Organ Donor: बेटियां ही सेवा करती हैं, बेटियां ही जीवन बचाती हैं
हर बार जब किसी महिला के अंगदान से किसी पुरुष की जान बचती है तो उस महिला की महानता और बलिदान को लेकर काफी कसीदे पढ़े जाते हैं। जैसे केरल में देवनंदा के केस में अस्पताल के डॉक्टर बेटी के त्याग से इतने अभिभूत हो गए कि उन्होंने सर्जरी का बिल ही माफ कर दिया। लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी ने जब उन्हें अपनी किडनी दी तो पूरा सोशल मीडिया उस लड़की की महानता के गौरव गान से भरा हुआ था। लोग कह रहे थे कि संकट के समय हमेशा बेटियां ही काम आती हैं। बेटियां ही सेवा करती हैं। बेटियां ही जीवन बचाती हैं। हालांकि बेटियों के बलिदान की कहानी सुनाते हुए वह एक भी बार ये नहीं कहते कि कैसे उन्होंने अपनी सारी संपत्ति, अपनी लीगेसी और अपनी विरासत अपने बाद अपने बेटों को ही सौंपी है। फिलहाल भारतीय समाज का यह दोगलापन, लड़कियों के प्रति छिपे और जाहिर पूर्वाग्रह कोई नई बात नहीं है। जब लेने की बात आती है तो सबकुछ बेटियों से लिया जाता है। सेवा, त्याग, बलिदान, घर की इज्जत बचाने की जिम्मेदारी से लेकर किडनी और लिवर तक लेकिन जब देने की बात आती है तो सबकुछ बेटों को दिया जाता है। गांव की जमीन, घर, संपत्ति, बैंक बैलेंस और पिता की विरासत से लेकर हार्ट, किडनी, लिवर तक।

भारत में हुए कुल 12,625 ट्रांसप्लांट्स हुए
भारत में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) के डेटा के मुताबिक प्रति वर्ष करीब 1.8 लाख लोगों की किडनी खराब होती है। इनमें से सिर्फ 6,000 लोगों का ही किडनी ट्रांसप्लांट हो पाता है। इन 6,000 में से 77 फीसदी पुरुष होते हैं। इसी तरह हर साल करीब 2 लाख लोगों को लिवर से जुड़ी गंभीर बीमारी जैसे लिवर कैंसर या लिवर सिरोसिस होता है, जिसमें से ट्रांसप्लांट सिर्फ 1500 लोगों का ही होता है। नया लिवर रिसीव करने वाले लोगों में करीब 80 फीसदी पुरुष होते हैं। किडनी रोग और अनुसंधान केंद्र संस्थान के डॉ. विवेक कुटे की एक लंबी स्टडी है, जिसमें पिछले 20 वर्षों में देश में हुए कुल ट्रांसप्लांट के आंकड़ों को एक जगह एकत्रित किया गया है। इस स्टडी के मुताबिक पिछले 20 सालों में भारत में हुए कुल 12,625 ट्रांसप्लांट्स में से 72.5 फीसदी रिसीवर पुरुष थे और 75 फीसदी डोनर महिलाएं थीं।
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73 फीसदी कैंसर पुरुषों को होते हैं
यह जानना बहुत जरूरी है कि औसतन 16 फीसदी केसेज में महिलाओं को किसी मृत व्यक्ति का ऑर्गन मिलता है। सिर्फ 11 फीसदी मामले ही ऐसे होते हैं जहां परिवार का कोई नजदीकी व्यक्ति अपना अंग देकर महिला की जान बचाता है। नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 में जहां 72 पुरुषों का किडनी ट्रांसप्लांट किया गया वहीं सिर्फ 28 महिलाओं को नई किडनी देकर उनकी जान बचाई गई। इसी तरह लिवर ट्रांसप्लांट में 74 पुरुष और 26 महिला, हार्ट ट्रांसप्लांट में 75 पुरुष और 25 महिला और पैंक्रियाज ट्रांसप्लांट में 73 पुरुष और 27 महिलाओं का अंग ट्रांसप्लांट किया गया। एक बड़ा सवाल यह कि क्या पुरुषों को ही लिवर, किडनी और हार्ट से जुड़ी गंभीर बीमारियां होती हैं, जिसकी वजह से उनकी जान को खतरा हो। हालांकि ट्रांसप्लांट के आंकड़ों को देखकर ऊपर से ऐसा लगता है लेकिन यह सच नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में सब्सटेंस अब्यूज से जुड़े 73 फीसदी कैंसर पुरुषों को होते हैं। जैसे लिवर कैंसर की मुख्य वजह एल्कोहल का सेवन है। किडनी को खतरा एल्कोहल और डायबिटीज दोनों की वजह से होता है। वहीं नॉन सब्सटेंस अब्यूज से जुड़े 77 फीसदी कैंसर का शिकार महिलाएं होती हैं। सब्सटेंस अब्यूज का अर्थ है टॉक्सिक पदार्थों का सेवन और टॉक्सिक लाइफस्टाइल।
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70 फीसदी ऑर्गन डोनर महिलाएं हैं
देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग लोगों के साथ हुई इन सारी घटनाओं में एक चीज कॉमन है। हर मामले में अंग दान करने वाली कोई महिला है और अंग ग्रहण करने वाला व्यक्ति कोई पुरुष। यह सिर्फ इन्हीं कहानियों की बात नहीं। आंकड़े कहते हैं कि भारत में 70 फीसदी ऑर्गन डोनर महिलाएं हैं। यानी 70 फीसदी ऑर्गन रिप्लेसमेंट के मामलों में पुरुषों को अपना अंग दान करने वाली कोई करीबी स्त्री ही होती है, जैसे मां, पत्नी, बहन या बेटी। भारत के नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन के डेटा के मुताबिक भारत में वर्ष 2019 में कुल मामलों में से 71 फीसदी में रिसीवर पुरुष थे। तब सिर्फ 29 फीसदी महिलाएं ऑर्गन रिसीवर थीं। यानी 29 फीसदी मामलों में महिला की किडनी, लिवर आदि खराब होने की स्थिति में अंग दान करके उसकी जान बचाई गई। वहीं 81 फीसदी ऑर्गन डोनर महिलाएं थीं और सिर्फ 19 फीसदी ऑर्गन डोनर यानी अपना अंग दान करने वाले पुरुष थे।
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