Dayanand Saraswati: 1882 में गाय को बचाने हिन्दुओं को एकजुट करना था मकसद
Dayanand Saraswati: साल 1882 में जब दयानंद सरस्वती ने गोरक्षिणी सभा की स्थापना की तभी से भारत में गोरक्षा आंदोलन शुरू हुआ। उनका मकसद था गाय को बचाने के नाम पर हिन्दुओं को एकजुट करना। जब 1857 में भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई उसमें हिन्दू-मुसलमान साथ मिलकर लड़े थे जिस एकता को अंग्रेज तोड़ना चाहते थे। जब हिन्दू-मुस्लिम अलग होने लगे तो दयानन्द सरस्वती ने गाय को मसला बनाया और 1882 के कुछ साल बाद आजमगढ़ और बॉम्बे में सांप्रदायिक दंगे हुए जिसमें कई लोग मारे गए। ये आंदोलन बहुत ज्यादा दिनों तक तो नहीं चला लेकिन बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 1925 में अपनी स्थापना के बाद इसे आगे बढ़ाया। हालांकि जवाहरलाल नेहरू या इंदिरा गांधी की सरकारों के दौर में गोरक्षा का मसला बहुत बड़ा नहीं रहा।

विनोबा भावे का भी नाम रहा
भारत में गाय को गोमाता बनाने वाले लोगों में एक प्रमुख नाम विनोबा भावे का भी रहा है। उन्होंने साल 1966 में पूरे भारत में गोहत्या के खिलाफ एक राष्ट्रीय कानून बनवाने की कोशिश की थी। तमाम साधु-संतों को जमा किया और अपनी मांग लेकर विरोध-प्रदर्शन करते हुए संसद की तरफ बढ़े जिसका पुलिस ने विरोध किया। पुलिस के साथ झड़प हुई और इसमें कुछ लोग मारे भी गए थे।
तब मोरारजी देसाई ने आश्वासन दिया था कि ऐसे कानून पर विचार होगा, हालांकि बाद में ये ठंडे बस्ते में चला गया। 1998 में जब केंद्र में पहली बार एनडीए की सरकार बनी तो गोरक्षा की मांग तेजी से उठी थी। उसी के बाद कुछ राज्यों ने गोमूत्र, गोबर और गाय से जुडी तमाम चीजों पर रिसर्च करने का सिलसिला शुरू किया था। इस सिलसिले में ब्रेक तभी लगा जब 2004 में यूपीए सरकार बनी। अब जब केंद्र में फिर से भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार आई है तो गोहत्या बैन करने वालों को बल मिला गया है।
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30 नस्लें मौजूद हैं गाय की देश में
भारत में गाय की करीब 30 नस्लें मौजूद हैं। भारतीय गाय की कई प्रमुख नस्लें हैं जिसमें रेड सिन्धी, साहीवाल, गिर, देवनी, थरपारकर आदि नस्लें दुधारू हैं। लोकोपयोगी दृष्टि में भारतीय गाय को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।पहले वर्ग में वे गाएं आती हैं जो दूध तो खूब देती हैं, लेकिन उनकी संतति कृषि काम हेतु अनुपयोगी होती है। इस प्रकार की गाएं दुधप्रधान एकांगी नस्ल की हैं।
दूसरी गाएं वे हैं जो दूध कम देती हैं किन्तु उनके बछड़े कृषि और गाड़ी खींचने के काम आते हैं। इन्हें वत्सप्रधान एकांगी नस्ल कहते हैं। कुछ गाएं दूध भी प्रचुर देती हैं और उनके बछड़े भी कर्मठ होते हैं। ऐसी गायों को सर्वांगी नस्ल की गाय कहते हैं। साल 2009 में पूरी दुनिया में गायों की कुल संख्या करीब 13 खराब थी। इनमें सबसे ज्यादा भारत में 28,1700,000 थी। भारत के बाद दूसरे नंबर पर ब्राजील है जहां 187,087,000 गायें साल 2009 में थी। तीसरे नंबर पर चीन 139,721,000 गायों के साथ जबकि चौथे नंबर पर अमेरिका 96,669,000 गायों के साथ था। यूरोपीय संघ के तमाम देशों में गाय बहुतायत में पाली जाती है। यूरोपीय संघ में कुल 87,650,000 गायें हैं।

वैदिक काल से ही गाय का विशेष महत्त्व
गाय एक महत्त्वपूर्ण पालतू जानवर है जो संसार में प्रायः सर्वत्र पाई जाती है। इससे उत्तम किस्म का दूध प्राप्त होता है। भारत में हिन्दू, गाय को ‘माता’ (गौ माता) कहते हैं। इसके बछड़े पहले बड़े होकर गाड़ी खींचते थे एवं खेतों की जुताई करते थे। लेकिन अब करीब-करीब बैलों से खेती किया जाना खत्म हो चुका है। भारत में वैदिक काल से ही गाय का विशेष महत्त्व रहा है। आरंभ में आदान-प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में भी गाय का उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गोसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या को महापातक पापों में गिना जाता है।
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