Bollywood Economy: मशहूर कलाकारों के खाते में चला जाता लागत का बड़ा हिस्सा
Bollywood Economy: देश के सिने उद्योग में 33 फीसदी से भी बड़ा हिस्सा रखने वाली बॉलीवुड इंडस्ट्री का अर्थशास्त्र जोखिम से भरे चक्रव्यूह में कैद है। अगर बॉलीवुड की आर्थिक सेहत के इस नाजुकपन को देखें तो इसकी दो बड़ी वजहें साफ समझ में आती हैं। पहली तो यह कि बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री का कास्ट स्ट्रक्चर यानी किसी फिल्म को बनाने में जो लागत आती है वह ढांचा बेहद बेडौल है। एक फिल्म को बनने में जितनी लागत आती है, अगर वह फिल्म बड़े बैनर की है तो इस लागत में करीब 50 फीसदी के आसपास इसमें काम करने वाले मशहूर कलाकारों के खाते में चला जाता है, बाकी बचे 50 फीसदी के हिस्से में करीब 40 फीसदी तक छोटे कलाकारों, फिल्म बनाने के सारे तकनीकी खर्चों और फिल्म बनाने के लिए जरूरी उपकरणों में खर्च हो जाता है।
फिल्म मेकिंग के अर्थशास्त्र में जरा भी रैसनैलिटी नहीं है क्योंकि यहां अपनी लोकप्रियता के चलते बड़े फिल्म स्टार किसी भी फिल्म निर्माण के बजट के बहुत बड़े हिस्से को हड़प जाते हैं। इस कारण अगर 200 करोड़ में भी फिल्म बनी होती है तो उसमें भी सही मायनों में फिल्म के निर्माण के हिस्से में, जिसमें विभिन्न तरह के संसाधनों का इस्तेमाल होता है, बमुश्किल से 30 से 40 करोड़ ही आते हैं। बड़ी से बड़ी फिल्म के बजट में भी फिल्म के लिए पैसे कम ही होते हैं। अगर फिल्म इंडस्ट्री दशकों से तथाकथित सेलिब्रिटी कलाकारों की लोकप्रियता का यह बोझ उठाने से मना कर दे और उनकी लोकप्रियता के आगे ब्लैकमेल होने के बजाय यह तय करे कि उन्हें बाकी लोगों से भले कुछ ज्यादा मेहनताना मिले लेकिन यह मेहनताना इतना असंतुलनकारी न हो कि सारे फिल्मी बजट को ही तहस-नहस कर दे तो फिल्म इंडस्ट्री का यह जोखिमभरा अर्थशास्त्र शायद कुछ सुनिश्चित सफलता की गारंटी की तरफ लौट सकता है।

लार्जर दैन लाइफ का मनोविज्ञान का घेरा
फिलहाल फिल्म इंडस्ट्री में आम तौर पर लोगों में जो लार्जर दैन लाइफ का मनोविज्ञान घेरे रहता है, उसके कारण भला यह तार्किकता या विवेकपूर्ण नजरिया किसे भाएगा? इसे फिल्म इंडस्ट्री की भाषा में कहा जाए तो इस तरह समझ सकते हैं। किसी भी फिल्म का बजट चार कैटेगिरी में बंटा होता है। पहले को एबब द लाइन कहते हैं। दूसरे को बिलो द लाइन कहते हैं। तीसरे को पोस्ट प्रोडक्शन कहते हैं और चौथा या आखिरी खर्च की कैटेगिरी फिल्म के बीमा आदि से जुड़ी होती है। इसमें सबसे ज्यादा करीब 40 से 50 फीसदी फिल्म का बजट खर्च हो जाता है।
इसमें हीरो, हीरोइन, प्रोड्यूसर, निर्देशक और स्क्रिप्ट राइटर आदि को दी जाने वाली फीस होती है। फिल्म के बजट के दूसरे हिस्से में बिलो द लाइन वाले खर्च आते हैं और इसमें बड़े कलाकारों को छोड़कर जितने छोटे कलाकार, आर्टिस्ट, हेयर स्टाइलिस्ट, कैमरा ऑपरेटर, साउंड इंजीनियर, टेक्निकल डायरेक्टर, ग्राफिक आर्टिस्ट आते हैं। कहने का मतलब शुरू के चार-पांच बड़े लोगों के बाद फिल्म निर्माण का जितना क्रू होता है, उन सबका खर्च इसी दूसरी कैटेगिरी से खर्च होता है। इसके बाद करीब 20 से 25 फीसदी बजट ही बचता है जिसमें तमाम तकनीकी वैल्यू एडिशन और दूसरे खर्च होते हैं। दूर से फिल्म व्यवसाय भले बहुत ग्लैमरस लगता हो लेकिन यह कतई ग्लैमरस नहीं है।
तनाव में अक्सर बड़बड़ाते मिलेंगे असली किरदार
दुनिया में फिल्मी अर्थशास्त्र से ज्यादा जोखिम और जटिल किसी भी दूसरी इंडस्ट्री का अर्थशास्त्र नहीं है। जब सेलिब्रिटी लाल कालीनों पर चेहरे पर रंग बिरंगी मुस्कान लिए तरह-तरह के पोज दे रहे हों तो भले यह बहुत गुलाबी पेशा लगता हो लेकिन अगर पर्दे के पीछे फिल्म इंडस्ट्री के अर्थशास्त्र से जूझ रहे असली किरदारों की हम बातें सुनें तो वे बेहद तनाव में अक्सर बड़बड़ाते मिलेंगे, ‘यहां कोई कुछ नहीं जानता’। उनका यह बड़बड़ाना बिल्कुल सही होता है क्योंकि कोई नहीं जानता कौन सी फिल्म चलेगी और किसका भट्ठा बैठ जायेगा।

नामी गिरामी सुपरस्टारों से सजी भी कोई फिल्म सुपर फ्लॉप हो सकती है तो अजनबी चेहरों से सजी कोई फिल्म ब्लॉकबस्टर भी साबित हो सकती है। साल 2020 में फिक्की (फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) के अनुमान के मुताबिक बॉलीवुड इंडस्ट्री ने 151 अरब रुपये की कमाई की थी। इसके बावजूद फिल्म इंडस्ट्री में सफलता की स्थिर दर 40 फीसदी भी नहीं है। मतलब यह कि फिल्म इंडस्ट्री जितनी फिल्मों में निवेश करती है, उनमें 35 फीसदी फिल्म के भी सफल होने की या निवेश की वापसी की गारंटी नहीं है।
71 फीसदी फिल्में फ्लॉप रही हैं 2022-23 में
साल 2022-23 के वित्तीय वर्ष को फिल्म इंडस्ट्री के लिए हाल के सबसे सफल वर्षों में से एक माना जाता है। फिर भी इस साल बड़े बैनर्स की 31 फिल्मों में से 22 फिल्में फ्लॉप रही हैं। मतलब यह कि बॉलीवुड में बनने वाली बड़े बैनर की फिल्मों में से 71 फीसदी फिल्में फ्लॉप रही हैं। टॉप 31 फिल्मों में से सिर्फ 9 फिल्में सफल हुईं जिनमें दो ब्लॉकबस्टर साबित हुईं और 6 फिल्में ठीक-ठाक सफल रही। भले बॉलीवुड राष्ट्रीय आय में 10 से 20 फीसदी की साल दर साल वृद्धि करते हुए 40 फीसदी तक का योगदान दे रहा हो लेकिन खुद बॉलीवुड का अर्थशास्त्र 35 फीसदी भी रिटर्न के लिए भी सुरक्षित नहीं है।
साल 2022 में 15 हजार करोड़ रुपये का राजस्व बॉलीवुड ने वसूला था लेकिन अपनी जटिल संरचना के कारण इस राजस्व में बड़ी हिस्सेदारी मुट्ठीभर प्रोडक्शन घरानों और करीब 2 दर्जन से ज्यादा बड़े फिल्मी कलाकारों की रही। बॉलीवुड प्रत्यक्ष रूप से करीब 6 लाख लोगों को रोजगार देता है और अप्रत्यक्ष तौरपर माना जाता है कि 2 लाख करोड़ से ज्यादा के सम्पूर्ण टर्नओवर वाला यह उद्योग 15 लाख से ज्यादा लोगों की रोजी-रोटी का जरिया बनता है लेकिन कोरोना महामारी के दौरान जब 6 महीने तक फिल्म इंडस्ट्री में किसी तरह का कोई काम नहीं हुआ तो 5 लाख से ज्यादा इस इंडस्ट्री में काम करने वाले आम लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए थे। 40 फीसदी से ज्यादा सीनियर कलाकारों आर्थिक संकट में थे। इसका सबसे बड़ा कारण यही है इस उद्योग की आर्थिक अनिश्चितता और 99 फीसदी से ज्यादा लोगों की अव्यवस्थित कमाई।
- Content Marketing : भारत में तेजी से बढ़ रहा है कंटेंट मार्केटिंग का क्रेज - January 22, 2025
- Black Magic Hathras: ‘काले जादू’ के नाम पर 9 वर्ष के बच्चे की बलि - January 18, 2025
- Digital Marketing: आपके व्यवसाय की सफलता की कुंजी ‘डिजिटल मार्केटिंग’ - January 18, 2025