Car Crowd: हर शहर में सड़कों की क्षमता से ज्यादा वाहन
Car Crowd: देश का कोई भी ऐसा शहर नहीं है जहां ट्रैफिक जाम की समस्या न हो गई हो, क्योंकि हर शहर में सड़कों की क्षमता से ज्यादा वाहन है और आवाजाही के अनुमान से हमेशा ज्यादा लोग सड़कों पर होते हैं। अकेले दिल्ली, मुंबई, बंग्लुरू और कोलकाता जैसे चार बड़े शहरों में रहने वाले हर समय के ट्रैफिक जाम के कारण हर साल हम 1.44 लाख करोड़ रुपये महज ट्रैफिक जाम के चलते बरबाद करते हैं। भारत के किसी भी शहर में दिन के ऐसे समय पर जब लोग दफ्तर जा रहे हों या रोजी रोटी के लिए घर से निकलकर कारखाने, बाजार आदि कहीं जा रहे हों, उस समय सड़कों में औसत से 150% ट्रैफिक ज्यादा रहता है।

गैर जरूरी यात्राओं के आदी हैं हम
हम एशिया के किसी भी महानगर के मुकाबले ज्यादा ट्रैफिक के शिकार है, इस वजह से हमारे शहरों में वाहन चलते नहीं बल्कि रेंगते हैं। दिल्ली में जब बिल्कुल भीड़ नहीं होती उस समय दुनिया के दूसरे शहरों के मुकाबले 100 फीसदी ज्यादा भीड़ होती है। आखिर हम कब समझेंगे कि हम अपनी तमाम समस्याओं की वजह खुद हैं? जिस तरह से हम अपने शहरों को देखते ही देखते वाहनों के बोझ से ढंक देते हैं, उससे क्या यह साबित नहीं होता कि हम गैर जरूरी यात्राओं के आदी हैं।
हम शहरों में जरूर रहते हैं लेकिन सच यही है कि शहरों में रहने लायक अभी हमारा सिविक सेंस नहीं है। लेकिन हमेशा हमें इस बेतरतीबी से रहने की छूट नहीं मिल सकती, बमुश्किल अगले एक दशक तक अगर हमने अपने इस रवैये में सुधार नहीं किया तो हर साल 10 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान उठाएंगे और हमारी तमाम अर्थव्यवस्था ही नहीं समाज व्यवस्था भी चरमरा जाएगी। इसलिए जितनी जल्दी हो हमें कारों के पागलपन की हद तक वाले मोह और अंधाधुंध की जाने वाली गैर जरूरी यात्राओं को बाय-बाय करना होगा, वरना हमारा समूचा शहरी ढांचा हमारी ही ज्यादती से ध्वस्त हो जाएगा।
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कार उद्योग सर्वाधिक ऑक्सीजन मिल रही
दुनिया के कार उद्योग को अगर किसी एक देश से जिंदा रहने के लिए सर्वाधिक ऑक्सीजन मिल रही है तो वह देश भारत है। पिछले एक दशक से लगातार दुनिया में सबसे ज्यादा कारें देश में बिक रही हैं और उसमें भी हर गुजरते साल में 10 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हो रहा है। देश में पिछले 10 साल में सबसे ज्यादा विदेशी निवेश जिस क्षेत्र में आया है, वह कार उद्योग ही है। अकेले दिल्ली में आधे यूरोप से ज्यादा कारें हैं।
यह हैरान करने वाली बात नहीं तो और क्या है कि देश में महज 6% टैक्सपेयर हैं, जिनमें भी 5.5% पर शून्य टैक्स है। 2020-21 में आखिरी बार सार्वजनिक हुए आंकड़ों के मुताबिक, देश की कुल 132 करोड़ की आबादी में 8.22 करोड़ टैक्सपेयर थे। इनमें 7.5 करोड़ शून्य टैक्स के दायरे में थे। टैक्सपेयर की हर साल की इनकम 10 लाख से ऊपर है। लेकिन इसी देश में हर साल 40 लाख से ज्यादा कारें बिकती हैं। देश में जितनी कारें हैं, उतनी कारें समूचे यूरोपीय महाद्वीप में नहीं हैं। इससे अंदाजा लगता है कि हम किस कदर पागलपन की हद तक कारों के दीवाने हैं।

90 फीसदी ज्यादा वजन ढो रहे हैं ट्रैक
कारों की ही तरह हमारी गैर जरूरी यात्राओं में भी अपार दिलचस्पी है। देश के 40 फीसदी से ज्यादा रेलवे ट्रैक पर हमेशा उसकी क्षमता से 100 फीसदी ज्यादा बोझ रहता है। देश में 1,219 ऐसे ट्रैक हैं जो अपने निर्धारित बोझ से 90 फीसदी ज्यादा वजन ढो रहे हैं और लगातार उन्हें यह करना पड़ रहा है। जिस तरह देश में कारों की बिक्री लगातार बढ़ती जा रही है, उसी तरह भारतीय ट्रेनों में यात्रियों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है। पिछले 15 सालों में 56 फीसदी से ज्यादा रेल यात्री बढ़े हैं। हमारी यात्री रेलगाड़ियों में हमेशा एक ऑस्ट्रेलिया सवार रहता है। ऐसा नहीं है कि हमारी ये सभी यात्राएं गैर जरूरी होती हों, लेकिन निश्चित रूप से भारतीय रेलवे का अपना आकलन है कि 40 फीसदी से ज्यादा यात्राएं गैर जरूरी होती हैं। अगर ये रूक जाएं तो न सिर्फ सफर के लिए टिकट का समस्या खत्म हो जाए बल्कि 50 फीसदी से ज्यादा रेल दुर्घटनाएं भी कम हो सकती हैं।

90 से 95 फीसदी रेलगाड़ियों में जगह नहीं
दुनिया में अकेला हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जिसमें रेल के यात्री 4 महीने पहले अपनी टिकट आरक्षित करवा लेते हैं, इसकी वजह यह है कि अभी भी 15 दिन के भीतर सफर करने के लिए आमतौर पर 90 से 95 फीसदी रेलगाड़ियों में जगह नहीं मिलती। यह तो पूरे साल का किस्सा है, लेकिन अप्रैल से जून तक का आलम यह होता है कि 2000 से ज्यादा विशेष ट्रेनें चलाने के बाद भी टिकटों की मांग रेलगाड़ियों में उपलब्ध सीटों से दोगुना होती है।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम किस कदर यात्राओं के दीवाने हैं। सवाल है हम इतनी ज्यादा यात्राएं क्यों करते हैं? इतनी ज्यादा से आशय गैर जरूरी यात्राओं से ही है, जो तकरीबन जरूरी यात्राओं के बराबर ही हैं। वास्तव में हम इतनी ज्यादा गैर जरूरी यात्राएं इसलिए करते हैं क्योंकि हमारे पास शायद टाइम ही टाइम है। साथ ही यह बात भी सही है कि हमें यात्राओं के दौरान होने वाली परेशानियां, यात्राएं खत्म होने के बाद याद नहीं रहतीं। दूसरे शब्दों में हम ऐसी परेशानियों के आदी हैं।
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