Cases of Murders and Fraud: नैतिकता की कसौटी में फेल हुआ इंसान
Cases of Murders and Fraud: हाल के दशकों में विज्ञान, तकनीकी कौशल विकास के सभी क्षेत्रों में इंसान ने अपना परचम लहराया है। लेकिन नैतिकता की कसौटी में वह फेल हुआ है। पूरी दुनिया में इंसानी धोखाधड़ी, विश्वासघात, हत्याएं और फ्रॉड के मामले बढ़े हैं। ऐसा कोई साल नहीं जाता जब इन तमाम क्षेत्रों में इंसान कुछ पायदान और नीचे न खिसक जाता हो। शायद भरोसा बनाने का काम मशीनों के पास नहीं है। विश्वास, भरोसा या समग्रता में कहें तो इंसानी चरित्र किसी फैक्टरी में नहीं बन रहा,इसे कोई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाला रोबोट नहीं बना रहा ।
देश में युवाओं का लगातार चारित्रिक पतन हो रहा है जबकि पिछले कुछ दशकों में हमारी साक्षरता काफी ज्यादा बढ़ी है। जीवन जीने और सपने देखने की सुविधाएं बढ़ी हैं। संचार सुविधाओं और सोशल मीडिया के कारण, युवाओं में औपचारिक इंटरेक्शन तथा अवेयरनेस में भी इजाफा हुआ है। आज उनका भविष्य पहले से कहीं ज्यादा सुखद और सुरक्षित है। इस सबके बावजूद युवाओं का चरित्र मजबूत नहीं कमजोर हो रहा है। उल्टे पतन दिशा में लगातार फिसल रहा है। हालांकि यह अकेले युवाओं का मामला भी नहीं है। लेकिन देखने वाली बात यह है कि युवा चीजों को आगे ले जा रहे हैं, इसलिए चिंता सबसे ज्यादा उन्हीं को लेकर होनी चाहिए।

300 से ज्यादा लड़कियों की मौतें हर साल लिवइन में
आमतौर पर जब कुछ झकझोर देने वाले केस सामने आते हैं, तब सामान्य लोगों को पता चलता है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहना आज भी कितना खतरनाक है, वरना तो लिव इन रिलेशनशिप में होने वाली हत्याएं भी अब आम बात हो गई हैं। इन दिनों चूंकि माहौल में आफताब/श्रद्धा वालकर, साहिल गहलोत/निकी यादव और हार्दिक शाह/मेघा जैसे झकझोर देने वाले हत्याकांड छाए हुए हैं, इसलिए ये परेशान करते हैं वरना कोई इन पर ध्यान ही नहीं देता।
मसलन एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में हर साल 300 से ज्यादा लड़कियां अपने पार्टनरों के द्वारा लिव इन रिलेशनशिप में मारी जाती हैं लेकिन क्या हम इनकी चर्चा भी सुनते हैं। आखिर संकट कहां है? संकट सिर्फ भरोसे का है, ईमानदारी का है। अपवाद के तौरपर हो सकता है कुछ केस ऐसे भी हों जिनमें लडकियां भी लड़कों के साथ विश्वासघात करती हों लेकिन व्योहार रूप में आंकड़े देखें तो लिवइन में रहते हुए 99.99 फीसदी लड़कियां मारी जाती हैं।
विश्वासघात में हुई बढ़ोतरी
एक तरफ जहां सोशल मीडिया और रोजमर्रा की जिंदगी में आये खुलेपन से लड़कियों और लड़कों के बीच दूरियां कम हुई हैं, रिश्तों और भावनाओं की अभिव्यक्ति में बेबाकी आयी है,लेकिन विश्वासघात में कोई कमी नहीं उलटे बढ़ोत्तरी हुई है। हालांकि इस बात का कोई ठोस आंकड़ा तो नहीं है कि देश में कुल कितने युवा ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहते हैं। लेकिन अपने इर्दगिर्द हम लिव इन रिलेशनशिप को लेकर टूटती हुई झिझक और वर्जनाओं को देख सकते हैं।
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मगर क्या लिव इन रिलेशनशिप में कोई मैच्योरिटी भी दिख रही है? एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई में आज 22 से 28 साल के 50 फीसदी से ज्यादा युवा लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं। लेकिन एक तरफ जहां इस प्रगतिशीलता के नाम पर, खुलेपन के नाम पर, रिश्तों का विस्तार हुआ है, वहीं यह भयावह सच्चाई भी सामने आयी है कि लिव इन रिलेशनशिप में लड़कियों की हत्याएं बढ़ती जा रही हैं।
साइबर क्राइम में यूथ की भागीदारी ज्यादा
हर क्षेत्र में इंसान की गुणवत्ता क्षरित हुई है। जैसे जैसे इंसान की बुद्धि कौशल, तकनीक और दूसरे क्षेत्रों में प्रगति हुई है, वैसे वैसे उसका चरित्र बहुत कमजोर हुआ है। डेलॉय इंडिया की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक हाल के सालों में बीमा और बैंकिंग के क्षेत्र में बहुत तेज रफ्तार से धोखाधड़ी के मामले बढ़े हैं।
डेलॉय इंडिया ने जिन बीमा कंपनियों से इस सर्वे में बातचीत की, उनमें से 60 फीसदी इस बात को स्वीकारते हैं कि धोखाधड़ी में इजाफा हुआ है, इस धोखाधड़ी में सबसे ज्यादा युवा शामिल हैं, ये बेईमानी और धोखाधड़ी जिस उन्नत तकनीक के बदौलत हो रही है, वह सब अधेड़ों और बूढ़ों बस में भी नहीं है। क्योंकि तकनीक के इस्तेमाल वह उतने कुशल नहीं हैं। देश में बहुत तेज रफ्तार से साइबर क्राइम बढ़ रहा है। इस साइबर क्राइम में भी युवाओं की सबसे ज्यादा भागीदारी हैं।
हवाई जहाज, रेलगाड़ियां सुरक्षित
अगर विज्ञान और तकनीक की प्रगति के नजरिये से देखें तो यह दौर मानव इतिहास का सबसे उन्नत दौर है। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां इंसानी कौशल, इंसानी मेधा चमत्कारिक उपलब्धियां न हासिल कर रही हो। एक जमाना था जब हवाई यात्रा 70 से 80 फीसदी तक असुरक्षित होती थी, आज हवाई यात्रा की असुरक्षा घटकर सिर्फ 5 से 7 फीसदी रह गई है। पिछली सदी के 80 और 90 के दशक तक रेल यातायात 5 से 7 फीसदी तक असुरक्षित था, आज यह असुरक्षा घटकर 1 से 0.5 फीसदी रह गई है। कहने का मतलब हवाई जहाज सुरक्षित हो गए हैं, रेलगाड़ियां सुरक्षित हो गयी हैं, महामारियों में भी 20वीं सदी के मध्य तक जहां 25 से 30 फीसदी तक लोग अपनी जान गंवा बैठते थे, वह आंकड़ा आज घटकर 2 से 5 फीसदी तक आ गया है।

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सवालों को घेरे में भारतीय यूथ
सवाल है हमारे युवा अगर पढ़ने में बहुत अच्छे हैं, तकनीक को समझने और आत्मसात करने के मामले में दुनिया में उनका कोई मुकाबला नहीं है, कठिन परिस्थितियों में भी संघर्ष करके सफलता प्राप्त करने में भारतीय युवाओं से ज्यादा जीवट किसी में नहीं है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा काम करने वालों में भी भारतीय युवा शामिल हैं, लेकिन इतनी सारी खूबियों के बीच आखिर उनका चरित्र इतना कमजोर क्यों है? जो युवा अपने आगे बढ़ने के लिए हर तरह की मेहनत करना जानता है, हर तरह की कुर्बानी के लिए तैयार रहता है, वह युवा अपने भावनात्मक रिश्तों, सामाजिक आचरण और ईमानदाराना चरित्र के मामले में इतना कमजोर क्यों है?
क्या सिर्फ इसलिए कि ईमानदार होने से उसे उन्नति कर पाने का भरोसा नहीं है या फिर इसके पीछे उनके मान बाप का डीएनए है, जो अपने लिए किसी भी प्रकार से सारी सुविधाएं, सारी ख्वाहिशें पूरी करना चाहता है और दूसरे के लिए उसके अंदर किसी तरह का कोई मूल्य नहीं है। कहने का मतलब कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां इंसान ने अपनी मेधा, अपने कौशल और अपनी दिमागी कुशलता के चलते पिछले 5 दशकों में जबर्दस्त कामयाबी न हासिल की हो। हर उपभोक्ता उत्पाद आज कुछ दशकों पहले के मुकाबले ज्यादा उन्नत है। मेडिकल सुविधाएं, पढ़ाई, यातायात, नौकरियां, कृषि, दफ्तरी कामकाज, बागवानी। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां इंसान ने हाल के दशकों में बहुत उन्नति न की हो, लेकिन एक क्षेत्र ऐसा है, जहां हर गुजरते दिन के साथ इंसान और ज्यादा कमजोर, अविश्वसनीय, घातक और खतरनाक हुआ है। जी हां यह है- इंसानी चरित्र विशेषकर इंसानी भरोसा।