Geographical Indication: कारोबार के नजरिये से ऐसे उत्पादों का भविष्य चमकदार
Geographical Indication: जीआई टैग अब तक पूरे देश के करीब 300 कृषि तथा कृषि के साथ जुड़े क्षेत्रों के उत्पादों को हासिल हुए हैं। अनुमान है कि इन कृषि उत्पादों की बदौलत इनके उत्पादक किसान तो मालामाल हुए ही हैं, इन उत्पादों को इनसे अपरिचित देश-विदेश के बाजारों से शानदार प्रस्ताव मिल रहे हैं और जिस भारत को पहले चीन के साथ दुनिया का सबसे विविधतापूर्ण भोजनों वाला देश माना जाता था,
अब बहुत ही जल्द दुनिया में सबसे ज्यादा जीआई टैग हासिल करने वाले देश के रूप में भी हमें जाना जाएगा। जिस कृषि की तरफ नई युवा पीढ़ी नजर उठाकर भी नहीं देखती, अब वही युवा जीआई टैग वाले उत्पादों में मल्टीनेशनल कंपनियों की शानदार नौकरियां छोड़कर अपना भविष्य तलाश रही है क्योंकि भारत के जिन 300 से ज्यादा कृषि उत्पादों को अब तक जीआई टैग मिला है उन कृषि उत्पादों की पूरी दुनिया में 600 से 700 फीसदी तक मांग बढ़ गई है।

विरासत को बचाने की कोशिश
वास्तव में जीआई टैग महज कुछ खास उत्पादों को लुप्त होने से बचाने का उपक्रम नहीं है बल्कि सदियों की इस विरासत को बचाने की भी कोशिश है। आज पूरी दुनिया में भारत के जीआई उत्पादों की तूती बोल रही है और आने वाले सालों में कारोबार के नजरिये से इन उत्पादों का भविष्य बेहद चमकदार है। जब भी किसी उत्पाद विशेष को जीआई टैग मिलता है तो रातोंरात न सिर्फ उनकी मांग बल्कि उनको लेकर देश-विदेश के चप्पे-चप्पे तक पहुंच जाती है। कुछ सालों पहले तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत कस्बे के आसपास पैदा होने वाले बेहद स्वादिष्ट रटौल आम के मुरीद आसपास के 100-200 किलोमीटर दूर तक के ही लोग ही थे।
इन्हीं मुरीदों में से जब कोई देश के किसी कोने या दुनिया के किसी हिस्से में जाता था तो अपने साथ इन लजीज आमों की कहानियां भी ले जाता था लेकिन आज की तारीख में रटौल जैसे स्वादिष्ट आम की प्रसिद्धि हांगकांग से लेकर होनोलूलू तक है और इसमें किसी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों की तारीफ नहीं बल्कि उस सिस्टम की ताकत है जिसे हम जीआई (ज्योग्रोफिकल आइडेंटी) टैग कहते हैं। यह एक अकेले रटौल आम की वैश्विक मशहूरी का किस्सा नहीं है।
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खास उत्पाद के गुण और उप्रतिष्ठता का सूचक
31 मार्च, 2024 तक देश के 635 स्थानीय उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका था और इनमें से ज्यादातर ने पूरी दुनिया में ऐसी ही लोकप्रियता पायी है। जीआई टैग किसी भी उत्पाद को मिलने वाला एक स्थाई भौगोलिक संकेत है। यह सिर्फ भूगोल को ही नहीं बताता बल्कि किसी उस खास उत्पाद के गुण और उसकी प्रतिष्ठता का भी सूचक होता है। आम तौर पर जीआई टैग ऐसे उत्पादों को दिया जाता है जो किसी क्षेत्र विशेष, समुदाय विशेष की कला और विरासती कौशल का नतीजा होते हैं। मसलन कुछ ऐसे समुदाय हैं जो सदियों से किसी उत्पाद विशेष को पैदा करने में माहिर हैं और उस संबंध में उनसे बेहतर और गहरी कला कोई और नहीं जानता।
ऐसे उत्पाद को जब जीआई टैग मिलता है तो सिर्फ देश ही नहीं पूरी दुनिया में उस उत्पाद को उसकी खूबियों और सभी विशेषताओं के साथ जाना जाता है। उसे फिर किसी नये नाम या पहचान की जरूरत नहीं रह जाती। वह अपने मूल नाम और मूल पहचान के जरिये ही पूरी दुनिया में जाना जाता है। 15 सितंबर, 2003 से भारत में लागू जीआई टैग के बाद से अब तक 635 उत्पादों को उनकी विशिष्ट खूबियों को पहचान देने वाला यह तमगा मिल चुका है। यूं तो इन जीआई टैग वाले उत्पादों में सभी क्षेत्र के विशिष्ट उत्पादन शामिल हैं लेकिन 635 में से करीब 300 उत्पाद कृषि और बागवानी से संबंधित हैं।

पूरी दुनिया में मिलती एक विशिष्ट पहचान
अगर कहा जाए कि आज की ग्लोबल दुनिया में भारत के विभिन्न कृषि उत्पादों को जो वैश्विक प्रसिद्धि हासिल है उसमें सबसे बड़ा योगदान जीआई टैग है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। दरअसल जीआई टैग एक ऐसा चिन्ह या संकेत है, जो जिस उत्पाद को हासिल हो जाता है, उसकी रातोंरात पूरी दुनिया में एक विशिष्ट पहचान बन जाती है। कृषि उत्पादों के बाद यह सबसे ज्यादा हस्तशिल्प उत्पादों को हासिल हुआ है।
ऐसा स्वाभाविक भी है क्योंकि हस्तशिल्प महज उत्पाद नहीं होते, इनमें सदियों से संचित ज्ञान और कला भी शामिल होती है। एक बार जब ऐसे किसी उत्पाद को जीआई टैग मिल जाता है तो देश ही नहीं पूरी दुनिया उसके लिए पलक पांवड़े बिछा देती है। भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करने वाली संस्था ‘ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री’ जीआई टैग देती है। इसका मुख्यालय तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में है।
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