Forest Land Encroached: वन्य पशुओं का स्वच्छंद विचरण, शिकार और जीवनयापन हुआ मुश्किल
Forest Land Encroached: देश में वनभूमि माफियों द्वारा बड़े पैमाने पर वनभूमि पर कब्जा किया जा रहा है। ये मसला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में भी उठाया जा चुका है। सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि देश में दिल्ली से करीब पांच गुणा अधिक वन भूमि पर अधिक्रमण किया गया है। रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि देश में कुल 7,75,288 वर्ग किलोमीटर वन भूमि में से 7,506.33 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र पर अतिक्रमण हुआ है। हालांकि अधिकारियों ने इस मामले पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। इस अतिक्रमित वन क्षेत्र का करीब 56 फीसदी हिस्सा असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर में है।
असम में यह आंकड़ा 13% है
वहीं एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक देश में लगभग 7,40,973 हेक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है, उसमें भी आधे से ज्यादा कब्जा अकेले असम में है। असम में यह आंकड़ा 13 फीसद है। यह जानकारी तमाम राज्य सरकारों के आंकड़ों से निकली है। इसमें उद्योगों, अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों सहित निजी संस्थाओं द्वारा वन भूमि पर अतिक्रमण का आंकड़ा शामिल नहीं है। अगर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त जानकारियों का विश्लेषण करें, तो देशभर में कई राज्यों में बड़े पैमाने पर वनभूमि माफिया के कब्जे में है। वहीं लक्षद्वीप, पुदुचेरी और गोवा का दावा है कि उनके यहां किसी भी वन भूमि पर अतिक्रमण नहीं है।

लकड़ियों की सौदेबाजी
असम में भारी अतिक्रमण की वजह वहां लकड़ी माफिया और अरुणाचल प्रदेश के लोगों के बीच लकड़ियों की सौदेबाजी है, जिसमें तस्करों ने बड़ी तादाद में पेड़ गिराए, जिससे वनभूमि समतल हुई और वहां इंसानी बस्तियां बन गई। कमोबेश यही स्थिति पूरे देश के जंगलों की है। इसका अलग आंकड़ा नहीं है। इसके कारण क्या शहर, क्या गांव, हर कहीं खौफनाक जंगली जानवरों की घुसपैठ बढ़ी है। इसके पीछे की एकमात्र सच्चाई यही है कि मानव बस्तियों के ताबड़तोड़ निर्माण या विकास के चलते बहुत बड़े वनक्षेत्र अब इंसानी रिहाइश बन गए हैं, जो कभी वन्य पशुओं के स्वच्छंद विचरण, शिकार और जीवनयापन की जगह थे। हालांकि , वर्ष 2019 के पिछले आकलन के बाद से देश में वन और वृक्षों के आवरण क्षेत्र में 2,261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है।
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भारत का कुल वन और वृक्षावरण क्षेत्र 80.9 मिलियन हेक्टेयर था, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62% था। रिपोर्ट में कहा गया है कि 17 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का 33% से अधिक क्षेत्र वनों से आच्छादित है। सबसे बड़ा वन आवरण क्षेत्र मध्य प्रदेश में था, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र का स्थान था। अपने कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन आवरण के मामले में शीर्ष पाँच राज्य मिज़ोरम (84.53%), अरुणाचल प्रदेश (79.33%), मेघालय (76%), मणिपुर (74.34%) और नगालैंड (73.90%) थे।

वन संसाधनों को प्राप्त करने संघर्ष
भारत की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, पारिस्थितिक स्थिरता बनाए रखने हेतु वन के तहत कुल भौगोलिक क्षेत्र का आदर्श प्रतिशत कम-से-कम 33% होना चाहिये। हालाँकि यह वर्तमान में देश की केवल 24.62% भूमि को कवर करता है और तेज़ी से संकुचित हो रहा है। अक्सर स्थानीय समुदायों के हितों और व्यावसायिक हितों के मध्य संघर्ष होता है, जैसे कि फार्मास्युटिकल उद्योग या लकड़ी उद्योग। इससे सामाजिक तनाव और यहाँ तक कि हिंसा भी हो सकती है, क्योंकि विभिन्न समूह वन संसाधनों को प्राप्त करने और उनका उपयोग करने हेतु संघर्ष करते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न समस्याएँ, जिसमें कीट प्रकोप, जलवायु के कारण होने वाले प्रवासन, जंगल की आग और तूफान शामिल हैं, जो वन उत्पादकता को कम करते हैं तथा प्रजातियों के वितरण में बदलाव लाते हैं। यह अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत में 45-64% वन जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के प्रभावों का सामना करेंगे।
राज्य वनभूमि अतिक्रमण (हेक्टेयर में)
असम 377,533
मध्यप्रदेश 54,173
अरुणाचल प्रदेश 53,450
आंध्र प्रदेश 34,358
ओडिशा 33,154
दिल्ली 384
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