Science Fiction – देश में हॉलीवुड जैसी साइंस फिक्शन का दौर
Science Fiction: यह सच है कि भारत में पारंपरिक सिने दर्शक पूरी तरह से हॉलीवुड की मसाला साइंस फिल्मों का अटूट प्रशंसक और दर्शक नहीं रहा लेकिन यह भी नहीं है कि हॉलीवुड की हाल के सालों में बनी साइंस फिल्में भारत में रिलीज ही न होती रही हों और उन्हें बाकी फिल्मों के इतर सफलता ही न मिलती रही हो। यह भी सच रहा है कि हॉलीवुड की फिल्में अपनी पुराण कथाओं के साथ जिस तरह का दुस्साहस की हद तक छूट लेती हैं, जिसमें मां-बेटे के साथ सेक्स संबंध तक दिखा देती हैं, इसी तरह दो देवताओं को साथ मिलकर षड्यंत्र में भागीदारी करते हुए भी दिखा सकती हैं। ऐसी हिम्मत भारतीय निर्माता-निर्देशक भारत में बनायी जाने वाली पुराण कथाओं में नहीं कर सकते क्योंकि भारत में पुराण कथाओं का तटस्थ होकर आनंद नहीं लिया जाता बल्कि उन्हें अपनी संस्कृति का सबसे संवेदनशील हिस्सा मानते हुए उनमें अंधश्रद्धा और आस्था रखी जाती है।

550 करोड़ रुपये की वर्ल्डवाइड कमाई
भारत में फिल्म निर्माता-निर्देशक हॉलीवुड या पश्चिमी देशों की दूसरी फिल्म इंडस्टीज में बनने वाली फिल्मों की तरह फिल्में नहीं बना सकता। यहां अपनी आस्थाओं के लिए लोग हर समय मरने-मारने को तैयार रहते हैं। फिलहाल अब हिंदुस्तान में भी एक ऐसा सहिष्णु दर्शक वर्ग उभरकर आ रहा है जो फिल्मों को फिल्में मानकर ही देखता है और उनका आनंद लेता है। वह पुराने समय के दर्शकों की तरह फिल्म के पात्रों को भगवान नहीं समझता। इसलिए पश्चिम के निर्माता-निर्देशक अब भारतीय पुराण दर्शकों पर भी मध्यम बजट वाली साइंस फिक्शन बनाने का चाहे तो जोखिम मोल ले सकते हैं।
बाहुबली फेम प्रभास के साथ मिलेनियम स्टार अमिताभ बच्चन अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण की साल 2024 की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘कल्कि 2898 एडी’ ने रिलीज होने के महज चार दिनों के भीतर 550 करोड़ रुपये की वर्ल्डवाइड कमाई करके बॉक्स ऑफिस में तहलका मचा दिया है। 27 जून को रिलीज हुई इस फिल्म ने अपनी महाबंपर ओपनिंग में ही ‘सालार’, ‘साहो’ और आदिपुरुष जैसी फिल्मों के ओपनिंग कलेक्शन का रिकॉर्ड तोड़ दिया था।
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प्रभास की फिल्मों का क्रेज
कारोबार के जानकारों का अनुमान था कि फिल्म अपने पहले वीक में ही लागत वसूल कर लेगी लेकिन इसने प्रदर्शित होने के चार दिनों में ही पूरी दुनिया में 550 करोड़ रुपये की कमाई करके साबित कर दिया कि यह एक सप्ताह बाद सिर्फ अपनी लागत ही वसूल नहीं करेगी बल्कि कम से कम 300 या 400 करोड़ रुपये का फायदा भी कमा चुकी होगी। वैसे प्रभास की फिल्मों का हाल के दौर में काफी क्रेज देखा गया है लेकिन यह भी सच है कि प्रभास की फिल्में महज अपने अभिनय या स्टोरी की बदौलत ही दर्शकों को नहीं खींचतीं बल्कि इनके पीछे फिल्म की हाई इंड टेक्नोलॉजी, हैरान करने वाले एक्शन, चमत्कारिक से दिखने वाले सेट भी इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं। हालांकि कल्कि 2898 एडी को महज इसी दायरे में नहीं रखा जा सकता बल्कि देखा जाए तो इस फिल्म से हिंदुस्तान में हॉलीवुड जैसी साइंस फिक्शन की भी शुरुआत महसूस की जा सकती है।

धीरे-धीरे अब यह स्थिति बदल रही
हालांकि कल्कि 2898 एडी पूरी तरह से साइंस फिक्शन नहीं है और न ही यह पूरी तरह से भारत की पारंपरिक पौराणिक फिल्म ही है, जिसमें अब के पहले इस तरह के माइथोलॉजिकल एक्शन ज्यादा देखने को मिलते थे। यह सेमी माइथोलॉजिकल और सेमी साइंस फिक्शन है जिसमें साइंस फिक्शन का जोर अब तक भारत में बनने वाली ऐसी ही मिक्स फिल्मों के मुकाबले काफी ज्यादा है। एक लंबे समय से सिने प्रेमियों के बीच यह चर्चा का विषय होता रहा है कि आखिर भारत में हॉलीवुड जैसी साइंस फिक्शन जोनर की फिल्में क्यों नहीं बनतीं?
या हॉलीवुड की साइंस फिक्शन, भारत में उस तरह से क्यों नहीं चलतीं जिस तरह से वे चीन और जापान में चलती हैं? ऐसे दोनों ही सवालों का एक ही जवाब रहा है कि भारत में निर्माता निर्देशक न तो हॉलीवुड जैसी टेक्नोलॉजी (खासकर स्पेशल सिने इफेक्ट्स के मामले में) का बजट बर्दाश्त करने की क्षमता में रहे हैं और न ही हिंदुस्तान में ऐसे दर्शक हैं जो हिंदुस्तानी पौराणिक कथाओं में जरा भी साइंस के दुस्साहसी हस्तक्षेप को बर्दाश्त कर पाएं। हालांकि धीरे-धीरे अब यह स्थिति बदल रही है।

600-700 करोड़ रुपये तक खर्च
भारत में भी अब ऐसे निर्माता सामने आ रहे हैं जो 100-200 नहीं बल्कि 600-700 करोड़ रुपये तक एक फिल्म बनाने में खर्च कर सकते हैं और ऐसे साहसी निर्देशक भी सामने आने लगे हैं जो हजारों करोड़ वाली इन फिल्मों को नियंत्रित करने का दम रखते हैं। तेलुगू के युवा निर्देशक नाग अश्विन रेड्डी ऐसे ही हैं। इनकी फिल्म कल्कि 2898 एडी का जो दूसरा पार्ट इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर कमाई के झंडे गाड़ रहा है, उसकी लागत 6 अरब यानी 600 करोड़ रुपये है। 38 वर्षीय नाग अश्विन रेड्डी सिर्फ निर्देशक भर नहीं हैं बल्कि वह साइंस फिक्शन और पौराणिक कथाओं को मिक्स करके बनने वाली फिल्मों के जबरदस्त पटकथा लेखक भी हैं।
साल 2015 में नाग अश्विन रेड्डी ने अपनी पहली ही ड्रामा फिल्म ‘येवडे सुब्रामण्यम’ पर जबरदस्त एक्शन, ड्रामा और साइंस फिक्शन वाले फॉर्मूलों का इस्तेमाल किया था। अब जिस तरह से उनकी कल्कि 2898 एडी दूसरे पार्ट को पूरे देश में प्यार मिल रहा है उससे लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी हजारों, करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली साइंस फिल्में बनेंगी। इसकी एक वजह यह भी है कि अब भारत में धीरे-धीरे इसकी भूमिका बन रही है।
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‘ब्रह्मास्त्र’ से ‘कंतारा’ तक उदाहरण
अगर हम ‘ब्रह्मास्त्र’ से ‘कंतारा’ तक की फिल्मी यात्रा को देखें तो साफ पता चलता है कि पीढ़ियों से चली आ रही मिथकप्रियता को भारतीय अब बड़े पर्दे पर देखने के लिए भी तैयार हो रहे हैं क्योंकि हाल के सालों में एक नहीं कई ऐसी फिल्में बनी हैं जो भारत में सिनेमा के शुरुआती दौर की तरह सिर्फ पौराणिक आख्यानों पर ही आधारित नहीं हैं बल्कि इनमें थोड़ा बहुत मानवीय हस्तक्षेप भी बर्दाश्त किया गया है। चाहे कमल हसन अभिनीत ‘दशावतारम’ रही हो, जियो सिनेमा की ‘हनुमान’ रही हो, नेटफ्लिक्स की ‘राजनीति’ रही हो, अमेजन प्राइम वीडियो की ‘रावण’ रही हो, अमेजन प्राइम वीडियो की ही ‘राम सेतु’ रही हो, डिज्नी और हॉटस्टार की साझी ‘ब्रह्मास्त्र पार्ट वन: शिवा’ रही हो या नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम वीडियो का साझा साहकार ‘कंतारा’ रही हो।
इन सब फिल्मों में सिर्फ पौराणिकता नहीं थी बल्कि काफी हद तक साइंस फिक्शन के भी तत्व थे और भारतीय दर्शकों ने भी इन्हें स्वीकार किया है क्योंकि इन फिल्मों ने चाहे वह ओटीटी में रिलीज हुई हों या थियेटर में अच्छी खासी कमाई की है। इसलिए यह कहना न तो जल्दबाजी है और न ही गैरजिम्मेदारी कि भारत में अब साइंस फिक्शन देखने वाले दर्शकों का भी धीरे-धीरे एक अच्छा खासा समूह उभर रहा है। भले यह हॉलीवुड की फिल्मों जितना बड़ा दर्शक समूह न हो लेकिन अगर इस उभर रहे समूह की रुचियों को ध्यान में रखकर भारत में निर्माता निर्देशक ऐसी पुराण मिश्रित विज्ञानकथाओं वाली फिल्मों के निर्माण की हिम्मत करते हैं तो उन्हें अपनी लागत वसूल करने के मामले में ही नहीं बल्कि ठीक-ठाक कमाई के लिए भी निराश नहीं होना पड़ेगा।
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