Fashion Impact On Climate: दुनिया के कार्बन बजट का 26% हिस्सा लेगा कपड़ा उद्योग
Fashion Impact On Climate: तेजी से बदलते फैशन ने 1990 के दशक से ही लोगों को नवीनतम फैशन के रुझान वाले कपड़े खरीदने में सक्षम बनाया है। लेकिन इसकी वजह से भारी मात्रा में कपड़ों का उत्पादन किया जा रहा है, बेचा जा रहा है, और जल्द ही उन्हें फेंक दिया जा रहा है, जो वैश्विक जलवायु के लिये संकट पैदा कर रहा है। कम से कम अब फैशन उद्योग को जागना चाहिए और इस दुष्चक्र से मुक्त होना चाहिए,लेकिन वह विपरीत दिशा में जा रहा है। हम तेजी से बदल रहे फैशन से अति शीघ्रता से बदल रहे फैशन की दिशा में गर्त की ओर जा रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों की खपत और उत्पादित अपशिष्ट की मात्रा बहुत अधिक है। अति शीघ्रता से बदलते फैशन को और तेज उत्पादन चक्र, पलक झपकते ही छोड़ देने के रुझान और खराब श्रम प्रथाओं द्वारा चिह्नित किया जाता है।

नीति निर्माताओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका
शीन, बूहू और साइडर जैसे ब्रांड मौसमी संग्रह की अवधारणा से मुक्त हैं। इसके बजाय वे खतरनाक गति और ‘बैलेटकोर, बार्बीकोर’ और यहां तक कि ‘मरमेडकोर’ जैसे स्व-उत्पन्न माइक्रोट्रेंड पर परिधान का उत्पादन कर रहे हैं। साथ ही, कपड़ों की आपूर्ति शृंखलाओं में पारदर्शिता या जवाबदेही सीमित है। कपड़ों के अत्यधिक उत्पादन और उपभोग को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
बदलाव के बिना, 2050 तक भूमंडलीय तापन को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कपड़ा उद्योग दुनिया के कार्बन बजट का 26 प्रतिशत हिस्सा लेगा। फैशन उद्योग को अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। अधिक जिम्मेदार और ‘सर्कुलर’ फैशन अर्थव्यवस्था की ओर आवश्यक बदलाव को सक्षम करने में नीति निर्माताओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। साथ ही उपभोक्ताओं की शक्ति को न भूलें।
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सस्ते कपड़े किस कीमत पर
एक बार यह सोचा गया था कि महामारी एक अधिक टिकाऊ फैशन उद्योग बनाने में मदद करेगी। दुर्भाग्य से हकीकत में उद्योग बेहतर नहीं, बल्कि बदतर होता जा रहा है। सबसे प्रसिद्ध, ब्रांड शीन की स्थापना 2008 में हुई थी। 2010 के अंत में अधिकांश अल्ट्रा-फास्ट फैशन ब्रांड उभरे। ये ऑनलाइन, सीधे ग्राहक तक पहुंचने वाले ब्रांड लॉकडाउन के दौरान सबसे अधिक लोकप्रिय हुए और इससे शीन ने 2020 में दुनिया के सबसे लोकप्रिय ब्रांड का खिताब हासिल किया। गैप जैसे स्थापित ब्रांड प्रति वर्ष 12,000 नए उत्पाद पेश करते हैं और एच एंड एम 25,000 उत्पाद। लेकिन शीन ने उतने ही समय में 13 लाख उत्पादों को सूचीबद्ध कर सभी को पीछे छोड़ दिया।

यह संभव ही कैसे हुआ?
अति शीघ्रता से बदलने वाला फैशन मॉडल अतृप्त उपभोक्ता मांग पैदा करने के लिए डेटा और लत लगाने वाले सोशल मीडिया मार्केटिंग का इस्तेमाल करता है। लेकिन शीन की अविश्वसनीय रूप से कम कीमतें (इसकी वेबसाइट पर पांच ऑस्ट्रेलियाई डॉलर कीमत की हजारों वस्तुएं हैं)
मानवीय लागत पर आती हैं। कंपनी की अपनी 2021 स्थिरता और सामाजिक प्रभाव रिपोर्ट (बाद में साइट से हटा दी गई) में पाया गया कि उसके केवल दो प्रतिशत कारखाने और गोदाम ही अपने श्रमिक सुरक्षा मानकों को पूरा करते हैं, बाकी को सुधारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है। ब्रांड ने कंपनी में ही काम करने वाले डिजाइनर को छोड़ दिया है। इसके बजाय यह स्वतंत्र आपूर्तिकर्ताओं के साथ काम करती है, जो दो सप्ताह में एक परिधान डिजाइन कर सकते हैं और उसका उत्पादन कर सकते हैं।
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टिकाऊपन की ओर निर्बाध बढ़ना
ऑस्ट्रेलियाई फैशन काउंसिल सीमलेस नामक एक राष्ट्रीय उत्पाद प्रबंधन योजना का नेतृत्व कर रही है, जो 2030 तक फैशन उद्योग को बदलने का वादा करती है। इसका उद्देश्य फैशन को ‘सर्कुलर’ अर्थव्यवस्था में लाना है। अंततः इसका मतलब शून्य अपशिष्ट है, लेकिन इस बीच कच्चे माल को डिजाइन करके और अपशिष्ट को कम करके यथासंभव लंबे समय तक आपूर्ति श्रृंखला में रखा जाएगा।
सदस्य अपने उत्पादित या आयातित प्रत्येक कपड़े की वस्तु के लिए चार प्रतिशत लेवी देंगे। यह धनराशि कपड़ा संग्रह, अनुसंधान, पुनर्चक्रण परियोजनाओं और शिक्षा अभियानों में इस्तेमाल की जाती है। बिग डब्ल्यू, डेविड जोन्स, लोर्ना जेन, रिप कर्ल, आर.एम. विलियम्स, द आइकॉनिक, सुसान ग्रुप और कॉटन ऑन सीमलेस फाउंडेशन के सदस्य हैं। प्रत्येक ने योजना के विकास में एक लाख ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का योगदान दिया है।

फैशन की जटिलताओं से निपटना जरूरी
कुछ ब्रांड सक्रिय रूप से अधिक टिकाऊ भविष्य की दिशा में काम कर रहे हैं। लेकिन टेमू जैसे अन्य लोग शीन का अनुकरण कर रहे हैं और उनके कारोबार की शैली को अपनाना चाहते हैं। अधिक टिकाऊ और जिम्मेदार फैशन उद्योग में परिवर्तन के लिए अति शीघ्रता से बदलते फैशन की अधिक समझ, तत्काल प्रणालीगत परिवर्तन और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता होती है। इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल फ्यूचर्स, का उद्देश्य अति शीघ्रता से बदलते फैशन की जटिलताओं से निपटना है। इसमें यह भी शामिल है कि कैसे अति शीघ्रता से बदलते फैशन कपड़ा श्रमिकों की आजीविका को प्रभावित कर रहा है,
यह कैसे कपड़ा कचरे को बढ़ावा दे रहा है और ‘सर्कुलर’ अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को अपनाने के लिए उद्योग के संघर्ष को रेखांकित करता है। हम इस बात की भी जांच कर रहे हैं कि उपभोक्ता व्यवहार को कैसे नया आकार दिया जाए, सोशल मीडिया से प्रेरित होकर विशेष रूप से ‘जेन-जेड’ (1995 से 2010 के बीच जन्मे) उपभोक्ताओं के बीच अधिक टिकाऊ उपभोग की ओर रुख किया जाए। अंततः, हमारी सामूहिक पसंद में अपार शक्ति होती है। अपनी फैशन आदतों के परिणामों को समझकर और बदलाव की वकालत करके, हम सभी अधिक टिकाऊ और न्यायपूर्ण फैशन उद्योग के लिए उत्प्रेरक बन सकते हैं।
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