Methane Gas: गायों के पेट में एक बड़ा रिसर्च
न्यूजीलैंड के फार्मिंग साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानि एगरिसर्च के मैदान में इन दिनों कुछ गायों के पेट में एक बड़ा रिसर्च किया जा रहा है। रिसर्च कामयाब हुआ, तो जलवायु परिवर्तन से बेहाल पृथ्वी को बहुत राहत मिलने की उम्मीद है। इन गायों को कुछ टीके लगाए गए हैं ताकि उनके पेट में मौजूद वो बैक्टीरिया नष्ट हो जाएं, जो मीथेन गैस का उत्सर्जन करते हैं। मीथेन सबसे ख़तरनाक ग्रीनहाउस गैस है जो कार्बन डाई ऑक्साइड से 25 गुना ज्यादा गर्मी अपने अंदर कैद करती है। एगरिसर्च का मकसद है कि इस वैक्सीन के अलावा कुछ ऐसे टीके भी विकसित किये जा सकें जो गायों के पेट में मीथेन गैस बनाने वाले बैक्टीरिया को तो खत्म करें ही, उससे डेयरी उत्पाद खाने वालों को भी नुकसान न हो।
पालतू जानवरों के पेट में बनती है
मीथेन गैस अक्सर भेड़ों और दूसरे पालतू जानवरों के पेट में बनती है। फिर जानवर उसे वातावरण में छोड़ते हैं। जुगाली करने वाला एक जानवर दिन भर में औसतन 250-500 लीटर तक मीथेन गैस छोड़ता है। एक आकलन के मुताबिक जानवर डकार और हवा छोड़ते हुए इतनी मीथेन गैस छोड़ते हैं, जो 3.1 गीगाटन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर नुकसान करती है।

आंत के पहले हिस्से में रहते हैं बैक्टीरिया
यूं तो पालतू जानवरों के पेट में बड़ी तादाद में कीटाणु पलते हैं लेकिन इनमें से केवल 3 फीसदी ही ऐसे होते हैं जो मीथेन गैस के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार होते हैं। ये बैक्टीरिया जानवरों की आंत के पहले हिस्से में रहते हैं, जिन्हें रूमेन कहते हैं।
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बैक्टीरिया के जीनोम किए तैयार
एगरिसर्च के वैज्ञानिकों की इस उम्मीद की बुनियाद में है वैज्ञानिक साइनेड लीही की रिसर्च। साइनेड लीही एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं, जो न्यूजीलैंड के एग्रीकल्चरल ग्रीनहाउस गैस रिसर्च सेंटर में काम करती हैं। इस बैक्टीरिया का खात्मा करने के लिए साइनेड और उनकी टीम ने पहले तो लैब में ऑक्सीजन मुक्त माहौल तैयार किया। इसके बाद उन बैक्टीरिया के जीनोम यानि डीएनए सीक्वेंस तैयार किए गए।
बैक्टीरिया के खात्मे को बनाया टीका
बैक्टीरिया के जीनोम तैयार होने के बाद एगरिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों को उनके खात्मे का टीका तैयार करने में काफी मदद मिली। एगरिसर्च के वैज्ञानिक पीटर जैनसेन कहते हैं कि अब तक इन बैक्टीरिया की 12 से 15 नस्लों का पता चला है, जो जानवरों में मीथेन गैस के उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं। इन कीटाणुओं का खात्मा करने के लिए जानवरों को इंजेक्शन के जरिए वैक्सीन दी जा रही है। इससे उनके शरीर से वो केमिकल निकलते हैं, जो इन बैक्टीरिया के खिलाफ माहौल तैयार करते हैं, ताकि वो मर जाएं।
गैस चैम्बर में किया जा रहा परीक्षण
टीके को तैयार करने के लिए जो एंटीबॉडी चाहिए, उसे वैज्ञानिक जानवरों की लार और पेट से निकालते हैं। अब जिन जानवरों को टीका लगाया गया है उन्हें गैस चेम्बर में रखकर ये देखा जा रहा है कि उनके शरीर से मीथेन गैस का उत्सर्जन कम हुआ है या नहीं। जानवरों के चारा खाते वक्त भी उनकी नाक से निकलने वाली गैसों को मापा-जोखा जा रहा है। कुछ जानवरों की पीठ पर एक मशीन लगाई जाती है, जो उनकी नाक से निकलने वाली हवा के नमूने इकट्ठा करती है। हालांकि अब तक इस बात के पक्के सबूत नहीं जुटाए जा सके हैं कि टीका लगने के बाद से गायें या भेड़ों ने मीथेन गैस छोड़ना कम कर दिया है।
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गायों का चारा बदलने की तरकीब
स्कॉटलैंज के रूरल कॉलेज की एईलीन वॉल कहती हैं कि गायों और दूसरे पालतू जानवरों के डीएनए में बदलाव करके ऐसे जानवर पैदा किए जा सकते हैं, जो कम मीथेन गैस छोड़ेंगे। एईलीन कहती हैं कि पिछले दो दशक में ब्रिटेन में दूध उत्पादन की वजह से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 20 फीसदी तक कम किया गया है। अब एईलीन और उनके सहयोगी इसे और घटाने के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन, एईलीन के प्रयोग से सभी लोग सहमत नहीं हैं।
जानवरों की सेहत हो सकती है चौपट
वैसे भी आंत के बैक्टीरिया, किसी भी जीव की अच्छी सेहत से जुड़े होते हैं। इनमें बदलाव के नुकसान भी हो सकते हैं। मीथेन गैस कम करने के चक्कर में अगर जानवर डिप्रेशन के शिकार हो गए, तो इससे उनके दूध की क्वालिटी पर असर पड़ेगा। शोधकर्ता पीटर जैनसेन कहते हैं कि अब तक के प्रयोग में उन्हें इस बात के संकेत नहीं मिले हैं, जो दूध की गुणवत्ता पर असर डालने वाले हों।
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