Digital Arrest – गृह मंत्रालय ने साइबर अरेस्ट और ब्लैकमेलिंग को लेकर अलर्ट
Digital Arrest: केंद्र सरकार द्वारा 5000 ‘साइबर कमांडो’ के गठन की दिशा में बड़ी घोषणा हुई है। यह कदम साइबर फ्राड का सफाई से इलाज कर पाने में सक्षम होगा। गृह मंत्रालय के अनुसार यह एक संगठित ऑनलाइन आर्थिक अपराध है और संभवत: इसे सीमा पार दुबई, पाकिस्तान में बैठे अपराधियों द्वारा चलाया जा रहा है। डेटा और सिस्टम में अनधिकृत घुसपैठ, डाटा चोरी, उसमें मनोवांछित या शरारतपूर्ण बदलाव, घोटाले या व्यवधान, इसके जरिए इंफॉरमेशन वार छेड़ना, फिशिंग घोटाले और स्पैम वगैरह के काफी मामले पहले से ही आ रहे थे, इधर कुछ महीनों से एनसीबी, सीबीआई, आरबीआई और कानून प्रवर्तन अधिकारी के साथ साथ प्रदेश पुलिस के जवान बनकर लोगों को धमकाने और डिजिटल अरेस्ट के जरिए ठगने के भी बहुतेरे मामले सामने आने के बाद गृह मंत्रालय ने साइबर अरेस्ट और ब्लैकमेलिंग को लेकर अलर्ट और चेतावनी जारी की।
गृह मंत्रालय की इस कार्यवाही के बावजूद ब्लैकमेल और डिजिटल अरेस्ट के मामले तेजी से बढ़ने लगे तो उसने हजार से ज्यादा स्काइप आईडी को ब्लॉक किया जिसके जरिये अपराधी सरकारी अफसर बनकर ठगी करते थे साथ ही सरकार ने टेलिकॉम कंपनियों को निर्देश देकर 28,200 मोबाइलों को ब्लॉक और तकरीबन दो लाख सिम कार्ड्स को बंद या रि-वेरीफाई करने की कार्रवाई की। लेकिन बेहतर होने के बावजूद ये कदम नाकाफी साबित हुए। अब गृह मंत्रालय बढ़ते डिजिटल अरेस्ट और ऑनलाइन फ्रॉड के मामलों की पहचान, जांच और उनसे निपटने के लिए दूसरे मंत्रालयों, उनसे संबद्ध एजेंसियों, आरबीआई और दूसरे संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहा है जो फिलहाल सही दिशा लग रही है।

भारतीयों ने 7,489 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान उठाया
देश में ई-कॉमर्स के परिचय के बाद से डिजिटल लेन-देन लगातार बढ़ा है। लेकिन इसका एक साइड इफेक्ट यह हुआ है कि हर गुजरते दिन के साथ वित्तीय धोखाधड़ी का खतरा आम व्यक्तियों के लिए ही नहीं व्यवसायों के लिए भी आम हो गया है। गत वर्ष भारतीयों ने साइबर धोखाधड़ी के कारण 7,489 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान उठाया। इस साल शुरुआती 4 महीने में ही तकरीबन 8 लाख साइबर फ्राड के मामले हुए, जिसमें लोगों के 1750 करोड़ रुपए ठग लिए गये। साइबर ठगी का एक नया तरीका सालभर पहले सामने आया और सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद वह काबू में नहीं आ रहा है बल्कि दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है। यह खतरनाक और चिंताजनक साइबर खतरा है ‘डिजिटल अरेस्ट’।
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झूठ बोलकर भयग्रस्त कर देते हैं
डिजिटल अरेस्ट का मतलब है बिल्कुल वास्तविक लगने वाले ईडी, सीबीआई, पुलिस अधिकारी बनकर अथवा बनावटी थाने, कार्यालय से फोन करके किसी को झूठ बोलकर भयग्रस्त कर देते हैं। इस तरह के साइबर क्रिमनल्स लोगों को फोन करके उनके किसी करीबी के दुर्घटनाग्रस्त, तस्करी या ड्रग के मामले में फंसने या फिर गिरफ्तार होने की बात कहकर डरा देते हैं और पुलिस ईडी वगैरह की गिरफ्तारी का भय दिखाकर घर से निकलने नहीं देते, भयादोहन कर धन वसूलते हैं। बिना हथकड़ी बेड़ी, कागज पत्र के लोग घर में कैदी बन फिरौती के बतौर भारी रकम चुकाते हैं और बाद में पता चलता है कि वे दरअसल ठगी के शिकार हुए।

4 महीने में 400 करोड़ से ज्यादा गंवा दिये
ऐसे मामलों में देश भर से कई पीड़ितों ने विगत 4 महीने में 400 करोड़ से ज्यादा गंवा दिये। डिजिटल अरेस्ट पहला मामला पिछले साल दिसंबर में दर्ज किया गया था, जहां उत्तर प्रदेश के एक व्यक्ति को मनगढ़ंत मनी-लॉ्ड्रिरंग मामले में फंसाया गया। इसके बाद तो इस तरह की साइबर ठगी में तेजी आ गई। इसमें जो शिकार बनते जा रहे हैं उनमें डॉक्टर, सॉफ्टवेयर, सेना के बड़े अधिकारी, आईआईटी प्रोफेसर जैसे ढेरों उच्च शिक्षित, जागरूक लोग शामिल हैं। साइबर अपराधियों ने लखनऊ की एक न्यूरोलॉजिस्ट को 7 दिन डिजिटल अरेस्ट रखकर उसके खातों से तकरीबन तीन करोड़ का लेन-देन किया तो एक अवकाश प्राप्त मेजर जनरल 5 दिन ‘डिजिटल अरेस्ट’ बने रहे, दो करोड़ की फिरौती के बाद उन्हें पता चला कि ठगे गए। राजस्थान के झुंझुनूं में बिट्स पिलानी की प्रोफेसर को भी इसी तरह डिजिटल अरेस्ट करके साढ़े आठ करोड़ से ज्यादा वसूले। ये महज कुछ मामले हैं। यूपी, मप्र, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा समेत देश के तमाम राज्यों में ऐसे मामले आए दिन सामने आ रहे हैं।

तकनीकी सहायता दे रहा है मंत्रालय
मंत्रालय इसके लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के संबंधित अधिकारियों को तकनीकी सहायता दे रहा है। भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र की स्थापना इसीलिए हुई थी कि वह प्रमुख बैंकों, वित्तीय मध्यस्थों, भुगतान एग्रीगेटर्स, दूरसंचार सेवा प्रदाताओं, आईटी मध्यस्थों और राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमताओं को बढ़ाए साथ ही साइबर अपराध से निपटने वाले विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय में सुधार लाए। ये हितधारक मिलकर काम करेंगे तो फर्क साफ दिखेगा।
‘साइबर कमांडो’ कार्यक्रम देश में साइबर सुरक्षा की दिशा में एक समझदारी भरा कदम है। राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय पुलिस संगठनों से चुनिंदा जवानों को लेकर उन्हें आईआईटी कानपुर, मद्रास, कोट्टायम और नया रायपुर जैसे संस्थान द्वारा कठोर प्रशिक्षण प्रदान करने के बाद इनकी विशेष शाखा स्थापित कर साइबर अरेस्ट जैसे अपराधों के खतरों का मुकाबला करने के लिए प्रशिक्षित ‘साइबर कमांडो’ का उपयोग करना अच्छी योजना है।
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बुनियादी ढांचे को सुरक्षित करने पर ध्यान
डिजिटल फोरेंसिक से लेकर साइबर सुरक्षा के उपायों के बारे में सब कुछ जानने वाले ये साइबर कमांडो जो आधुनिक साइबर हमलों की जटिलताओं से निपटने और भारत के डिजिटल बुनियादी ढांचे को सुरक्षित करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षत होंगे डिजिटल स्पेस को सुरक्षित करने में राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय एजेंसियों की बेहतर सहायता करेंगे। डिजिटल और साइबर संसार में देश और देशवासियों की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए ऐसे दूरदर्शी और सुविचारिक कदम उठाने और अपने डिजिटल शस्त्रागार को नए हथियारों से लैस करना बहुत आवश्यक है ताकि सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र साइबर अपराधियों से सुरक्षित हो।
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