Bank Loan Crisis – बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर रहा है RBI
Bank Loan Crisis: यह सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन महाकुंभ में जाने के लिए करोड़ों लोगों ने बैंकों से भारी मात्रा में नकदी निकाली है। अब स्थिति यह है कि बैंकों के पास कर्ज देने के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं बचा है। बैंकों की यह हालत सुधारने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग सेक्टर में पूंजी की तरलता बढ़ाने के लिए आरबीआई को जल्द ही कोई ठोस कदम उठाना होगा। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय बैंकिंग प्रणाली इस समय सबसे गंभीर संकट का सामना कर रही है। इस संकट से उबरने के लिए आरबीआई को नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) कम करना पड़ सकता है। बैंकों की तरलता नवंबर में 1.35 लाख करोड़ रुपये थी, जो दिसंबर में गिरकर 0.65 लाख करोड़ रुपये की कमी में पहुंच गई। जनवरी में यह घाटा बढ़कर 2.07 लाख करोड़ रुपये हो गया और फरवरी में यह 1.59 लाख करोड़ रुपये रहा।

सीआरआर में 0.50% की कटौती की थी
एसबीआई की रिपोर्ट बताती है कि महाकुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों के कारण बैंकों में नकदी की भारी कमी हो गई है। इस दौरान खुदरा जमाकर्ताओं ने अपने बैंक खातों से बड़ी मात्रा में नकदी निकालकर महाकुंभ में खर्च कर दी। इससे बैंकों को लगातार नकदी की कमी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि निकाली गई नकदी का बड़ा हिस्सा अभी तक बैंकिंग प्रणाली में वापस नहीं आया है। फरवरी में हुई मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में भी आरबीआई ने सीआरआर में 0.50% की कटौती की थी, जिससे बैंकिंग प्रणाली में 1.10 लाख करोड़ रुपये की पूंजी आई थी। लेकिन यह राशि तरलता सुधारने के लिए अपर्याप्त साबित हो रही है और जल्द ही सीआरआर में और कटौती की जरूरत पड़ सकती है। बाजार में तरलता की कमी की यही एक मात्र वजह नहीं है।
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रुपया संभालने की कोशिश से भी घटी तरलता
डॉलर के मुकाबले गिरते रुपये को संभालने के लिए भी रिजर्व बैंक ने बड़ी मात्रा में अपने भंडार से डॉलर बाजार में डाले और उसके बदले में रुपये बाजार से उठाए हैं। जिसकी वजह से भी बाजार में तरलता कम हुई है। इसके लिए रिजर्व बैंक ने कुछ बॉडों को खरीदकर बाजार में तरलता बढ़ाने की कोशिश की है, लेकिन यह संकट बहुत बड़ा होने की वजह से दिक्कत हो रही है। सिर्फ चार महीनों में ही रिजर्व बैंक में 64 अरब डॉलर बाजार में डाले हैं। महाकुंभ के बाद, श्रद्धालु बनारस, अयोध्या, चित्रकूट और नैमिषारण्य जैसे धार्मिक स्थलों पर भी गए, जिससे छोटे व्यापारियों को भी फायदा हुआ। यह साबित करता है कि बड़े धार्मिक आयोजन न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी विकास को बढ़ावा देते हैं।

60 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला
महाकुंभ जैसे बड़े आयोजन देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी होते हैं। इसी तरह हाल ही में गुजरात में आयोजित कोल्डप्ले कॉन्सर्ट ने भी देश की इकोनॉमी को लाभ पहुंचाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अर्थव्यवस्था के लिए अपार संभावनाओं वाला आयोजन बताया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और युवा आबादी इसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल बना सकती है। महाकुंभ के दौरान बैंकों से भारी मात्रा में पैसा निकालने के कारण बैंकों में नकदी की कमी हो गई थी। एसबीआई की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि बैंकों के पास लोन देने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था।
इसे देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों में नकदी बनाए रखने के लिए कई उपायों की घोषणा की है, जिससे बैंकों को करीब 1.9 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी प्राप्त होगी और लोन देने में आसानी होगी।महाकुंभ सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि इससे 60 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला। महाकुंभ 2025 के आयोजन पर सरकार ने लगभग 7,500 करोड़ रुपये का निवेश किया। इस निवेश का परिणाम इतना शानदार रहा कि राज्य की अर्थव्यवस्था को 3.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का फायदा हुआ. सरकार द्वारा किए गए निवेश ने पर्यटन, होटल, परिवहन और अन्य कई क्षेत्रों को जबरदस्त बढ़ावा दिया, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली।
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