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Reading: Dhirubhai Ambani : स्टॉक मार्किट के मसीहा धीरूभाई अंबानी
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WeStory > फाइनेंस > Dhirubhai Ambani : स्टॉक मार्किट के मसीहा धीरूभाई अंबानी
फाइनेंसउद्यमी (Entrepreneur)

Dhirubhai Ambani : स्टॉक मार्किट के मसीहा धीरूभाई अंबानी

WeStory Editorial Team
Last updated: 2025/02/06 at 11:19 AM
WeStory Editorial Team
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13 Min Read
Dhirubhai Ambani : स्टॉक मार्किट के मसीहा धीरूभाई अंबानी
Dhirubhai Ambani : स्टॉक मार्किट के मसीहा धीरूभाई अंबानी
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Dhirubhai Ambani : बिकवाली ब्रोकर्स को अपने सामने नतमस्तक करवा दिया था

Dhirubhai Ambani – एक अध्यापक के बेटे धीरूभाई अंबानी की कहानी बचपन में गांठिया (एक गुजराती व्यंजन) बेचने से शुरु होती है। जब उनके दोस्त और भाई पढ़ाई करते थे तो वे पैसे कमाने की तरकीबें सोचते। यमन देश के एडन बंदरगाह पेट्रोल पंप पर काम करने वाले 17 साल के धीरुभाई बरमाह शैल कंपनी की सहायक कंपनी में सेल्स मैनेजर बनकर हिंदुस्तान वापस लौटे तो उनकी तनख्वाह 1,100 रुपये थी। एक इंटरव्यू में धीरुभाई ने कहा था ‘जब मैं अदन में था तो दस रुपये खर्च करने से पहले दस बार सोचता। वहीं शैल कंपनी कभी-कभी एक टेलीग्राम भेजने पर पांच हज़ार खर्च कर देती। मैंने समझा जो जानकारी चाहिए, वो बस चाहिए।’

Table of Contents
Dhirubhai Ambani : बिकवाली ब्रोकर्स को अपने सामने नतमस्तक करवा दिया था15 हजार से रिलायंस कारपोरेशन की स्थापनाकिसी काम को करने से गुरेज़ नहींबहुत कम समय पेट्रोकेमिकल कंपनीविमल ब्रांड के साथ कपड़ा बाजार में प्रवेशहिचकोलों के बावजूद नए आसमान छूती कामयाबीस्टॉक एक्सचेंज में हाहाकारशेयर की कीमत 125 रुपये पर आ चुकी थीस्टॉक मार्केट खुलते ही बंद हो जाता
Dhirubhai Ambani : बिकवाली ब्रोकर्स को अपने सामने नतमस्तक करवा दिया था
Dhirubhai Ambani : बिकवाली ब्रोकर्स को अपने सामने नतमस्तक करवा दिया था

15 हजार से रिलायंस कारपोरेशन की स्थापना

हिंदुस्तान वापस आकर धीरुभाई ने 15 हजार रुपये से रिलायंस कमर्शियल कारपोरेशन की स्थापना की। यह कंपनी मसालों का निर्यात करती थी। अनिल अंबानी एक इंटरव्यू में इससे जुड़ा एक किस्सा बताते हैं, ‘एक बार किसी शेख ने उनसे हिंदुस्तान की मिटटी मंगवाई ताकि वो गुलाब की खेती कर सके। धीरुभाई ने उस मिटटी के भी पैसे लिए। लोगों ने पूछा क्या ये जायज़ धंधा है तो धीरुभाई ने कहा। उधर उसने एलसी (लेटर ऑफ़ क्रेडिट यानी आयत-निर्यात में पैसे का भुगतान करने का जरिया) खोला, इधर पैसा मेरे खाते में आया। मेरी बला से वो मिटटी को समुद्र में डाले या खा जाए।’

15 हजार से रिलायंस कारपोरेशन की स्थापना
15 हजार से रिलायंस कारपोरेशन की स्थापना

किसी काम को करने से गुरेज़ नहीं

खुद को ‘जीरो क्लब’ में कहलवाने धीरुभाई ने कभी किसी काम को करने से गुरेज़ नहीं किया। एक बार उन्होंने कहा था, ‘सरकारी तंत्र में अगर मुझे अपनी बात मनवाने के लिए किसी को सलाम भी करना पड़े तो मैं दो बार नहीं सोचूंगा।’ ‘जीरो क्लब’ से उनका आशय था कि वे किसी विरासत को लेकर आगे नहीं बढ़े बल्कि जो किया अपने दम पर किया। धीरुभाई की सबसे बड़ी खासियत थी कि वे बहुत बड़ा सोचते थे और उसे अंजाम देते थे। वे मानते थे कि इंसान के पास बड़े से बड़ा लक्ष्य और दूसरे को समझने की काबिलियत होनी चाहिए। गुरचरण दास अपनी किताब ‘उन्मुक्त भारत’ में लिखते हैं ‘धीरूभाई सबसे बड़े खिलाड़ी थे जो लाइसेंस राज जैसी परिस्थिति में भी अपना काम निकाल पाये।’ यह बात सही है। जहां दूसरे बड़े घराने जैसे बिड़ला, टाटा या बजाज लाइसेंस राज के आगे हार मान जाते थे, धीरुभाई येन केन प्रकारेन अपना हित साध लेते थे।

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किसी काम को करने से गुरेज़ नहीं
किसी काम को करने से गुरेज़ नहीं

बहुत कम समय पेट्रोकेमिकल कंपनी

पेट्रोकेमिकल कंपनी बनाने का लक्ष्य धीरुभाई ने बर्मा शैल कंपनी से प्रभावित होकर ही रखा था जिसे उन्होंने बहुत कम समय में पूरा किया। उनके काम करने की रफ़्तार का अंदाजा आप इस किस्से से लगा सकते हैं कि एक बार अचानक आई बाढ़ ने गुजरात में पातालगंगा नदी के किनारे स्थित उनके पेट्रोकेमिकल प्रोजेक्ट को तहस नहस कर दिया था। युवा मुकेश अंबानी ने उन्हें तकनीकी सहायता प्रदान करने वाली कम्पनी डुपोंट के अभियंताओं से पूछा कि क्या परियोजना के दो संयंत्र 14 दिनों में दोबारा शुरू हो सकते हैं तो उनका जवाब था कि कम से कम एक महीने में एक संयंत्र शुरू हो पायेगा।

मुकेश ने यह बात धीरुभाई को फ़ोन पर बतायी। उन्होंने फौरन मुकेश को निर्देश दिया कि वे तत्काल प्रभाव से उन अभियंताओं को वहां से रवाना कर दें क्योंकि उनकी सुस्ती बाकी लोगों को भी प्रभावित कर देगी। इसके बाद दोनों संयंत्र प्लान से एक दिन पहले शुरू कर दिए गए थे। वैसे पहली बार भी यह प्लांट महज 18 महीनों में शुरु हो गया था। डुपोंट इंटरनेशनल के चेयरमैन रिचर्ड चिनमन को जब यह मालूम हुआ तो उन्हें बड़ा ताज्जुब हुआ। बताते हैं कि धीरुभाई को बधाई देते हुए चिनमन ने कहा कि अमेरिका में इस तरह का प्लांट बनने में कम से कम 26 महीने लगते।

बहुत कम समय पेट्रोकेमिकल कंपनी
बहुत कम समय पेट्रोकेमिकल कंपनी

विमल ब्रांड के साथ कपड़ा बाजार में प्रवेश

धीरुभाई अक्सर कहते थे, ‘मेरी सफलता ही मेरी सबसे बड़ी बाधा है।’ जब उन्होंने विमल ब्रांड के साथ कपड़ा बाजार में प्रवेश किया तो कपड़ा बनाने वाली कई कंपनियों ने अपने-अपने वितरकों को उनका माल बेचने से मना कर दिया था। धीरुभाई तब देश भर में घूमे और नए व्यापारियों को इस क्षेत्र में ले आये। बताते हैं कि उन्होंने वितरकों को विश्वास दिलाया कि ‘अगर नुकसान होता है तो मेरे पास आना और अगर मुनाफ़ा होता है तो अपने पास रखना’ एक ऐसा समय भी आया जब एक दिन में विमल के सौ शोरूमों का उदघाटन हुआ। उनकी जीत के किस्से कम नहीं थे तो हार के भी चर्चे भी कम नहीं हुए। एक बार वे लार्सेन एंड टुब्रो के चेयरमैन भी बने और फिर यह कंपनी उन्हें छोड़नी पड़ी। इंडियन एक्सप्रेस के रामनाथ गोयनका से उनका रिश्ता कभी मीठा और कभी तल्ख़ रहा।

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विमल ब्रांड के साथ कपड़ा बाजार में प्रवेश
विमल ब्रांड के साथ कपड़ा बाजार में प्रवेश

हिचकोलों के बावजूद नए आसमान छूती कामयाबी

कहते हैं कि धीरुभाई ने बड़े से बड़े राजनेताओं और कारोबारियों को साध लिया था लेकिन गोयनका के आगे उनकी एक नहीं चली। उन पर नियमों की अवहेलना के बारे में एक अखबार में एक के बाद एक करके हंगामाखेज रिपोर्टें छपीं जिन्होंने रिलायंस की साख पर गंभीर सवाल खड़े किए। लेकिन ऐसे हिचकोलों के बावजूद रिलायंस कामयाबी के नए आसमान छूती गई। गुरचरण दास के मुताबिक़ धीरुभाई की सफलता का कारण था उनका लक्ष्यकेंद्रित दृष्टिकोण। जहां अन्य उद्यमी ग़ैर ज़रूरी व्यवसाय करने लग जाते थे वहीं धीरुभाई एक ही उत्पाद में मूल्य संवर्धन करते जाते। पॉलिएस्टर बेचने से पॉलिएस्टर बनाने तक के धीरुभाई के सफ़र को गीता पीरामल की बात से कहकर ख़त्म किया जाए तो बेहतर होगा। ‘मुंबई के मूलजी जेठा बाज़ार में पॉलिएस्टर को चमक कहा जाता है। धीरुभाई अंबानी उस चमक के चमत्कार थे

हिचकोलों के बावजूद नए आसमान छूती कामयाबी
हिचकोलों के बावजूद नए आसमान छूती कामयाबी

स्टॉक एक्सचेंज में हाहाकार

18 मार्च 1982 को मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में हाहाकार मच गया था। मामला यहां से शुरू हुआ कि कलकत्ता में बैठे हुए वायदा व्यापार के कुछ मारवाड़ी शेयर दलालों ने रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के साढ़े तीन लाख शेयर धड़ाधड़ बेचने शुरु कर दिए। इससे कंपनी का 131 रुपये का शेयर गिरकर 121 रुपए पर आ गया। प्लान था कि इसको और नीचे गिराया जाए और बिलकुल निचले स्तर पर वापस खरीदकर मुनाफ़ा कमा लिया जाए। स्टॉक मार्केट की भाषा में शेयर खरीदने वालों को अंग्रेजी में ‘बुल’ यानी बैल और बेचने वालों को ‘बेयर’ यानी भालू कहते हैं। दूसरी बात,

वायदा व्यापार में सिर्फ़ ज़ुबानी ख़रीद-फ़रोख्त होती है। दलाल या व्यापारी के पास हकीक़त में शेयर नहीं होते। बाद में हर दूसरे शुक्रवार को दलाल वायदे के मुताबिक़ एक दूसरे को भुगतान कर देते हैं। और अगर भुगतान में देरी हो जाए तो 50 रुपये प्रति शेयर बदला देना होता है। वापस अपनी बात पर आते हैं। इस खरीद फ़रोख्त में उन दलालों को पूरी उम्मीद थी कि कोई बड़ी संस्थागत निवेशक कंपनी इस शेयर पर हाथ नहीं डालेगी और यह भी नियम था कि कंपनी अपने शेयर खुद नहीं खरीद सकती। प्लान बिलकुल सही था, दलालों के असफल होने की गुंजाइश बिलकुल भी नहीं थी। पर मारवाड़ी दलाल कंपनी के चेयरमैन धीरजलाल हीराचंद अंबानी यानी धीरूभाई अंबानी को एक नौसिखिया मान बैठे थे। ये उनकी सबसे बड़ी भूल थी।

स्टॉक एक्सचेंज में हाहाकार
स्टॉक एक्सचेंज में हाहाकार

शेयर की कीमत 125 रुपये पर आ चुकी थी

जब धीरजलाल हीराचंद अंबानी को यह मालूम हुआ तो बिना समय गंवाए उन्होंने अपने दलालों से रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के शेयर खरीदने को कह दिया। एक तरफ कलकत्ता में बैठे दलाल मुंबई स्टॉक मार्किट में शेयर बिकवा रहे थे तो दूसरी तरफ अंबानी के दलाल वही शेयर खरीद रहे थे। दिन खत्म होते-होते कंपनी के शेयर की कीमत 125 रुपये पर आ चुकी थी। अगले दिन और फिर आने वाले कुछ दिनों में धीरुभाई के दलालों ने जहां से भी हुआ धड़ाधड़ शेयर खरीदे।

नतीजा यह हुआ कि शेयर की कीमत बढ़ गयी। कुल मिलाकर रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज ग्यारह लाख शेयर बिके और उनमें से आठ लाख 57 हज़ार अंबानी के दलालों ने खरीद लिए। कलकत्ता में बैठे दलालों के होश उड़ चुके थे! फिर जब अगला शुक्रवार आया तो धीरजलाल अंबानी के दलालों ने शेयर मांग लिए। चूंकि वायदा व्यापार था, लिहाजा बेचने वाले दलालों के पास शेयर नहीं थे। 131 रुपये में ज़ुबानी शेयर बेचने वालों की हालत खराब थी। अब असली शेयर देते तो बाज़ार से ऊंचे दामों पर खरीदकर देने पड़ते और अगर समय मांगते तो 50 रुपये प्रति शेयर बदला देना होता।

शेयर की कीमत 125 रुपये पर आ चुकी थी
शेयर की कीमत 125 रुपये पर आ चुकी थी

स्टॉक मार्केट खुलते ही बंद हो जाता

बेचने वालों ने समय मांगा मगर धीरूभाई के दलालों ने मना कर दिया। स्टॉक मार्केट के अधिकारियों का बीच-बचाव कोई काम नहीं आया। लिहाज़ा, अपना वादा पूरा करने के लिए उन्होंने जहां से भी हुआ, जिस भी दाम पर हुआ रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के शेयर खरीदे। तीन दिन तक हालात ऐसे थे कि स्टॉक मार्केट खुलते ही बंद हो जाता। नतीजा यह हुआ कि रिलायंस के शेयर आसमान पर जा बैठे। जिसने भी ये शेयर बेचे वह अमीर हो गया। 18 मार्च,1982 को शुरू हुआ स्टॉक मार्किट का यह दंगल 10 मई, 1982 को जाकर ख़त्म हुआ तब तक धीरुभाई अंबानी स्टॉक मार्किट के मसीहा बन गये थे और रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज निवेशकों को सोने के अंडे देने वाली कंपनी।

कारोबार की दुनिया की इतिहासकार गीता पीरामल अपनी किताब ‘बिज़नेस महाराजास’ में लिखती हैं, ‘इस किस्से ने धीरूभाई को एक किवदंती बना दिया। पर वे स्टॉक मार्किट के मसीहा इसलिए नहीं बने कि उनकी वजह से बाज़ार तीन दिन तक बंद रहा और इसलिए भी नहीं कि उन्होंने बिकवाली दलालों को अपने सामने नतमस्तक करवा दिया था। यकीनन यह बहुत साहसिक कार्य था। पर वह बात जिसके लिए वे मसीहा बने वह थी- आम निवेशकों का उनमें विश्वास।’ यह उसी विश्वास का नतीजा था कि नब्बे का दशक तक आते-आते उनके साथ 24 लाख निवेशक जुड़ चुके थे। रिलायंस अपनी सालाना आम बैठक (एनुअल जनरल मीटिंग) मुंबई के स्टेडियम में करती थी। जानकार बताते हैं कि जब तक धीरुभाई रहे उन्होंने यह विश्वास नहीं खोया, चाहे उसके लिए उन्होंने कोई भी कीमत क्यों न चुकाई हो।

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