Caste Census – 10% संख्या वाले शीर्ष पदों पर काबिज
Caste Census: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जाति जनगणना के मुद्दे पर लगातार मुखर हैं। वह संसद से लेकर सड़क तक। हर मंच से जाति जनगणना की मांग उठा रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और राहुल गांधी ने वादा किया था कि उनकी सरकार आने पर जाति जनगणना कराई जाएगी। लेकिन भाजपा ने इसको लेकर जमकर दुष्प्रचार किया। भाजपा ने कहा कि कांग्रेस सत्ता में आएगी तो अमीरों की संपत्ति छीनकर गरीबों को दे देगी। कांग्रेस को इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। लेकिन कांग्रेस का मकसद साफ है। वह जाति जनगणना के जरिए समाज में फैली आर्थिक-सामाजिक असमानता का निदान करना चाहती है।

आंकड़ों का महत्व बखूबी समझते राजनीतिक दल
जाति जनगणना और राजनीति में आंकड़ों (डेटा) के खेल और महत्व को लेकर कांग्रेस डेटा एनालिसिस विभाग के चेयरमैन प्रवीण चक्रवर्ती का कहना है कि भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी राजनीतिक दल आंकड़ों (डेटा) का महत्व बखूबी समझते हैं। अगर डेटा सही तरीके से एकत्र कर पेश करते हैं तो वह बहुत ही उपयोगी होता है। चाहे जिस क्षेत्र से जुड़ा डेटा हो वह अगर ईमानदारी से तैयार किया गया है तो कारगर साबित होता है। यह बात आज की राजनीति में सभी दल और नेता अच्छी तरह समझते हैं। उन्होंने कहा कि आप किसी नेता से किसी विषय पर कुछ पूछे तो वह अपनी राय जाहिर करता है। लेकिन डेटा से किसी बारे में जानकारी लेनी है तो वह अगर अच्छे से एकत्र किया गया है तो सही तथ्य और तस्वीर पेश करता है। मतलब ये कि अगर ईमानदारी से डेटा तैयार किया गया है तो वह झूठ नही बोलता है। वह निष्पक्ष होता है।
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पिछले 10 साल से डेटा का दमन
चक्रवर्ती ने कहा कि डेटा सही या गलत की बात छोड़ दीजिए। पहली बात तो ये है कि सरकार की ओर से डेटा मिल ही नहीं रहा है। डेटा का महत्व तभी है जब वह ऑब्जेक्टिव (उद्देश्य परक) होता है। लेकिन जब उसको आप सब्जेक्टिव (व्यक्तिपरक) बना देते हैं तो वह डेटा नहीं रह जाता है। उसका महत्व खत्म हो जाता है। पिछले 10 साल से डेटा का दमन हो रहा है। डेटा समय से और सही तरीके से जारी नहीं हो रहा है। डेटा का राजनीतिकरण हो गया है। उसको व्यक्ति परक बना दिया गया है। आज किसी भी तरह का डेटा जारी करने से पहले मंत्रालय तय करता है कि उसमें क्या होना चाहिए। बतौर डेटा साइंटिस्ट मैं यही कहूंगा कि गलत डेटा खतरनाक साबित हो सकता है। गलत डेटा पेश करने से बेहतर है कि उसे जारी ही न किया जाए। यह भ्रामक होता है और देश के लिए नुकसानदायक होता है। डेटा में राजनीति नही करनी चाहिए।

70 साल के दौरान सबसे ज्यादा बेरोजगारी
चक्रवर्ती ने कहा कि मेरा मानना है कि जीडीपी का महत्व कम हो गया है। भले यह 8.2 हो या उससे ज्यादा हो। दूसरे देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा जीडीपी हो। यह मायने नही रखता है। भारत ही नही दुनिया भर में अर्थव्यवस्था के आंकड़ों पर विश्वास नही रह गया है। खासतौर पर चीन के आर्थिक आंकड़ों पर दुनिया बिल्कुल विश्वास नही करती है। भारत को भी चीन नहीं बनना चाहिए। जीडीपी के आंकड़ों का महत्व उस वक्त है। जब आम जनता को इसका लाभ मिल रहा हो। वेतन ज्यादा मिल रहा हो। आमदनी बढ़ गई हो। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ गए हों।
तब यह महत्वपूर्ण है। आज देश में 70 साल के दौरान सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। ऐसे में जीडीपी के ज्यादा होने का क्या अर्थ है।90 प्रतिशत एससी-एसटी,ओबीसी समुदाय के लोगसरकार का दावा है कि 2014 से लेकर अब तक उसने 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला है इस पर चक्रवर्ती का कहना कि सरकार इसकी सच्चाई बखूबी जानती है। मोदी सरकार में मनरेगा में दैनिक मजदूरी करने वाले लोगों की संख्या उच्चतम स्तर पर है। सरकार को बताना चाहिए कि मनरेगा में काम करने वाले लोगों की संख्या क्यों बढ़ रही है। जब उसने बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी का कहना है कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा तकरीबन 90 प्रतिशत एससी-एसटी,ओबीसी समुदाय के लोग हैं।
इसमें अल्पसंख्यक और आर्थिक रुप से कमजोर अगड़ी जातियों के लोग भी शामिल हैं। लेकिन नौकरियों, उद्योग जगत के शीर्ष पदों पर वह लोग काबिज हैं। जिनकी संख्या महज 10 प्रतिशत है। इसका मतलब ये है कि हमारे सिस्टम में गलती है। यह जाति जनगणना से पता चलेगा। समस्या कितनी गहरी है। 10 प्रतिशत की संख्या वाले लोग ही हर क्षेत्र में बड़े पदों पर क्यों काबिज हैं। यह जाति जनगणना से पता चलेगा। राहुल गांधी उसी सिस्टम को ठीक करने की बात कर रहे हैं और इसके लिए जाति जनगणना जरूरी है। जाति जनगणना से पता चलेगा कि कहां और क्या समस्या है। उसके बाद उसका समाधान निकालना आसान होगा। सवाल ये होता है कि दुनिया में हर देश में एक जाति या पहचान के लिए जनगणना होती है। लेकिन मोदी सरकार क्यों डर रही है। वह जाति जनगणना क्यों नहीं कर रही है।
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