Hema Committee Report – लंबे समय से शिकायतें होती रही हैं
Hema Committee Report: मलयाली फिल्म एक्ट्रेस मीनू मुनीर के आरोपों के बाद दक्षिण का सिने जगत सुर्खियों में आ गया है। एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स (एएमएमए) के अध्यक्ष दक्षिण के सुपर स्टार मोहनलाल ने भी पद इस्तीफा दे दिया और पूरी कमेटी भंग हो गई। महिला अभिनेत्रियों के शोषण का धुंआ अचानक नहीं उठा, बल्कि लंबे समय से शिकायतें होती रही हैं। जस्टिस के हेमा समिति भी गठित की गई और वर्षों ठंडे बस्ते में रखने के सरकार को रिपोर्ट कोर्ट में पेश करनी पड़ी। यानी चिंगारी काफी समय पहले फूट चुकी थी, भड़की अब है, जिसमें कथित सफेदपोश ‘एएमएमए’ स्वाहा हो गया। दरअसल हेमा कमेटी की रिपोर्ट ने दक्षिण के सिने जगत को ‘मी-टू’ में बुरी तरह धंसा बताया है। अहम बात यह है कि हाई कोर्ट ने रिपोर्ट की संशोधित प्रति जारी करने की अनुमति दी, जिसमें ही कई चौंकाने वाले खुलासे हैं।

ये शक्तिशाली लोग कौन हैं
जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा गया है कि 10-15 लोगों का एक सर्व-पुरुष, शक्तिशाली और विशेषाधिकार प्राप्त समूह है, जो मलयालम सिनेमा के सर्वोच्च पद पर हैं, पूरे दक्षिण सिने उद्योग को नियंत्रित करते हैं। अभिनेताओं पर प्रतिबंध लगाते हैं और जब महिलाएं उनके पास शिकायत लेकर आती हैं तो कथित तौर पर दूसरी निगाह से देखते हैं। 19 अगस्त को जारी रिपोर्ट के अनुसार, सिने जगत की कई महिलाओं ने इस समूह पर उत्पीड़न और यौन शोषण के आरोप लगाए हैं। इस समूह में नेता भी शामिल हैं। हालांकि जारी रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं है कि ये शक्तिशाली लोग कौन हैं क्योंकि उच्च न्यायालय ने रिपोर्ट के केवल एक संशोधित संस्करण को आरोपी या शिकायतकर्ताओं के नाम के बिना जारी करने की अनुमति दी थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कम से कम 70 बार शक्ति और शक्ति समूह का उल्लेख किया है, जिससे स्पष्ट होता है कि सिने अभिनेत्रियों को फिल्म उद्योग पर एकक्षत्र राज्य करने वाली इस शक्तिशाली लॉबी की बात नहीं मानने या विरोध करने पर किस तरह के गुस्से का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट में एक प्रमुख अभिनेता के हवाले से इस कथित शक्ति समूह को न सिर्फ माफिया बताया है बल्कि हर किसी को खरीदने वाला कहा है। अपनी बोली नहीं बताने वाले को बगैर कारण बताए सिने जगत से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
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सिनेमा में किसी से खुश नहीं
समिति के सदस्य अभिनेता टी शारदा ने रिपोर्ट में बताया है कि ‘एएमएमए’ में कान्ट्रेक्ट अभिनेत्रियों को नियंत्रित करने के लिए एक तरह से अवैध और गैरकानूनी जरिया है, जो इच्छाएं पूरी नहीं होने पर स्वत: समाप्त हो जाता है। अगर पावर ग्रुप का कोई व्यक्तिगत पूर्वाग्रह के कारण भी सिनेमा में किसी से खुश नहीं है, तो ग्रुप के सभी सदस्य एकजुट हो जाते हैं और संबंधित को सिनेमा में काम करने से रोक देते हैं, यानी सामूहिक बहिष्कार कर उसे सड़क पर ला दिया जाता है। रिपोर्ट में बताया गया कि सामूहिक बहिष्कार के लिए संबंधित को न तो नोटिस दिया जाता है और न ही कोई जानकारी दी जाती है, लेकिन यह जरूर कहा जाता है कि एक विशेष अभिनेता संकटमोचक है जो उसे बचा सकता है। यानी यह वही संकटमोचक है जिसके लिए पूरा समूह कथित तौर पर काम करता है। जिसकी हर डिमांड किसी भी कीमत पर पूरी करना जरूरी होता है।

स्वतंत्र संस्था की सिफारिश
रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला अभिनेताओं के मामले में प्रतिबंध लागू करने के लिए आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एक पंक्ति यह है कि वह ‘मी टू’ व्यक्ति है। इसके लिए समूह किसी सबूत की जरूरत भी नहीं समझता और उसके बाद फिल्म निर्माताओं को ‘प्रतिबंधित’ कलाकार को न चुनने के लिए बाध्य कर दिया जाता है। फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स फिल्म की रिलीज को रोक देता है। ऐसा सिर्फ केरल में ही हो सकता है। रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा गया है कि जब तक इस समूह को सत्ता का साथ प्राप्त है तब तक इसके खिलाफ कोई भी कानूनी कार्रवाई संभव नहीं है। यहां तक कि यहां महिला यौन उत्पीड़न निवारण समिति भी कुछ नहीं कर सकती है। इसके लिए समिति ने फिल्म उद्योग में यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के मामलों पर निर्णय लेने के लिए एक न्यायाधिकरण जैसी स्वतंत्र संस्था की सिफारिश भी की है।
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