताबें ऐसी मौजूद हैं जो या तो लेखकों को बिना बताए या बिना उन्हें कुछ फायदा दिये बिक रही हैं या फिर चुराकर निर्मित की गई हैं।
तो 25 अरब डॉलर की रेवेन्यू पैदा होता
वर्ष 2010-11 में 4 अरब डॉलर मूल्य की किताबें इंटरनेट के जरिये डाउनलोड की गईं या पढ़ी गईं। जानकारों का अनुमान है कि अगर ये किताबें प्रिंट होकर बिकी होतीं तो कम से कम 25 अरब डॉलर की रेवेन्यू पैदा होती और इसमें से एक बड़ा हिस्सा लेखकों और प्रकाशकों के खाते में आता। हालांकि डाउनलोड की गईं 4 अरब डॉलर मूल्य की किताबों की सारी रकम किताबों के खातों में नहीं आयी। कहने का मतलब यह कि इसका बड़ा हिस्सा तकनीकी बिचौलिये ले गए।

इसलिए ई-बुक के बढ़ते बाजार का सबसे बड़ा फायदा इन किताबों को लिखने, छापने और प्रकाशित करने वालों के हिस्से में नहीं आ रहा बल्कि इनका बड़ा हिस्सा तकनीक उपलब्ध करने वाली कंपनियों के खाते में जा रहा है। वर्ष 2021 में पूरी दुनिया में 1 बिलियन ई-बुक्स डाउनलोड की गईं। अगर वनों के विनाश के नजरिये से देखें तो यह बहुत राहत पहुंचाने वाली बात है लेकिन अगर उन लेखकों और प्रकाशकों की नजर से देखें जो अपनी रोजी-रोटी के लिए छपी हुईं किताबों पर निर्भर हैं तो यह स्थिति डराने वाली है क्योंकि किताबों की डाउनलोडिंग तकनीक ने कॉपीराइट रेवेन्यू को चोरी करना बहुत आसान बना दिया है।
बाजार को मिला नया आयाम
प्रश्न उठता है कि क्या किताबों पर डाउनलोड की गहराती छाया किसी खतरे का संकेत है? डाउनलोड ने अर्थव्यवस्था को जहां छोटा किया है वहीं इसे विस्तारित भी किया है क्योंकि डाउनलोड ने बाजार को नया आयाम दिया है। डाउनलोड के चलते दुनिया के उन कोनों तक भी बाजार की रोशनी और कदम पहुंच गए हैं जहां पहले कभी सोचा भी नहीं जा सकता है। अगर डाउनलोड का सकारात्मक तरीके से फायदा उठाया जाए तो इसके फायदे नुकसान से कहीं ज्यादा है।
इससे पहले डाउनलोडिंग की बर्बादी का साया संगीत की दुनिया पर पड़ा था लेकिन संगीत की दुनिया जल्द ही इससे उबर गई। आज अरबों रुपये का संगीत व्यवस्थित ढंग से डाउनलोडिंग प्रक्रिया के चलते बिकता है। यही नहीं, इस डिजिटल तकनीकी का संगीत की दुनिया में असर यह भी हुआ कि इस दुनिया के बेईमान खिलाड़ी इससे बाहर हो चुके हैं। अब संगीत की दुनिया ओरिजिनल संगीत निर्मित करने वालों के लिए सुरक्षित हो चुकी है जो सचमुच में संगीत को समझते हैं, जिनके पास अपने बोल, अपनी धुनें और अपने स्वर हैं वही इस दुनिया में अब फल-फूल सकते हैं।
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