Darjeeling Tea: काली, हरी तथा सफेद रंगों में पाई जाती है
Darjeeling Tea: दार्जिलिंग का क्लाइमेट और उसकी भौगोलिक स्थिति पूरी दुनिया में खास है। इसीलिए वर्ष 1840 में अंग्रेजों ने जब यहां चाय का बागान लगाया तो उस बागान की चाय का स्वाद पूरी दुनिया से अलग और बेहद आकर्षक साबित हुआ। तब से लेकर आजतक दार्जिलिंग चाय अपनी खास सुगंध और स्वाद के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है। पहले यह दुनिया सीमित थी और निजी अनुभवों के दायरे तक ही फल-फूल रही थी लेकिन वर्ष 2003 में जब देश के पहले जीआई टैग के रूप में यह श्रेय दार्जिलिंग चाय को मिला तब से न सिर्फ देश बल्कि पूरी दुनिया में दार्जिलिंग चाय की मांग हजार फीसदी से भी ज्यादा बढ़ चुकी है।
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में उगायी जाने वाली यह चाय सिर्फ दार्जिलिंग को ही दुनियाभर में मशहूर नहीं किया बल्कि आज यह इसकी अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा है। दार्जिलिंग चाय काली, हरी तथा सफेद रंगों में उपलब्ध है और चाय की दुनिया में विश्व प्रसिद्ध है। दरअसल यह जिस विशिष्ट परिस्थिति में पैदा होती है इसके स्वाद में उस परिस्थिति का विशेष योगदान है।

सबसे पहले जीआई टैग दिया गया
दार्जिलिंग चाय जिस ऊंचाई पर पैदा होती है उतनी ऊंचाई पर कोई दूसरी चाय नहीं पैदा होती। जब देश के विभिन्न उत्पादों को जीआई टैग देने की बात आयी तो सबसे पहले दार्जिलिंग चाय को ही यह टैग दिया गया क्योंकि इसका किसी के साथ कोई मुकाबला ही नहीं था। दार्जिलिंग टी के बाद दूसरे नंबर पर देश में जीआई टैग महाबलेश्वर की स्ट्रोबेरी को मिला।
इसके बाद जयपुर की ब्लू पोट्री, बनारस की साड़ी, इलाहाबाद के अमरूद आदि उत्पादों को एक के बाद एक जीआई टैग की झड़ी लग गई। दार्जिलिंग की चाय ने भी भारतीय उत्पादों के दुनियाभर में महत्वपूर्ण होने में योगदान दिया है और आज इस चलन का ट्रेंड यह बन चुका है कि जिस उत्पाद को जीआई टैग मिल जाता है, उसके वारे-न्यारे हो जाते हैं।
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दशहरी आम, महोबा के पान, दार्जिलिंग की चाय को मिली पहचान
विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के प्रयासों से भारतीय संसद ने दिसंबर 1999 में इस सम्बन्ध में एक अधिनियम पारित किया जो 2003 में जाकर जीआई क़ानून में बदल गया। किसी उत्पाद को जीआई टैग मिलने से बहुत फायदा होता है। जब से लखनऊ के दशहरी आम, महोबा के पान, दार्जिलिंग की चाय, बनारस की ठंडाई, कुर्ग के संतरा, नंजनगुड के केले, मालाबार की कालीमिर्च, इलाहाबाद के पेड़े यानी अमरूद, कुर्ग की हरी इलायची, गुच्ची मशरूम, अल्फांसो आम, हिमाचल के कालाजीरा, ओडिशा के कंदमाल की हल्दी जैसे उत्पादों को जीआई टैग मिला है तब से देश के कोने-कोने में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में इनकी मांग बढ़ गई है।
साल 2003 के बाद से अब तक जिन कृषि उत्पादों को जीआई टैग हासिल हुआ है विदेशों में उनकी मांग 10-20 फीसदी नहीं बल्कि औसतन 400 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ गई है।

इलाहाबाद का अमरूद और हिमाचल का काला जीरा
जीआई टैग के बाद पूरी दुनिया में भारतीय कृषि उत्पादों को एक खास पहचान मिली है। पहले सिर्फ वनस्पतिशास्त्री ही सहजता से इस बात को मानते थे कि भारत विविधतापूर्ण उत्पादों का गढ़ है लेकिन आज दुनियाभर में खानपान के शौकीनों से लेकर शोधार्थियों तक को जीआई के कारण यह पता है। जब से देश के विभिन्न क्षेत्रों में सदियों से मौजूद खास उत्पादों को जीआई टैग हासिल हुआ है तब से ऐसे कृषि उत्पादों की मांग पूरी दुनिया में कई सौ फीसदी बढ़ गई है।
आज इलाहाबाद के अमरूद और हिमाचल के काला जीरा की मांग पूरी दुनिया में है। जीआई टैग हासिल करने के बाद इन उत्पादों की मांग बहुत ज्यादा और बहुत तेजी से बढ़ी है। कृषि उत्पादों को सचमुच इस छोटे से टैग ने बहुत बड़ी ताकत प्रदान कर दी है। आज दुनिया के किसी भी क्षेत्र में पैदा होने वाले किसी भी खास उत्पाद की लोकप्रियता अब से पहले के किसी भी दौर के मुकाबले बहुत ज्यादा है।
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