Smoking – लाखों भारतीय परिवारों की बड़ी समस्या
Smoking: शहरों की भागदौड़ भरी जिंदगी में एक मल्टीनेशनल कंपनी के कॉर्पोरेट एग्ज़िक्यूटिव को किशोरावस्था से ही धूम्रपान की लत होती है, जो अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा धूम्रपान पर खर्च कर देता है। धूम्रपान की आदत परिवार में पहले से किसी ना किसी को होती है, या फिर जिज्ञासा या साथियों द्वारा प्रेरित किए जाने के साथ शुरू होती है। लेकिन सामाजिक शौक में शुरू की गई यह आदत तनाव को कम करने का साधन बनती चली जाती है। स्वास्थ्य पर इसके विपरीत प्रभाव को जानते हुए और धूम्रपान त्यागने की अनेक कोशिशों के बाद भी धूम्रपान से छुटकारा पाना आसान नहीं होता है। यह किसी एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि लाखों भारतीय परिवारों की समस्या है, जिससे देश में धूम्रपान नियंत्रण की गंभीर चुनौती प्रदर्शित होती है, जो विकसित भारत के लक्ष्य को कमजोर कर रही है।

तीन कारणों से चलता रहता है कुचक्र
भारत में धूम्रपान नियंत्रण एक जटिल समस्या है जिसका मुख्य कारण आर्थिक रूप से वंचित आबादी में इसका फैलना है। यह आदत मुख्यतः कम और मध्यम आय वाले देशों, जहाँ धूम्रपान कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों में फैला होता है, जो की गरीबी के कुचक्र से बाहर नहीं निकलने देती है। यह कुचक्र मुख्यतः तीन कारणों से चलता रहता हैःज्यादा टैक्सः तम्बाकू उत्पादों पर ज्यादा टैक्स के कारण रमेश जैसे लोग अपनी सीमित आय का एक बड़ा हिस्सा इन उत्पादों पर खर्च करने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जिस वजह से उनकी वित्तीय मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
तम्बाकू का गैरकानूनी व्यापारः ज्यादा टैक्स तम्बाकू के गैरकानूनी व्यापार को बढ़ावा देता है, जिससे सरकार के राजस्व में कमी आती है और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर असर पड़ता है, जिससे गरीबों की स्थिति और खराब हो जाती है।स्वास्थ्य के लिए बढ़ता खर्चः धूम्रपान करने वालों को इससे जुड़ी बीमारियों के कारण स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च करना पड़ता है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति और ज्यादा कमजोर हो जाती है।
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भारत में तम्बाकू सेवन का परिदृश्य
तम्बाकू नियंत्रण की मानव-केंद्रित रिपोर्ट में भारत में तम्बाकू और निकोटीन के सेवन का विस्तृत ब्यौरा दिया गया है. भारत में तम्बाकू सेवन की दर दुनिया में सबसे ज्यादा दरों में से एक है। 2020 के आँकड़ों के मुताबिक यहाँ 15 साल या उससे अधिक उम्र के 27 प्रतिशत लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं। यहाँ पर तम्बाकू का सेवन धूम्रपान या खैनी के रूप में किया जाता है, तथा 2018 में धूम्रपान करने वाले 250 मिलियन लोग 16 से 64 साल की उम्र के बीच थे।
इसलिए भारत तम्बाकू का सेवन करने वालों के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि तम्बाकू की पूरी खपत में कानूनी रूप से निर्मित सिगरेट का हिस्सा केवल 8 प्रतिशत है, जबकि 92 प्रतिशत हिस्सा बीड़ी और खैनी जैसे सस्ते उत्पादों का है। नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे 2019-21 (एनएफएचएस-5) में महिला और पुरुषों में तम्बाकू के उपयोग में भारी विषमता देखने को मिली। जहाँ महिलाओं में तनाव और समाज के बदलते परिदृश्य के कारण तम्बाकू सेवल बढ़ रहा है, वहीं पुरुषों में तम्बाकू सेवन की दर अभी भी बहुत ज्यादा है।

विषैले पदार्थों की मात्रा ज्यादा
तम्बाकू का सेवन कमजोर आर्थिक वर्ग के लोगों में ज्यादा होता है, जिन्हें तम्बाकू से होने वाले नुकसान का खतरा भी अधिक होता है। कम और मध्यम आय वाले लोग सस्ते सिगरेट का उपयोग ज्यादा करते हैं। ग्रामीण भारत में ज्यादातर बीड़ी का सेवन होता है क्योंकि यह बहुत सस्ती होती है, जबकि यह सिगरेट के मुकाबले ज्यादा नुकसानदायक है क्योंकि इसमें विषैले पदार्थों की मात्रा ज्यादा होती है, और इसमें कोई फिल्टर नहीं लगा होता। ग्रामीण इलाकों में सरकार की निगरानी भी कम होती है जिसके कारण बीड़ी उत्पादन और इसकी मार्केटिंग बेरोक चलते रहते हैं।
इससे ग्रामीण आबादी को स्वास्थ्य का बड़ा जोखिम होता है, जिनके पास स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता कम होती है। सस्ते तम्बाकू उत्पाद आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए आकर्षक प्रतीत होते हैं, लेकिन जनस्वास्थ्य पर इसकी लागत बहुत ज्यादा है। सस्ते तम्बाकू उत्पादों की बिक्री से गरीबी का कुचक्र आगे बढ़ता रहता है, और टैक्स में वृद्धि कम आय वाले लोगों को ज्यादा खर्च की ओर ले जाती है या फिर वो गैरकानूनी तम्बाकू उत्पादों का सेवन करने लगते हैं। युवाओं (20 से 44 साल) में धूम्रपान चिंताजनक है क्योंकि हमारे कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा इसी आबादी से बनता है।
इस सर्वे में सामने आया कि 45 प्रतिशत युवा धूम्रपान या तम्बाकू सेवन छोड़ने में इसलिए समर्थ नहीं हैं क्योंकि उन्हें निकोटीन गम, पैच, लॉज़ेंज एवं अन्य टेक्नोलॉजी, जैसे हीट-नो-बर्न (एचएनबी) उपलब्ध नहीं हैं, जबकि पिछले साल इनमें से लगभग आधे लोगों से तम्बाकू सेवन छोड़ने की कोशिश की थी। युवाओं में तम्बाकू के लगातार सेवन से अनुकूलित और भारत विशिष्ट नीतियों की जरूरत को बल मिलता है, जो नियमों और विज्ञान पर आधारित हों। तम्बाकू सेवन को बढ़ावा देने वाले सामाजिक सांस्कृतिक कारणों को समझा जाना भी आवश्यक है। तम्बाकू नियंत्रण की मानव-केंद्रित रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 66 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने तम्बाकू का सेवन 20 से 25 साल की उम्र के बीच शुरू किया था, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं का उनका जोखिम काफी ज्यादा बढ़ गया।
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वैज्ञानिक प्रमाणों और भावनात्मक अपील की जरूरत
तम्बाकू पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाना असंभव है क्योंकि इससे तम्बाकू की खेती में लगे किसानों की रोजी-रोटी और टैक्स से होने वाली आय खत्म हो जाएगी और गैरकानूनी व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। इसकी बजाय, भारत में एक ऐसी नीति की आवश्यकता है जो वैज्ञानिक प्रमाणों और भावनात्मक अपील की मदद से तम्बाकू की रोकथाम करे और इसकी शिक्षा बढ़ाए। भारत में तम्बाकू नियंत्रण की नीति में डराने की बजाय व्यवहारिक दृष्टिकोण को अपनाए जाने की आवश्यकता है, जिसमें व्यवहारिक शिक्षा और नियम शामिल हों। धूम्रपान करने वाले और तम्बाकू चबाने वाले 74 प्रतिशत लोगों के परिवार में एक व्यस्क धूम्रपान करता है।
इसलिए हर पीढ़ी को शिक्षा व सहयोग प्रदान किए जाने की जरूरत है। विज्ञान पर आधारित समाधान और प्रगतिशील नीतियों को अपनाकर तथा सरकारी संस्थाओं, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, शिक्षाविदों एवं सामुदायिक हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर भारत में तम्बाकू की प्रभावी रोकथाम की जा सकती है, और इससे जुड़ी बीमारी एवं गरीबी के कुचक्र को समाप्त किया जा सकता है। भारत में तम्बाकू की महामारी को रोकने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है, जिसमें स्थायी परिवर्तन लाने और स्वस्थ समाज को बढ़ावा देने के लिए नियमों, शिक्षा, सांस्कृतिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन हो।
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