Ramcharitmanas Ramayan: 10 सालों तक ऋषि-मुनियों के आश्रम में रहे ‘श्रीराम’
22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम के बाल स्वरूप रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। श्रीराम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। ऋग्वेद की शाकल संहिता के दसवें मंडल में भी श्रीराम का जिक्र है। श्रीमद्भागवत महापुराण में श्रीराम को भगवान विष्णु का अंश कहा गया है। वाल्मीकि रामायण में नारदजी ने श्रीराम को सबसे ताकतवर और धैर्यवान बताया है। शास्त्रों में रामजी के अलग-अलग नाम बताए गए हैं। भगवान राम ने विषम परिस्थितियों में भी स्थिति पर नियंत्रण रख सफलता प्राप्त की उन्होंने हमेशा वेदों और मर्यादा का पालन किया।
स्वयं के सुखों से समझौता कर उन्होंने न्याय और सत्य का साथ दिया। सहनशीलता व धैर्य भगवान राम का प्रमुख गुण है। अयोध्या का राजा होते हुए भी श्री राम ने संन्यासी की तरह ही अपना जीवन व्यापन किया। यह उनकी सहनशीलता को दर्शाता है। भगवान राम काफी दयालु स्वभाव के रहें। उन्होंने दया कर सभी को अपनी छत्रछाया में लिया। उन्होंने सभी को आगे बढ़ कर नेतृत्व करने का अधिकार दिया। सुग्रीव को राज्य दिलाना उनके दयालु स्वभाव का ही प्रतीक है। हर जाति, हर वर्ग के व्यक्तियों के साथ भगवान राम ने मित्रता की।

हर रिश्तें को श्री राम ने दिल से निभाया। केवट हो या सुग्रीव, निषादराज या विभीषण सभी मित्रों के लिए उन्होंने स्वयं कई बार संकट झेले। भगवान राम एक कुशल प्रबंधक थे। वो सभी को साथ लेकर चलने वाले थे। भगवान राम के बेहतर नेतृत्व क्षमता की वजह से ही लंका जाने के लिए पत्थरों का सेतु बन पाया। भगवान राम ने अपने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण का भाव रखा और स्नेह दिया। इसी कारण से भगवान राम के वनवास जाते समय लक्ष्मण जी भी उनके साथ वन गए। यही नहीं भरत ने श्री राम की अनुपस्थिति में राजपाट मिलने के बावजूद भगवान राम के मूल्यों को ध्यान में रखकर सिंहासन पर रामजी की चरण पादुका रख जनता की सेवा की।
भारतीय समाज को धर्म के मार्ग पर चलाया
श्रीराम को 14 वर्ष का वनवान हुआ था और इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की साथ ही तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा। राम को जब वनवास हुआ तो वाल्मीकि रामायण ने इस पर अपनी कहानी लिखी है और साथ ही साथ ही अपने मर्यादित जीवन के कारण वे मर्यादा पुरुषोत्तम भी बने। जब भगवान राम को वनवास हुआ, तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की थी।
दंडकारण्य में बिताया था वनवास
रामायण महाकाव्य की कहानी के बारे में हम सभी जानते हैं कि राम और सीता, लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों के लिए वनवास गए थे और राक्षसों के राजा रावण को हराकर वापस अपने राज्य लौटे थे। हम में से अधिकांश लोगों को पता है कि राम, लक्ष्मण और सीता ने कई साल वन में बिताए थे, लेकिन कुछ ही लोगों को उस वन के नाम की जानकारी होगी। उस वन का नाम दंडकारण्य था जिसमें राम, सीता और लक्ष्मण ने अपना वनवास बिताया था। यह वन लगभग 35,600 वर्ग मील में फैला हुआ था जिसमें वर्तमान छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश के कुछ हिस्से शामिल थे।
उस समय यह वन सबसे भयंकर राक्षसों का घर माना जाता था, इसलिए इसका नाम दंडकारण्य था जहाँ “दंड” का अर्थ “सजा देना” और “अरण्य” का अर्थ “वन” है। राम, लक्ष्मण और सीता 10 सालों तक ऋषि-मुनियों के आश्रम में रहे, वे सभी आश्रम दंडकारण्य में थे। दंडकारण्य घनघोर जंगल था, जहां जंगली जानवरों और राक्षसों का डर हमेशा बना रहता था। चित्रकूट से आगे जंगल में इंट्री के पहले अत्रि ऋषि के आश्रम में जुटे ऋषियों ने राम से अनुरोध किया था कि वे राक्षसों से मुक्ति दिलाएं। इन 10 सालों में राम ने पूरे छत्तीसगढ़ से राक्षसों का सफाया कर दिया जिसके बाद वह आंध्र के रास्ते साउथ की ओर बढ़े।
श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था
रामायण और अन्य पुराणों के मुताबिक, प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था। प्रभु श्रीराम अयोध्या के राजा दशरथ के बड़े बेटे थे। उन्हें भगवान विष्णु का अवतार कहा जाता है। यही नहीं उनके विशेष कृत्यों की वजह से उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है। प्रभु श्रीराम से अयोध्यावासी काफी प्यार करते थे और उनके वनवास जाते ही वो अत्यंत दुखी हो गए।

1000 वर्षों से भी ज्यादा समय तक शासन किया
प्रभु श्रीराम की मृत्य से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार सीता ने अपने दोनों बच्चों लव और कुश को प्रभु श्रीराम को सौंपा और धरती माता के साथ जमीन में समा गईं। सीता के जाने से प्रभु श्रीराम इतने दुखी हो गए किउन्होंने यमराज से सहमति लेकर सरयू नदी में जल समाधी ले ली। भगवान श्रीराम ने धरती पर 1000 वर्षों से भी ज्यादा समय तक शासन किया। अपने इस लंबे शासकाल में भगवान राम ने कई ऐसे काम किए जिन्होंने हिंदू धर्म को एक गौरवमयी इतिहास प्रदान किया।
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पद्मपुराण के अनुसार भगवान राम जब अपना अवतारकाल समाप्त करके एक ऋषि का रूप धारण करके आये तब काल यानी यमराज भी एक ऋषि के रूप में आए और उन्होंने राम जी से बात करने का आग्रह किया। तब श्रीराम ने काल से कहा कि कोई हमारे बीच न आए। उस समय प्रभु श्री राम ने भ्राता लक्ष्मण से कहा कि वो एकांत चाहते हैं और काल से वार्तालाप करना चाहते हैं, इसलिए आप दरवाज़े पर खड़े हो जाएं जिससे कोई भीतर प्रवेश न कर सके। इतनी देर में ऋषि दुर्वाशा वहां आ गए और राम जी से मिलने का आग्रह करने लगे।
लक्ष्मणजी के मना करने पर भी ऋषि नहीं माने और क्रोधित होकर बात करने लगे। लक्ष्मण जी दुर्वाशा के क्रोध से बचने के लिए कमरे में प्रवेश कर गए जहां श्री राम वार्तालाप कर रहे थे। ये देखकर श्री राम भी लक्ष्मण पर कुपित हुए और उन्हें मृत्यु दंड न देकर देश निकाला दे दिया। लक्ष्मण जी के लिए वह भी मृत्यु सामान ही था, इसलिए वो सरयू नदी में समा गए और शेषनाग का रूप धारण कर लिया। भाई की जलसमाधि से आहत होकर श्रीराम ने भी जल समाधि का निर्णय लिया। वो सरयू नदी के अंदर गए और भगवान विष्णु का अवतार ले लिया। इस तरह श्रीराम ने मानव शरीर त्याग दिया और बैकुंठ धाम चले गए।
हर युग में लोगों ने राम को जिया
वास्तव में ये कथा भगवान श्री राम के जीवन से जुड़ी सबसे रोचक कथाओं में से एक है और ये प्रभु श्रीराम के मनुष्य रूप को त्यागकर वापस विष्णु रूप में आने के बारे में बताती है। हर युग में लोगों ने राम को जिया है। हर युग में लोगों ने अपने-अपने शब्दों में, अपनी तरह से राम को अभिव्यक्त किया है। यह राम रस जीवन प्रवाह की तरह निरंतर बहता रहता है।
राम भारत की आस्था हैं, राम भारत का आधार हैं, राम भारत का विचार हैं, राम भारत का विधान हैं, राम भारत की चेतना हैं, राम भारत का चिंतन हैं, राम भारत की प्रतिष्ठा हैं, राम भारत का प्रताप हैं, राम प्रभाव हैं, राम प्रवाह हैं, राम नेति भी हैं, राम नीति भी हैं, राम नित्यता भी हैं, राम निरंतरता भी हैं, राम व्यापक हैं, विश्व हैं, विश्वात्मा हैं इसलिए जब राम की प्रतिष्ठा होती है तो उसका प्रभाव शताब्दियों तक नहीं होता उसका प्रभाव हज़ारों वर्षों तक होता है।
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