Paddy Crop Subsidy -धान की तुलना में कम पानी की जरूरत
Paddy Crop Subsidy: कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी का मानना है कि अगर धान पर भारी सब्सिडी देने की मौजूदा सरकारी नीतियां जारी रहीं तो भारत को घरेलू मांग को पूरा करने के लिए वर्ष 2030 तक 80-100 लाख टन दालें आयात करनी पड़ेंगी। उन्होंने कहा कि किसानों को दलहन उगाने के लिए प्रोत्साहन देने की जरूरत है, क्योंकि दलहन को धान की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है और ये अधिक पौष्टिक भी होती हैं। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व चेयरमैन गुलाटी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए किसानों को दलहन और तिलहन उगाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ‘फसल-तटस्थ प्रोत्साहन संरचना’ पर जोर दिया।

80-100 लाख टन दालों का आयात
दलहन के मामले में आत्मनिर्भर बनने के सरकार के लक्ष्य के बारे में पूछे जाने पर गुलाटी ने कहा अगर मौजूदा नीतियां जारी रहती हैं तो भारत को वर्ष 2030 तक 80-100 लाख टन दालों का आयात करना होगा। देश ने वित्त वर्ष 2023-24 में 47।38 लाख टन दालों का आयात किया था। गुलाटी ने कहा अगर नीतियों में बदलाव किया जाए तो दालों में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सकती है। वह राष्ट्रीय राजधानी में ‘भारत दलहन सेमिनार 2024’ के मौके पर इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन (आईपीजीए) द्वारा आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
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400 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान
आईपीजीए के चेयरमैन बिमल कोठारी ने कहा कि देश में दालों का उत्पादन पिछले 3-4 वर्षों में लगभग 240-250 लाख टन रहा है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में आयात बढ़कर 47 लाख टन हो गया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2030 तक दालों की मांग 400 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है। केंद्र और राज्य सरकारों की मौजूदा नीतियां धान की खेती के पक्ष में हैं क्योंकि बिजली और उर्वरक जैसे इनपुट पर भारी सब्सिडी है। उन्होंने कहा हमारा अनुमान है कि पंजाब में धान की खेती के लिए 39,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की सब्सिडी है। यह केंद्र और राज्य दोनों द्वारा बिजली और उर्वरकों पर सब्सिडी के रूप में दी जा रही है। गुलाटी ने कहा कि दालों और तिलहन की खेती के लिए भी इसी तरह की सब्सिडी दी जानी चाहिए।

घटकर 40-45 लाख टन पर आ सकता है आयात
कोठारी ने कहा कि भारत का दालों का आयात पिछले वर्ष के 47.38 लाख टन से घटकर चालू वित्त वर्ष में 40-45 लाख टन रह सकता है। मानसून अच्छा रहने की वजह से घरेलू उत्पादन बढ़ने और खुदरा कीमतें कम होने की संभावना है। आईपीजीए ने यह भी मांग की कि सरकार को 2।5 लाख करोड़ रुपये के दाल बाजार के लिए दीर्घकालिक नीति बनानी चाहिए, क्योंकि नीतियों में बार-बार बदलाव से सभी अंशधारकों के हितों को नुकसान पहुंचता है। इसने पीली मटर पर आयात शुल्क लगाने की भी मांग की। इस वित्त वर्ष में दालों का आयात 40-45 लाख टन रहने की संभावना है। उन्होंने कहा कि फसल वर्ष 2024-25 में दालों के बेहतर उत्पादन की उम्मीद और पिछले वित्त वर्ष में अधिक आयात के कारण आयात में कमी आएगी।
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16 लाख टन मसूर दाल का आयात
कोठारी ने कहा कि देश ने पिछले वित्त वर्ष में 16 लाख टन मसूर दाल का आयात किया था। हमें केवल 10 लाख टन मसूर दाल के आयात की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पीली मटर का आयात भी 2023-24 के स्तर से कम हो सकता है। कोठारी ने कहा कि इस साल मानसून की बारिश बेहतर रही है। खरीफ सत्र में दालों का रकबा बढ़ा है। घरेलू उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है। आईपीजीए के चेयरमैन ने कहा कि पिछले एक महीने में थोक बाजारों में दालों की कीमतों में कमी आई है और आगे भी इसमें कमी आने की उम्मीद है।
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