Animal Husbandry: बढ़ जाता है कई बीमारियां होने का खतरा
सभी जानवरों की एक निश्चित दैहिक तापमान सीमा होती है जिसे बरकरार रखना उनकी प्राथमिकता होती है। डेयरी गायों में यह वांछित तापमान तभी तक बरकरार रहता है जब तक वातावरण का तापमान 28-30 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। इससे अधिक तापमान इनके लिए तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर सकता है। अत्यधिक तापमान से पशुओं की कार्यक्षमता कम हो जाती है और पशु को कई बीमारियां होने का खतरा भी बढ़ जाता है। बाहरी गर्मी के साथ-साथ उपचय ऊष्मा से भी शारीरिक ताप उत्पन्न होता है। जैसे-जैसे दुग्ध उत्पादन और पशु की खुराक में वृद्धि होती है, वैसे ही उपचय उष्मा की मात्रा बढ़ती जाती है।
हांफने लगते हैं और मुंह से लार गिरती है
उष्मीय तनाव के चलते पशुओं की श्वसन दर 10-30 से बढक़र 30-60 बार प्रति मिनट तक पहुंच जाती है। पशु हांफने लगते हैं और उनके मुंह से लार गिरती दिखाई देती है। पशुओं के शरीर में बाइकार्बोनेट तथा आयनों की कमी से रक्त की पीएच कम हो जाती है। उष्मीय तनाव के दौरान पशुओं के शरीर का तापमान 102।5 डिग्री से 103 डिग्री फाहरेनहाइट तक बढ़ जाता है। उष्मीय तनाव स्तन ग्रंथियों के विकास को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसका प्रभाव आगामी दुग्धावस्था में दिखाई देता है।

उच्च तापमान वाले वातावरण में गायों के मदकाल अकसर मूक ही रहते हैं और अमदकाल की घटनाएं बढ़ जाती हैं। यदि मद का पता लग भी जाए तो शरीर का तापमान अधिक होने के कारण कई बार पशु गर्भधारण नहीं कर पाता। उष्मीय तनाव बढऩे से निषेचन क्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जो भ्रूण को क्षति भी पहुंचा सकता है तथा पैदा हुए बछड़े का दैहिक भार सामान्य ताप पर जन्म लेने वाले बछड़ों से कम पाया गया है।
पशुओं को छाया में बैठाना चाहिए
पशुओं को छाया में बैठाना चाहिए। अच्छी तरह डिजाइन किए गए पशु शेड लगाएं। इससे गर्मी के प्रभाव को 30-50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। पशुओं के लिए छायादार शेड का निर्माण करें जिसकी छत की ऊंचाई 12 से 14 फीट तक हो। शेड को पराली से अच्छी तरह ढक दें ताकि वातावरण की उष्णता नीचे खड़े पशुओं तक कम से कम ही पहुंचे।
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शेड की बनावट पूर्व पश्चिम वाली स्थिति में हो ताकि मई जून के महीने में कम से कम धूप ही अंदर आए तथा दिसंबर के महीने में पशु को कुछ अधिक धूप मिल पाए। इसके अलावा पशु को आराम देने के लिए अन्य तरीकों को भी अपनाएं जैसे फव्वारे, कूलर, मिस्ट पंखे, पानी के टैंक तथा नहलाने आदि की व्यवस्था। पशुशाला में लू से बचाव के लिए उपलब्ध सामान जैसे जूट या बोरी के पर्दों का उपयोग करें।
आंतरिक वातावरण को भी संतुलन जरूरी
बाहरी वातावरण के साथ ही पशु के शरीर के आंतरिक वातावरण को भी संतुलित किया जाना बेहद जरूरी है जिससे पशु के शरीर में आयन तथा अम्ल व क्षार का संतुलन बना रहे। इसके लिए हमें पशुओं को देने वाले आहार में परिवर्तन करना होगा। पशु को नियमित रूप रेशायुक्त आहार दें ताकि अधिक मात्रा में लार स्रावित हो सके। प्रतिरोधक घोल या बफर का इस्तेमाल करें। पशुओं को खनिज तत्व जैसे सोडियम 5 प्रतिशत तथा पोटेशियम 1।25 से 1।5 प्रतिशत भी आहार के साथ खिला सकते हैं। गर्मियों में हरे चारे की पैदावार कम हो जाती है, जिसकी कमी पूरा करने के लिए सूखा भूसा भिगोकर तथा उसमें दाना व मिनरल मिश्रण मिलाकर दें। दाने की मात्रा सकल शुष्क पदार्थ ग्राह्यता के 55-60 प्रतिशत से अधिक नहीं हो।
ऊर्जायुक्त आहार खिलाएं
गर्मियों में पशुओं की ऊर्जा आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए अधिक ऊर्जायुक्त आहार खिलाएं जो आतंरिक उपचय ऊष्मा को नहीं बढ़ाते हैं। इसके लिए अधिक वसा-युक्त आहार (6 प्रतिशत तक ही) दें। ऐसे आहार खिलाने से शारीरिक तापमान में कोई वृद्धि नहीं होती और श्वसन दर भी सामान्य बना रहता है। गर्मियों में पशुओं के लिए हर समय ताजा व स्वच्छ पानी की व्यवस्था करें।
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