Emergency in India: ऑस्ट्रेलिया से शाह आयोग की रिपोर्ट मंगाने की मांग
Emergency in India: लाइब्रेरी से भारत मंगवाकर इसे सार्वजनिक करने की मांग उठाई। उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान उठाई गई इस मांग से सभापति जगदीप धनखड़ भी सहमत दिखे और उन्होंने सरकार से कहा कि उसे इसकी प्रामाणिक रिपोर्ट होने की संभावना की जांच करनी चाहिए और जनता के लाभ के लिए इसे सदन के पटल पर रखना चाहिए। सदन में मौजूद सत्तारूढ़ दल के सदस्यों ने मेज थपथपाकर सभापति के इस आदेश का स्वागत किया।

48,000 कागजात की पड़ताल
झारखंड से भाजपा के सदस्य दीपक प्रकाश ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि आपातकाल के दौरान हुई सभी ज्यादतियों की जांच के लिए एक जांच आयोग का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे सी शाह ने की थी। उन्होंने कहा कि साल 1978 में नियुक्त जांच आयोग की कुल 100 बैठकें हुई थीं और इनमें 48,000 कागजात की पड़ताल की गई थी। अंतिम रिपोर्ट छह अगस्त 1978 को प्रस्तुत की गई थी।
यह रिपोर्ट तीन खंडों में प्रकाशित की गई थी, जो कुल 525 पृष्ठों की थी। प्रकाश ने आरोप लगाया कि 1980 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पुन: कांग्रेस की सरकार बनने के बाद ‘अपने काले कारनामों’ को छुपाने के लिए आयोग की रिपोर्ट को नष्ट कर दिया गया और यहां तक कि विदेशों में भी मौजूद प्रतियों को खत्म कर दिया गया। उन्होंने कहा कि लेकिन शाह आयोग की एक रिपोर्ट नेशनल लाइब्रेरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया में मौजूद है। यह रिपोर्ट कांग्रेस के द्वारा लगाए गए आपातकाल की बर्बरता और तानाशाही…. संविधान और लोकतंत्र के हत्या के रहस्यों को खोलेगी।

लोक महत्व का गंभीर विषय
दीपक प्रकाश ने कहा कि मैं सरकार से मांग करता हूं कि शाह आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए ताकि कांग्रेस का काला और विकृत चेहरा समाज के सामने आ सके। प्रकाश की ओर से यह मांग उठाए जाने के तत्काल बाद सभापति धनखड़ ने कहा कि सदस्य ने बहुत ही लोक महत्व का गंभीर विषय उठाया है। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की ‘काली अवधि’ की जांच के लिए शाह आयोग बना था और यह रिपोर्ट 1975 में थोपे गए आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों से संबंधित है।
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सदन के पटल पर रखना चाहिए
धनखड़ ने कहा कि सरकार को इसकी प्रामाणिक रिपोर्ट होने की संभावना की जांच करनी चाहिए और इसे सदस्यों के लाभ के लिए सदन के पटल पर रखना चाहिए और बड़े पैमाने पर जनता के लाभ के लिए भी। आपातकाल 25 जून 1975 को घोषित किया गया था, जो 21 मार्च 1977 को वापस ले लिया गया था। उस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। इसके बाद हुए अगले आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी हार गयी और जनता पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार सत्ता में आयी। मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार ने आपातकाल में हुई सभी ज्यादतियों की जांच के लिए शाह आयोग गठित किया था।
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