Count Down: ‘फोर ओ क्लॉक’ फिल्म ने उल्टी गिनती लोकप्रिय बनाई
काउंट डाउन शब्द पूरी दुनिया में पिछली सदी में 1950 के बाद सही मायनों में आया जब हम बहुत अच्छी तरह से जान गए कि कोई भी लापरवाही दुनिया का पलक झपकते काम तमाम कर सकती है। इसीलिए जब 1953 में अमेरिका के नेवादा रेगिस्तान में परमाणु बम का परीक्षण किया तो वहां भी काउंट डाउन इस्तेमाल हुआ। उस समय रेडियो पर की गई इस विस्फोट की रिपोर्टिंग को माइनस 10 सेकंड में जाकर अंजाम दिया गया था यानी -10, -9,-8, -1 से चलते हुए -0 में वह विस्फोट हुआ। जिस कारण यह दुनियाभर की जहन में बैठ गया कि जब भयानक कुछ घटने वाला होता है तो पल-पल दहशत इस तरह गुजरती है। वास्तव में इस उल्टी गिनती को सबसे ज्यादा लोकप्रियता तब मिली जब 1950 के दशक के मशहूर हॉलीवुड फिल्म निर्देशक अल्फ्रेड हिचकॉक ने फिल्म बनायी, फोर ओ क्लॉक। इस फिल्म से उल्टी गिनती पूरी दुनिया में बेहद लोकप्रिय हो गई।
अपने अंदर रोमांच समेट हुए है
आज की तारीख में उल्टी गिनती महज डर या खुशी की नहीं बल्कि समग्रता में अपने अंदर रोमांच समेट हुए है और हम हर बेहद प्रतीक्षित घटना के साथ इसे जोड़कर इसे और भी रोमांचक और भी महत्वपूर्ण बना देते हैं। सवाल है कि ज्यादातर महत्वपूर्ण मौकों के आखिर पलों तक उल्टी गिनती के जरिये क्यों पहुंचते हैं? दरअसल उल्टी गिनती किसी घटना के घटित होने वाले समय के लगातार घटने का प्रतीक होती है। वास्तव में अनहोनी घटनाओं की तो हम पहले से कल्पना नहीं कर सकते लेकिन जो इंसान द्वारा अंजाम दी गईं बड़ी घटनाएं, बड़े मिशन होते हैं, उनके रोमांच से रूबरू होने के लिए हम उस घटना के घटने वाले आखि़री पल तक पहुंचने के पल-पल को एक सतर्क गलियारे में तब्दील कर देते हैं। यह गलियारा उल्टी गिनती का होता है। इससे गुजरते हुए हम पल-पल मंजिल के नजदीक पहुंचने का रोमांच महसूस करते हैं।

लोगों का ब्लड प्रेशर भी बढ़ा देती है
अंतरिक्ष में जब कोई उपग्रह प्रक्षेपित किया जाता है तो घंटों पहले से उल्टी गिनती शुरू हो जाती है। यह गिनती मिशन से जुड़े सभी लोगों में तब तक धुकुर-पुकुर मचाये रखती है जब तक कि उपग्रह का सही-सलामत प्रक्षेपण न हो जाए। सिर्फ मिशन से जुड़े लोगों को ही नहीं, यह गिनती उन तमाम लोगों का ब्लड प्रेशर भी बढ़ा देती है जो इस प्रोजेक्ट के साथ व्यावहारिक रूप से जुड़े हों या भावनात्मक। प्रक्षेपण के आखि़री पलों में तो यह उल्टी गिनती प्रक्षेपण को टीवी में देखने वाले आम आदमी तक को बेहद उल्टी गिनती सिर्फ अंतरिक्ष में रॉकेट प्रक्षेपण के दौरान ही नहीं बल्कि जहां-जहां भी इसका इस्तेमाल होता है हर जगह यह सुनने वालों के दिलों की धड़कनों को बढ़ा देती है। आज के दौर में ज्यादातर महत्वपूर्ण मौकों के आखि़री पलों तक पहुंचने को उल्टी गिनती से जोड़ दिया गया है जैसे ओलंपिक गेम्स में एथलीट्स को सावधान करने और एक्शन के लिए बिल्कुल एलर्ट मोड में आ जाने हेतु 10, 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1, 0 गो ….तक की उल्टी गिनती का सफ़र तय किया जाता है। इन गिनतियों को सुनकर एथलीट्स एक्शन मोड में तो आ ही जाते हैं दर्शक भी रोमांचित होकर खेल देखने की उत्तेजना से भर जाते हैं। खिलाड़ी तो रोमांच का हिस्सा ही होते हैं।
अभिव्यक्ति का बेहद संवेदनशील तरीका
जब 31 दिसंबर की रात को दुनियाभर में बड़ी-बड़ी पार्टियों के बीच अगले साल के पहले पल का इंतजार किया जाता है, उस समय इस गुजरते हुए समय को काउंट डाउन यानी उल्टी गिनती के क्रम में ही व्यक्त किया जाता है। सच बात तो यह है कि आज उल्टी गिनती अभिव्यक्ति का जबर्दस्त और बेहद संवेदनशील तरीका बन गया है। शायद इसीलिये इसकी मौजूदगी सर्वव्यापी हो गई है। कोई व्यापारिक जहाज अपनी लंबी यात्रा के लिए रवाना हो रहा हो तो उसके पहले भी उल्टी गिनतियां शुरू कर दी जाती हैं। किसी का जन्मदिन हो और लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हों तो वहां भी उल्टी गिनतियां शुरू हो जाती है। किसी स्टेज में कोई बेहद लोकप्रिय कलाकार परफॉर्म करने जा रहा हो और स्टेज के नीचे हजारों लोग उसका इंतजार कर रहे हों तो वहां भी इस इंतजार को रोमांचक बनाने के लिए उल्टी गिनती का गिना जाना शुरू कर दिया जाता है।
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‘वुमन इन द मून’ से शुरू हुआ सिलसिला
अगर आप से पूछा जाए कि रोमांच को महसूस करने का यह सिलसिला कब और कहां से शुरू हुआ तो 10 में से कम से कम 8 लोग फटाक से कहेंगे नासा के अंतरिक्ष प्रक्षेपणों से। हालांकि यह बात सही नहीं है। यह अलग बात है कि दुनिया के सबसे रोमांचक अंतरिक्ष मिशनों और कुछ दूसरी घटनाओं में उल्टी गिनतियां लोगों को सबसे ज्यादा रोमांचित करती हैं लेकिन उल्टी गिनती गिनने का सिलसिला नासा जैसे वैज्ञानिक संस्थान ने नहीं शुरू किया। काउंट डाउन की भावनाओं को उद्वेलित करने वाली प्रक्रिया किसी अंतरिक्ष अभियान से शुरू न होकर एक फिल्म से शुरू हुई थी। साल 1929 में ऑस्ट्रियाई फिल्मकार फ्रिटज लैंग ने एक फिल्म बनायी थी। इसका नाम था ‘वुमन इन द मून’। पहली बार उल्टी गिनतियां गिनने का सिलसिला उस फिल्म में ही शुरू हुआ था। वास्तव में फ्रिट्ज लैंग महज एक फिल्म निर्देशक ही नहीं थे, वह फिल्मों के पटकथा लेखक, चित्रकार व आर्किटेक्ट भी थे। उनकी फिल्म में रॉकेट छोड़े जाने का एक लंबा दृश्य था। अपनी फिल्म के उस दृश्य में उन्होंने पहली बार उल्टी गिनतियां गिने जाने को दर्शाया था जबकि यह फिल्म मूक थी। शायद इसलिए भी रॉकेट छूटने के नजदीक आते समय को दर्शाने के लिए फिल्मकार ने उल्टी गिनतियां शुरू की हों लेकिन इस गतिविधि में इतनी ज्यादा अभिव्यक्ति की संभावना थी कि इसे देखते ही देखते ऐसा कोई क्षेत्र नहीं था जहां लपक न लिया गया हो।

प्रलय को भी व्यक्त करने का तरीका
वास्तव में उल्टी गिनतियां सिर्फ उम्मीदें ही नहीं दर्शाती, कई बार ये प्रलय को भी व्यक्त करने का एक तरीका होती हैं। वास्तव में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने परमाणु विनाश के खतरों के प्रति संवेदनशील होने के लिए तो टिक-टिक करती एक प्रलय घड़ी भी बनायी है जिसमें हर समय काउंट डाउन होता रहता है और हमें याद दिलाता रहता है कि परमाणु हथियारों के बेहद सजग रखरखाव में जरा भी चूक हुई तो सारा भविष्य एक पल में खत्म हो जायेगा। कहने का मतलब उल्टी गिनतियां हमें आशावादी भावनाएं तो देती ही हैं, निराशावादी दहशत भी हमें प्रदान करती हैं। उल्टी गिनती गिने जाने का सिलसिला वास्तव में व्यवस्था बनाने के काम भी आता है। यह उल्टी गिनती इंतजार कर रहे लोगों को आश्वस्त करती है कि आपका इंतजार रंग ला रहा है, हम बेसब्री से मंजिल की तरफ बढ़ रहे हैं। वास्तव में उल्टी गिनती आज बहुत से उद्देश्यों और बहुत सी जिज्ञासाओं की पूर्ति एक साथ करती है। उल्टी गिनती समय समाप्त होने को पल-पल खत्म होते हुए या गुजरते हुए देखने की प्रक्रिया है। किसी भी गहरी खुशी या गहरे तनाव अथवा बेचेन करने वाली उम्मीद को हम उल्टी गिनतियों से चिन्हित ही नहीं करते बल्कि नियंत्रित भी करते हैं।
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