Cancer Diseases: विकसित देशों के मुकाबले दोगुना भारत में मौत दर
दुनिया की सबसे पुरानी बीमारियों में से एक कैंसर ने आज भी अपनी भयावहता के सामने लाचार कर रखा है। आज भी गारंटी के साथ नहीं कहा जा सकता कि कैंसर का कोई मरीज सौ फीसदी बच ही जायेगा। हां, बहुत शुरुआती दौर में ही अगर कैंसर को पकड़ लिया जाए तो किसी हद तक बच जाने की उम्मीद होती है। विकसित देशों में अब 50 फीसदी कैंसर के मरीज ठीक हो जाते हैं लेकिन भारत में अभी भी 10 में से 7 कैंसर के मरीजों की मौत हो जाती है।
शायद इसकी वजह यह भी है कि भारत में प्रति 2000 कैंसर के मरीजों पर एक डॉक्टर है जबकि अमेरिका में प्रति 100 मरीजों पर एक डॉक्टर है। यानी वहां डॉक्टरों की उपलब्धता के मामले में भारत से 20 गुना बेहतर स्थिति है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ईसा के 3000 साल पहले से इंसान की जानकारी में रहने के बावजूद अभी तक किसी भी प्रकार की मेडिकल पैथी के पास कैंसर से सुरक्षा का कोई भी सौ फीसदी फुलप्रूफ उपाय नहीं है। इस रोग की आज भी भयावहता का आलम यह है कि डब्ल्यूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में करीब 1.75 अरब लोग कैंसर से ग्रस्त हैं।

कई जीवाश्म हड्डियों में ट्यूमर
यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स (460-370 ईसा पूर्व) ने इस बीमारी को सबसे पहले कैंसर कहा था। उन्हें चिकित्सा विज्ञान का जनक कहा जाता है। हिप्पोक्रेट्स ने गैर अल्सर बनाने वाले और अल्सर बनाने वाले ट्यूमर का वर्णन कार्सिनो और कार्सिनोमा शब्दों के रूप में किया था। इसका ग्रीक भाषा में मतलब होता है केकड़ा। बाद में एक रोमन चिकित्सक सेल्सस (28-50 ईसा पूर्व) ने ग्रीक शब्द का अनुबाद कैंसर शब्द में किया था जो केकड़े के लिए लैटिन शब्द है। वैसे कैंसर का पता इंसान को प्राचीन मिस्र की मानव ममियों के जीवाश्म से भी हुआ था। कई जीवाश्म हड्डियों में ट्यूमर पाये गए हैं और इसका वर्णन उन ममियों के संबंध में मौजूद प्राचीन पांडुलिपियों में भी है।
यह भी पाया गया है कि सिर और गर्दन के कैंसर में देखी गई हड्डी खोपड़ी का विनाश कर दिया था। लगभग 3000 साल पहले कैंसर को ‘एडविन स्मिथ पेपिरस’ कहा गया था और इसे ट्रोमा सर्जरी पर प्राचीन मिस्र की पाठ्य पुस्तक के एक हिस्से में दर्शाया गया था। कैंसर के इस सबसे पुराने साहित्य में स्तन के ट्यूमर या अल्सर के 8 मामलों का वर्णन मिलता है। उन दिनों मिस्र में इसके निदान के लिए फायर ड्रिल नामक एक उपकरण से उन जगहों पर दागने से किया जाता था जिन जगहों पर कैंसर के ट्यूमर होते थे।
लगातार थकान महसूस हो तो सावधान हो जाएं
अगर किसी व्यक्ति को आराम करने के बाद भी लगातार थकान महसूस हो और वह थकान जाने का नाम न ले तो आपका माथा ठनकना चाहिए कि कहीं यह कैंसर तो नहीं। अगर शरीर के किसी भी हिस्से में कोई गांठ जैसी महसूस हो तो तुरंत जांच करानी चाहिए। त्वचा में गांठ कैंसर की निशानी हो सकती है। अगर किसी का अचानक वजन बढ़ जाए या अचानक वजन बहुत कम हो जाए, त्वचा पर अनेक तिल दिखने लगें या पहले से मौजूद तिलों का रंग बदलने लगे या इन तिलों से रिस-रिसकर खून बहने लगे तो ये लक्षण कैंसर की निशानी हो सकते हैं।
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अगर किसी के मुंह में छाले हो जाएं और काफी दिनों के बाद भी ठीक न हो तो शक करना चाहिए कि कहीं इनका कैंसर से रिश्ता तो नहीं है। सांस लेने में तकलीफ होना, लगातार हल्का बुखार बने रहना, भूख में कमी होना, खांसी के दौरान मुंह से खून आना, हड्डियों में जबरदस्त दर्द रहना, ये सब वे लक्षण हैं जो आमतौर पर कैंसर की तरफ इशारा करते हैं। वैसे तो किसी भी उम्र में किसी भी कैंसर हो सकता है लेकिन 50 साल की उम्र के बाद कैंसर होने के खतरे कई गुना ज्यादा बढ़ जाते हैं।
मेडिकल साइंस काफी मजबूत हुई है
पिछले 2 दशकों में कैंसर के प्रति मेडिकल साइंस काफी मजबूत हुई है और इसे अधिक से अधिक क्यूरेबल बनाये जाने की कोशिश हुई है। हालांकि यह भी सच है कि आज भी कैंसर दुनिया का सबसे भयावह रोग है जिसके सामने इंसान लगभग असहाय है। बेल्जियम, पुर्तगाल, चेक गणराज्य, ट्यूनीशिया, गिनी, हैती। यूरोप से लेकर अफ्रीका तक के इन देशों का यहां जिक्र यह बताने के लिए किया जा रहा है कि इन देशों की कुल आबादी के करीब ही हर साल लोग कैंसर द्वारा निगल लिए जाते हैं। बावजूद इसके न कहीं कोई हो हल्ला होता है और न ही कहीं कैंसर के विरुद्ध वैसी दहशत देखी जाती है जैसी दहशत हाल के सालों में कोरोना जैसी महामारी के समय देखी गई थी।

बेल्ज्यिम की आबादी 1 करोड़ 7 लाख से कुछ ज्यादा है। पुर्तगाल की आबादी 1 करोड़ 6 लाख से कुछ ज्यादा है और हैती की आबादी 1 करोड़ 22 हजार से कुछ ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कैंसर से हर साल 96 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। कैंसर हर साल एक हैती, एक पुर्तगाल और करीब-करीब एक बेल्जियम को चट कर जाता है। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि भारत में साल 2022 में 14.61 लाख से अधिक लोगों में कैंसर का निदान किया गया। अध्ययनकर्ताओं को आशंका है कि 2025 तक इस आंकड़े में करीब 13 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। साल 2022 में दुनियाभर में अनुमानित 2 करोड़ कैंसर के नए मामलों का निदान किया गया और 97 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि साल 2050 तक कैंसर के रोगियों संख्या 3.5 करोड़ प्रतिवर्ष तक पहुंच सकती है।
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