Lal Krishna Advani: राम मंदिर आंदोलन से बदली आडवाणी की पहचान
भाजपा के भीष्प पितामह के रूप में पहचाने जाने वाले 96 साल के लालकृष्ण आडवाणी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया है, अब तक भारत रत्न से सम्मानित लोगों में लालकृष्ण आडवाणी 50वीं शख्सियत हैं। आपको बताना जरूरी है कि यह घटनाक्रम मोदी सरकार द्वारा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा के कुछ दिनों बाद आया है, इसे लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है।
मोदी की सफलता के पीछे आडवाणी का बहुत बड़ा हाथ रहा है, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब खुद आडवाणी मोदी के विरोध में उतर आए थे, पार्टी के अंदर दो गुट हो गए थे। लालकृष्ण आडवाणी की जब चर्चा होती तो उनकी पहचान राम मंदिर आंदोलन से की जाती है, उस यात्रा ने ना सिर्फ आडवाणी की पहचान बदली थी बल्कि भारतीय राजनीति को भी बदल दिया था। आडवाणी वह शख्स हैं, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई, वह बीजेपी के संस्थापक सदस्य हैं, साल 1980 में बीजेपी के गठन के समय वह भी पार्टी में एक मजबूत पिलर रहे। वह बीजेपी के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाले नेता हैं, वह लंबे समय तक सांसद के तौर पर देश की सेवा कर चुके हैं।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हुआ था
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हुआ था, उन्होंने कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल से पढ़ाई की है, 1942 में उन्होंने भारत छोडो आंदोलन के दौरान गिडूमल नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया, इसके बाद उन्होंने 1944 में कराची के मॉडल हाई स्कूल में बतौर शिक्षक नौकरी की।

आडवाणी जब महज 14 साल के थे, उन्होंने अपना जीवन देश के नाम कर दिया, हालांकि, 1947 में देश का बंटवारा होने के बाद आडवाणी के परिवार को अपना घर छोड़कर भारत आना पड़ा। उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ में स्नातक किया, इस दौरान वह संघ से भी जुड़े रहे। किशन चंद आडवाणी के घर जन्मे लालकृष्ण आडवाणी ने 25 फरवरी 1965 को कमला आडवाणी से शादी की, बता दें कि उनके दो बच्चें हैं, जिनका नाम प्रतिभा और जयंत हैं।
10 बार संसद सदस्य रहे
आडवाणी की राजनीति की शुरूआत 1957 से अटल बिहारी वाजपेयी और दीनदयाल उपाध्याय के सहयोगी के रूप में हुई, इसके साथ ही उन्होंने आर्गेनाइजर में काम करते हुए पत्रकारिता में भी हाथ आजमाया, लेकिन बाद में पूरा जीवन राजनीति को समर्पित कर दिया। 1970 में पहली बार राज्यसभा से संसद में प्रवेश करने वाले लालकृष्ण आडवाणी 2019 तक कुल 10 बार संसद सदस्य के रूप में रहे। 1984 में 2 सीटों पर सिमटने के बाद भी आडवाणी ने हार नहीं मानी और 5 साल बाद पार्टी को 85 सीटों पर पहुंचा दिया, इसके बाद भाजपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अमित शाह के अध्यक्ष रहते हुए दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
राजनीति में ‘यात्रा’ संस्कृति की शुरुआत
लाल कृष्ण आडवाणी ही वह नेता हैं, जिन्होंने राजनीति में ‘यात्राओं’ का कल्चर शुरू किया था, जिस समय अयोध्या में राम मंदिर की मांग अपने पीक पर थी, तब आडवाणी ने 1990 में गुजरात के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथयात्रा शुरू की थी, जिसकी वजह से देश की राजनीति में हिंदुत्व की राजनीति ने उभरना शुरू किया, हालांकि बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उनको समस्तीपुर में गिरफ्तार करा दिया था, इस घटना के बाद आडवाणी राजनीति के हीरो बनकर उभरे। 1992 में जब कार सेवकों ने 6 दिसंबर को मस्जिद को ध्वस्त कर दिया, तो आडवाणी पर साइट के पास भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया था।
सीबीआई ने उन पर और अन्य भाजपा नेताओं पर बाबरी मस्जिद को गिराने में आपराधिक साजिश का आरोप लगाया था, 28 साल बाद, 2020 में, एक अदालत ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए मामले में आडवाणी को बरी कर दिया और कहा कि मस्जिद का विध्वंस एक त्वरित कार्रवाई थी और इसके लिए पहले से कोई साजिश नहीं रची गई थी। आडवाणी के सियासी जीवन में राम रथ यात्रा, जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा, भारत सुरक्षा यात्रा, जनचेतना यात्रा शामिल हैं।

1999-2004 तक उप प्रधानमंत्री रहे
1980 में भाजपा के गठन के बाद से ही आडवाणी वह शख्स हैं, जो सबसे ज्यादा समय तक पार्टी में अध्यक्ष पद पर बने रहे हैं, बतौर सांसद 3 दशक की लंबी पारी खेलने के बाद आडवाणी पहले गृह मंत्री रहे, बाद में 1999 से लेकर 2004 तक अटल सरकार में उप प्रधानमंत्री बने, आडवाणी को बेहद बुद्धिजीवी, काबिल और मजबूत नेता माना जाता है जिनके भीतर मजबूत और संपन्न भारत का विचार जड़ तक समाहित है।
2004-2009 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे
आडवाणी 2004 से 2009 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बने रहे, 10 दिसंबर 2007 को भाजपा के संसदीय बोर्ड ने 2009 के आम चुनावों के लिए लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए जाने का औपचारिक एलान किया, UPA सरकार दोबारा बनने पर 15वीं लोकसभा में आडवाणी की जगह सुषमा स्वराज को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया, भाईसाब, एक समय वो था, जब आडवाणी का नाम हवाला कांड में सामने आया, तो तुरंत उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दिया और यह भी एलान किया कि जब तक वे बेदाग नहीं हो जाएंगे, तब तक संसदीय राजनीति नहीं करेंगे।
लेफ्टिनेंट की भूमिका में रहे मोदी
वर्ष 2012 तक नरेंद्र मोदी आडवाणी के लेफ्टिनेंट की भूमिका में रहे, लेकिन जैसे ही 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर नए चेहरे की चर्चा जोर पकड़ी, आडवाणी और मोदी में दूरियां बढ़ने लगीं, 2013 आते-आते दोनों के रिश्तों में तल्खी ने ऐसा रूप ले लिया कि आडवाणी ने मोदी को अगले चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के प्रस्ताव का भरपूर विरोध किया।
प्रधानमंत्री बनने का सपना अधूरा रहा
लालकृष्ण आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की हसरत कभी छिपी नहीं रही, उन्होंने इस बात से कभी इनकार नहीं किया कि वह 2014 के चुनाव में अपनी दावेदारी को वापस ले रहे हैं, इसके अलावा जेडीयू और दूसरे सहयोगी दल भी उनके पक्ष में रहे, इन सबके बीच उनको नजरअंदाज कर मोदी ने जिस तेजी से इस पद के लिए लॉबिंग की, आडवाणी की उनसे नाराजगी बढ़ती गई, हालांकि, 2013 को बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को आखिरकार 2014 के आम चुनाव के लिए अपना प्रधानमंत्री पद का कैंडिडेट घोषित कर ही दिया।
लालकृष्ण आडवाणी ने मोदी को जरूरत के वक्त लाइफलाइन दी, लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस रहा कि जब उन्हें मोदी के समर्थन के जरूरत पड़ी, तो वह चुप रहे, जिन्ना प्रकरण में जब आडवाणी पूरे अलग-थलग पड़े, तब भी मोदी ने एक शब्द भी नहीं बोले, वहीं, मोदी को जब आरएसएस की नजदीकी और आडवाणी के साथ में, कोई एक विकल्प चुनने का मौका आया, तो उन्होंने आरएसएस का साथ चुना।

भारत के विकास योगदान अविस्मरणीय
जीवन भर आडवाणी कम शब्दों वाले इंसान रहे लेकिन स्वाभाविक तौर पर उनकी आंखों में आंसू थे, इस बात की संतुष्टि और खुशी दोनों है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में लगाया, उनके जीवन के इस पड़ाव पर उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाज़ा जाना बहुत बड़ी बात है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी हमारे समय के सबसे सम्मानित राजनेताओं में से एक, भारत के विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है. बता दें कि 2015 में आडवाणी को देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।
विपक्ष की मिलीजुली प्रतिक्रिया
– कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि मोदी ने आडवाणी को भारत रत्न देकर नेक काम किया है, देर से ही सही पर दिया तो, व
– अखिलेश यादव ने कहा कि यह भारत रत्न वोट को बांधने के लिए दिया जा रहा है, यह सम्मान में नहीं दिया जा रहा।
– दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न देने की जो घोषणा की गई है, हम उसका स्वागत करते हैं।
– वहीं राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा ने आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने को लेकर विवादास्पद बयान दिया है, रंधावा ने कहा कि भारत रत्न तो मृत व्यक्ति को दिया जाता है, फिर आडवाणी को क्यों दिया जा रहा है, इस पर भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने रंधावा को अल्पज्ञानी बताया, और भाजपा के ही एक नेता ने कहा कि कांग्रेस के नेताओं ने भाषा की मर्यादा भी खो दी है, इस कारण ही कांग्रेस की हालत खराब हो रही है।
– वहीं कांग्रेस के और नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि ‘सैंया भए कोतवाल…’ या ‘अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को देय’. नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि बुजुर्ग नेता को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया था. प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल लालकृष्ण आडवाणी को दरकिनार कर कोई दूसरे भैया आ गए, कर्पूरी ठाकुर को अब सम्मान देने के पीछे वोट की राजनीति है।
– जमात ए इस्लामी ने भी इस मामले में जहर उगला है, जमात ए इस्लामी के सचिव ने कहा है कि लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिया जाना बाबरी मस्जिद तोड़ने का इनाम है, यह बाबरी विध्वंस करने वाले को सम्मान है, केंद्र की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार से यही उम्मीद थी।
– वहीं भाजपाइयों में खुशी की लहर दौड़ गई, सभी ने कहा कि हमारे आदर्श हैं, इसके हकदार हैं, वह भाजपा को शिखर तक ले आने में उनकी अहम भूमिा है, सरकार उन्हें भारत रत्न देकर पूर्ण सम्मान किया है, उनकी सोच में हिंदुत्व और हिन्दुस्तान बसा हुआ है, वह हर पल राष्ट्र हित की बात करते हैं।
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